चरण सिंह
जैसा कि उम्मीद व्यक्त की जा रही थी यूपी उप चुनाव में ठीक उसी तरह से परिणाम आया है। क्योंकि इन उप चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। इसलिए उन्हें हर हाल में छह से सात सीटें जीतनी थी। योगी आदित्यनाथ का बटेंगे तो कटेंगे नारा चल निकाला। यही वजह रही कि रुझान में 7-2 की बढ़त पर ही उन्होंने बयान जारी कर दिया। उनका कहना था कि नहीं बटेंगे तो सेफ रहेंगे। मतलब उनका नारा जीत गया। ऐसा भी नहीं है कि सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से ही योगी आदित्यनाथ ने इन चुनाव में बढ़त बनाई है।
दरअसल सपा मुखिया अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव की तरह आरक्षण और संविधान के मुद्दे पर जातीय समीकरण लगाये बैठे थे। अखिलेश यादव यह बात समझने को तैयार नहीं थे कि वह विपक्ष की भूमिका में विफल साबित हो रहे हैं। वह सपा को बसपा के तरीके से चलाने लगे हैं। उनके नेतृत्व में सपा कार्यकर्ता आंदोलन करना भूल बैठे हैं।सपा कार्यकर्ता किसानों और मजदूरों के आंदोलनों को समर्थन देते नजर आते रहे हैं। पर खुद सपा ने न तो किसानों के लिए कोई आंदोलन किया और न ही मजदूरों के लिए ही। जो अखिलेश यादव ने पीडीए बनाया उस पीडीए के लिए भी अखिलेश यादव ने कोई खास संघर्ष करने नहीं दिखाई दिये।
महाराष्ट्र में भी यही हुआ। चाहे उद्धव ठाकरे की पार्टी हो, कांग्रेस हो या फिर एनसीपी, इनमें से कोई पार्टी एकनाथ शिंदे सरकार के खिलाफ आंदोलन करती नहीं देखी गई। ये सभी नेता बिल्ली के भाग से छींका टूटने का इंतजार करते रहे। भाजपा नेता सत्ता में रहते हुए भी लोगों से संपर्क करते दिखाई दिये। विशेषकर आरएसएस की टीमें लगातार लोगों के संपर्क में रहीं। यह भी कहा जा सकता है कि अब लोग वंशवाद पर टिके नेतृत्व को नकार रहे हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे को तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव पर लोगों ने विश्वास नहीं किया।
उत्तर प्रदेश में तो योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होते हुए भी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से ज्यादा मेहनत करते देखे जाते रहे हैं। अखिलेश यादव तो आज की तारीख में भी अपने को मुख्यमंत्री से कम नहीं मानते हैं। उनका अपने कार्यकर्ताओं से वही व्यवहार है जो उनके मुख्यमंत्री रहते हुए था। उनके खुद के कार्यकर्ता कहते सुने जाते हैं कि आज भी उनके पास अपने कार्यकर्ताओं के लिए समय नहीं है।
अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के समय के अधिकतर नेताओं को दरकिनार कर रखा है। प्रॉपर्टी डीलर और ठेकेदार टाइप के लोग अपने साथ सटा रखे हैं। ऐसे में सपा के जमीनी कार्यकर्ता पार्टी से दूर होते जा रहे हैं। उधर योगी आदित्यनाथ का व्यक्तित्व इस तरह का हो चुका है कि वह विपक्ष से तो डरते ही नहीं हैं साथ ही भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के भी किसी दबाव में नहीं आते हैं। उत्तर प्रदेश की हार का ठीकरा योगी आदित्यनाथ के सिर फोड़ते हुए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य योगी आदित्यनाथ के खिलाफ काफी समय तक मोर्चा खोले रखे।इस विरोध में उन्होंने दूसरे डिप्टी सीएम बृजेश पाठक, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह के साथ ही सहयोगी दल के नेता अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर को भी लगा लिया। वह योगी आदित्यनाथ ही थे जो दबे नहीं और अंतत: विरोधियों को झुकना पड़ा।