लोकतंत्र अब रो रहा

0
187
Spread the love

लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात ।
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घूसे, लात ।।

देश बांटने में लगी, नेताओं की फ़ौज ।
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज ।।

पद-पैसे की आड़ में, बिकने लगा विधान ।
राजनीति में घुस गए, अपराधी-शैतान ।।

भ्रष्टाचारी कर रहे, घोटाले बेनाप।
आंखों में आंसू भरे, राजघाट चुपचाप ।।

जहां कटोरी थी रखी, वही रखी है आज ।।
‘सौरभ’ मुझको देश में, दिखता नहीं सुराज ।।

आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश ।
बदलेगी सरकार कल, होगा पर्दाफाश ।।

जनता आपस में भिड़ी, चुनने को सरकार ।
नेता बाहें डालकर, बन बैठे सरदार ।।

जिनकी पहली सोच ही, लूट, नफ़ा श्रीमान ।
पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान ।।

कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष ।
जब मतलब हो हाँकता, बनकर ‘सौरभ’ अक्ष ।।

(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here