जब भी कोई चुनाव आता है तो नेताओं के इधर से उधर आने-जाने की गति तेज हो जाती है। लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले से ही इस बार भी यह सिलसिला शुरू हो गया है। दनादन नेता पार्टियां बदल रहे हैं। यह अलग बात है कि इसमें सर्वाधिक नुकसान अभी तक कांग्रेस को ही हुआ है। महाराष्ट्र, राजस्थान से लेकर बिहार, झारखंड तक यह सिलसिला चल रहा है। बिहार में बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन के बेटे आरजेडी विधायक चेतन आनंद के साथ एक ही दिन आरजेडी के तीन विधायकों ने खेमा बदला तो अब दो दिन पहले चेतन आनंद की मां लवली आनंद ने भी पाला बदल लिया है। बिहार में कांग्रेस के भी तीन विधायकों ने सत्तारूढ़ खेमे में रहना पसंद किया है। रही बात झारखंड की तो यहां भी आपरेशन लोटस शुरू हो चुका है। पहले पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने पाला बदल लिया तो अब सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की जामा से विधायक सीता सोरेन ने कुछ ही घंटों के अंतराल में मंगलवार को पार्टी के सभी पदों और विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। रही बात झारखंड की तो यहां भी आपरेशन लोटस शुरू हो चुका है। पहले पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने पाला बदल लिया तो अब सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की जामा से विधायक सीता सोरेन ने कुछ ही घंटों के अंतराल में मंगलवार को पार्टी के सभी पदों और विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। वहीं बात करे सीता सोरेन का पाला बदलना झारखंड की राजनीति में कोई सामान्य घटना नहीं है। पार्टी से उनकी नाराजगी की खबरें लगातार आती रही हैं। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सांसद शिबू सोरेन की बड़ी बहू हैं। उनके पति दुर्गा सोरेन की झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका रही है। जामा से लगातार तीसरी बार विधायक चुनी गईं सीता सोरेन की पीड़ा यह है कि पार्टी ने लगातार उनकी उपेक्षा की। हेमंत सोरेन 2019 में सीएम बने तो उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। उसके बाद से ही सीता का मन पार्टी से उचट गया था। अपनी ही सरकार के खिलाफ वे समय-समय पर बोलती रहीं। मनी लांड्रिंग में हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद जेएमएम ने पूरी कोशिश की कि उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बना दिया जाए। इसके लिए गांडेय के विधायक ने इस्तीफा देकर सीट भी खाली कर दी। कल्पना सोरेन को सीएम बनाए जाने की चर्चा के बीच सीता सोरेन ने भी दावेदारी ठोंक दी थी। तब उन्होंने कहा था कि परिवार की बड़ी बहू होने के नाते सीएम बनने का पहला हक उनका ही है। वैसे पार्टी में दूसरे सीनियर लीडर भी हैं, जिन्हें सीएम बनाया जा सकता है। आखिरकार कल्पना सीएम की कुर्सी पर बैठने से वंचित रह गईं और चंपई सोरेन सीएम बन गए। विश्वासमत के दौरान ही पार्टी के विक्षुब्ध नेताओं के बगावत की खबरें थीं, लेकिन चंपई सोरेन का चेहरा सामने आने पर मामला तब ठंडे बस्ते में चला गया था। अब चूंकि लोकसभा का चुनाव सिर पर है और कुछ ही महीनों बाद इसी साल झारखंड विधानसभा के चुनाव भी होने हैं, इसलिए भाजपा ने जेएमएम और कांग्रेस के नेताओं को पार्टी छोड़ कर आने की हरी झंडी दे दी है। एक तरफ जेएमएम में सीता सोरेन ही नहीं, बल्कि कई और विधायक भी नाराज हैं। वहीं लोबिन हेम्ब्रम, चमरा लिंडा जैसे चार-पांच नाम तो घोषित तौर पर गिनाए जा सकते हैं। सीता सोरेन के पाला बदलने से उन्हें भी जरूर हिम्मत बंधी होगी। वे भी पाला बदल की कड़ी को आगे बढ़ाने में शामिल हो जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। किसी को मंत्री पद नहीं मिलने से नाराजगी है तो कोई पार्टी के इर्द-गिर्द स्वार्थी लोगों के जुट जाने से नाराज है। लोबिन हेम्ब्रम की पीड़ा तो यह है कि पार्टी में उनकी कोई बात ही नहीं सुनी जाती। विधानसभा में भी उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जाता। इसलिए माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जेएमएम में बगावत का सिलसिला और तेज होगा। झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी को लेकर बने गठबंधन की सरकार है। कांग्रेस में भी नाराजगी कम नहीं है। हाल ही में चंपई सोरेन के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कांग्रेज के दर्जन भर विधायक अपनी शिकायतें लेकर पार्टी आलाकमान के पास पहुंचे थे। आलाकमान के आश्वासन से वे कितने संतुष्ट हुए, यह तो नहीं मालूम, लेकिन उनकी मांगों पर अब तक कोई सकारात्मक पहल कांग्रेस ने नहीं की है। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व और उसके कोटे से बने मंत्रियों को लेकर कांग्रेस नेताओं में नाराजगी है। पाला बदल का सिलसिला अगर जोर पकड़ता है तो कांग्रेस के कई विधायक भाजपा का दामन थाम सकते हैं। भाजपा ने धनबाद और चतरा की लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर यह सस्पेंस बना दिया है कि लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक सत्ताधारी गठबंधन के विधायक अगर आते हैं तो उन्हें एकोमोडेट किया जा सकता है। इस बार बात करे भाजपा के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती एनडीए के सहयोगी दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर थी। इसमें बिहार का पेंच सुलझाना सबसे कठिन काम था। अब यह भी सुलझ गया है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भाजपा का फोकस अब झारखंड पर होगा। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। इनमें 12 पर भाजपा और उसके सहयोगी दल आजसू का कब्जा है। जिन दो सीटों पर कांग्रेस और जेएमएम के उम्मीदवार जीते थे, उनमें कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा को भाजपा ने पहले ही अपने पाले में कर लिया है। सिर्फ राजमहल की सीट पर अभी जेएमएम के इकलौते सांसद विजय हांसदा हैं। भाजपा ने इस बार सभी सीटों पर फतह की योजना बनाई है। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा कामयाब हो जाए, इसकी तैयारी भी साथ ही चल रही है। रघुवर दास की सरकार जाने के बाद भाजपा को इस बात का मलाल है कि उसे जीती बाजी हारनी पड़ी। यही वजह है कि भाजपा ने इस बार पुख्ता तैयारी की है। सीता सोरेन के पार्टी छोड़ने से यह मैसेज चला गया है कि अब जेएमएम शिबू सोरेन के नियंत्रण वाली पार्टी नहीं रही। पारिवारिक कलह बढ़ रहा है। आने वाले समय में जेएमएम में यह कलह और बढ़ने की आशंका है।