आँगन में जब आती है।
फुदक-फुदक कर चूं-चू करती,
मीठी लोरी रोज सुनाती है।।
चिड़िया फुर्र फुर्र उड़ती है,
चोंच से दाने चुगती है।
बच्चों को है देती खाना,
सबसे पहले उठ जाती है।।
छज्जा खिड़की ढूंढें आला,
कहाँ घोंसला जाये डाला।
तिनका थामे चिमटी चोंच में,
सपनों का नीड सजाती है।।
उम्मीदों के पंख पसारकर,
नील गगन को उड़ पार कर।
जीवन की कठिनाई झेलती,
अपना हर धर्म निभाती है।।
उठो सवेरे और करो श्रम,
प्रगति इसी से आती है।
बच्चों प्यारी चिड़िया रानी,
हमको यह सिखलाती है।।
डॉ.सत्यवान सौरभ