दीपक कुमार तिवारी
मुजफ्फरपुर । छपरा जिले के सहाजीतपुर बाजार पर एक बिदेसिया (लौंडा) नाच मंडली हुआ करती थी टुकर सिंह की। टुकर सिंह जाति के राजपूत थे और लंबे वक्त तक उन्होंने नाच मंडली चलाई खुद काफी उम्दा नगाड़ा वादक थे बचपन में जेहन में यह सवाल आता था कि राजपूत होकर नाच पार्टी क्यों चलाते हैं।
जबकि उस दौर में गोपालगंज छपरा सिवान बेतिया मोतिहारी और मुजफ्फरपुर तक में जितनी भी लौंडा नाच मंडली थी,सभी पिछड़ी जाति के लोग ही चलाते थे। उसमें सभी कलाकार भी पिछड़ी जाति के ही होते थे वादक भी नर्तक भी और गायक भी।आजकल भोजपुरी कलाकारों की जात तलाशी जा रही है कुछ जात हम भी बता देते हैं भोजपुरी में एक ही महानायक हुए हैं।
और वर्तमान में उनका नाम कुणाल सिंह है और वे यादव जाति से आते हैं। उनके पिता बुद्धदेव सिंह बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं। अक्षरा सिंह जाति से राजपूत नहीं है पर कुणाल सिंह और अक्षरा सिंह को लोग राजपूत समाज का समझकर ट्रोल करते रहते हैं। एक कलाकार को कलाकार के तौर पर समझे। लौंडा नाच के विधा में जिसे पहला पद्मश्री पुरस्कार मिला वे रामचंद्र माझी पिछड़ी जाति से आते थे।
भोजपुरी गीत गवनई नाच परंपरा लोक विधा में नब्बे फीसदी कलाकार पिछड़ी जातियों के हैं उनका समाज में बड़ा ही सम्मान इसलिए नहीं कि उनकी जाति अगड़ी पिछड़ी है बल्कि इसलिए कि उनकी कला के कद्रदान लाखों-करोड़ों में है। अंग्रेजों के राज में जमींदारों के हनक के बीच भिखारी ठाकुर ने बेटी बेचवा जैसा नाटक जब प्रारंभ किया होगा तो सोचिए समाज में कितना विरोध हुआ होगा।
वर्षों तक जमींदारों ने भिखारी का बहिष्कार कर दिया था।जिनके नाम पर भोजपुरी में सबकी दाल रोटी चलती है भिखारी ठाकुर नाई जाति के थे। भिखारी ठाकुर की तरह बक्सर में एक ब्राह्मण चाई ओझा भी नाच मंडली चलाते थे। और चुकी ब्राह्मण थे इसलिए उनका इतिहास नहीं लिखा गया। पूर्वी के जनक महेंद्र मिश्र ब्राह्मण जाति के थे।
कोई भी कलाकार इसलिए प्रिय लोकप्रिय नहीं होता क्योंकि वह किसी खास जाति का होता है बल्कि उसके अंदर की विलक्षण प्रतिभा उसे भीड़ से अलग करती है यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि मौजूदा दौर में भोजपुरी गायकी में पवन सिंह के दाएं बाएं दूर-दूर तक कोई नहीं है। जो मीठास इनकी आवाज में है जो खनक है और गाने का अंदाज है इस विधा में एकले कलाकार है।
पवन सिंह का आप सिर्फ आप इस लिए समर्थन नहीं कर सकते कि यह राजपूत बिरादरी से आते हैं या सवर्ण समाज का नेतृत्व करते हैं आप इसलिए पवन सिंह का समर्थन कर सकते हैं कि उन्होंने भोजपुरी गीतों को एक नई ऊंचाई दी है।अपने अंदाज में भोजपुरी के गीत संगीत को बढ़ाया पवन सिंह के देखा देखी सारे कलाकारों ने भोजपुरी में आगे बढ़ कर अपना मुकाम बनाया।
किसी भी कलाकार की लोकप्रियता उसकी कला से होती है।मेरी नजर में कलाकार इसलिए बड़ा नहीं है कि किसी खास जाति का है बल्कि इसलिए बड़ा है कि उसके अंदर जो कला है उसके चाहने वाले करोड़ों में है।