कोई गीत मल्हार

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उषा उतरी पूरब से ,
कर सोलह श्रृंगार ।
मानो दुल्हन लिए खड़ी,
कोई हीरक हार । ।

नदियाँ तट पे जब हवा,
गए फाल्गुन राग ।
भोरें आतुर हो उठे ,
पाने मस्त पराग । ।

बस आडम्बर रूप है ,
पूजा-जप-तप ध्यान ।
मन की आँखें देखती ,
कण -कण में भगवान। ।

रोम-रोम में आप हो ,
आप रमें हर पोर ।
आप मिले सब कुछ मिला ,
बाकी है क्या और । ।

मानव को कैसे मिले ,
जीने का अधिकार ।
बना रहे हर रोज हम ,
खतरनाक हथियार । ।

नयी सुबह का आगमन,
लगे तीज-त्यौहार ।
मिलजुल के गाये सभी,
कोई गीत मल्हार । ।
(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह ‘दीमक लगे गुलाब’ से।

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