नाटक की कमजोर पटकथा से प्रधानमंत्री की लोकप्रियता की कलई उतरी

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प्रधानमंत्री की लोकप्रियता
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रेंद्र दामोदरदास मोदी भारत के 15वें प्रधानमंत्री हैं। उनसे पहले 14 प्रधानमंत्री हुए हैं और उनमें से किसी को भी सुरक्षा व्यवस्था में चूक या कमी के चलते कभी भी अपना दौरा रद्द नहीं करना पड़ा। इस लिहाज से नरेंद्र मोदी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हो गए जो कथित तौर पर सुरक्षा कारणों से अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके। बावजूद इसके कि वे अब तक के सर्वाधिक सुरक्षा प्राप्त प्रधानमंत्री हैं और सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री होने का दावा तो वे खुद ही करते हैं।  इस अभूतपूर्व स्थिति के लिए प्रधानमंत्री और उनके गृह मंत्रालय ने सीधे-सीधे पंजाब सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब से दिल्ली लौटते वक्त बठिंडा हवाई अड्डे पर राज्य के शीर्ष अधिकारियों से तल्ख अंदाज में कहा, ”अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया।’’
मोदी ने अपने जिंदा लौट आने की बात इस अंदाज में कही, जैसे उन पर वहां आंदोलित किसानों ने जानलेवा हमला कर दिया हो, जिससे वे किसी तरह बच कर निकल आए हो। आपदा को अवसर में बदलने की बात तो मोदी अक्सर कहते रहते हैं लेकिन यहां वे कृत्रिम आपदा पैदा कर उसे अवसर में बदलते दिखे। उनकी तरफ या उनके काफिले पर किसी ने कंकर तक नहीं उछाला लेकिन उन्होंने बठिंडा हवाई अड्डे पर अपने जिंदा लौट आने का शोशा छोड़कर अपनी पार्टी के नेताओं-प्रवक्ताओं, मंत्रियों और दिन-रात अपने कीर्तन में मगन रहने वाले टीवी चैनलों को तमाशा करने का मटेरियल उपलब्ध करा दिया।
वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी जान को खतरा बताया है। देश में जब भी कोई चुनाव नजदीक आता है या प्रधानमंत्री मोदी की साख पर संकट गहराने लगता है तो यह खबर आती है कि प्लांट कराई जाती है कि प्रधानमंत्री की जान को खतरा है। फिर कुछ गिरफ्तारियां होती हैं। ढिंढोरची मीडिया के लिए ये खबरें टीआरपी बटोरने का एक इवेंट बन जाती हैं। ऐसा पहले चार-पांच मर्तबा हो चुका है। इस बार भी इसमें नया सिर्फ यह हुआ है कि प्रधानमंत्री ने खुद अपनी जान को खतरा बताया है।
अपना दौरा अधूरा छोड़ कर लौटे प्रधानमंत्री का यह बयान आते ही सरकार के ढिंढोरची टीवी चैनलों ने पंजाब सरकार और कांग्रेस निशाने पर लेते हुए प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में चूक का शोर मचाना शुरू कर दिया। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री के दौरे पर ऐसी लापरवाही अस्वीकार है और इसकी जवाबदेही तय की जाएगी। अन्य केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं के भी इसी आशय के बयान आने लगे। कांग्रेस छोड़ कर भाजपा के हमजोली बने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो पंजाब सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग तक कर डाली।

सवाल है कि क्या वाकई सुरक्षा व्यवस्था में कोई चूक थी जिसकी वजह से प्रधानमंत्री को अपना दौरा रद्द करना पड़ा? अगर प्रधानमंत्री को प्राप्त सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया जाए तो पता चलता है कि यह संभव ही नहीं कि प्रधानमंत्री सड़क जाम में फंस जाए और इस वजह से उन्हें वापस लौटना पड़े। प्रधानमंत्री देश के जिस भी हिस्से में जाते हैं तो वहां उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संबंधित राज्य की पुलिस या सीआईडी की नहीं बल्कि स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप यानी एसपीजी की होती है।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में एसपीजी कमांडो के अलावा इंटेलीजेंस ब्यूरो आईबी, मिलिट्री इंटेलीजेंस, सेंट्रल पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों सहित कई महत्वपूर्ण अधिकारी भी तैनात रहते हैं। यह पूरी सुरक्षा पांच चक्रीय होती है। राज्य की पुलिस और सीआईडी इन केंद्रीय एजेंसियों के संपर्क में रहती हैं और इन्हें आवश्यक सूचनाएं और सलाहें मुहैया कराती हैं, जिन्हें मानना या न मानना केंद्रीय एजेंसियों के विवेक पर निर्भर होता है।
प्रधानमंत्री को जहां भी जाना होता है, उनके जाने से कई दिनों पहले इन सभी एजेंसियों के आला अधिकारी उस इलाके पर पहुंच जाते हैं और सारी सुरक्षा व्यवस्था अपने हाथों में ले लेते हैं। सुरक्षा इतनी चाकचौबंद रहती है कि उसकी जानकारी राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों तक को नहीं रहती है।
पंजाब लंबे समय तक अशांत रहा है, लिहाजा वहां आईबी का बहुत बड़ा नेटवर्क काम करता है। पाकिस्तान से लगा सीमांत प्रदेश होने के कारण अन्य केंद्रीय एजेंसियां भी पंजाब में बेहद सक्रिय रहती हैं। हाल ही में वहां अंतरराष्ट्रीय सीमा के अंदर बीएसएफ यानी सीमा सुरक्षा बल का निगरानी एरिया भी 15 किलोमीटर से बढा कर 50 किलोमीटर तक लागू कर दिया गया है। इन सब बातों को देखते हुए यह कैसे संभव है कि आईबी समेत तमाम केंद्रीय एजेंसियों को इस बात की जानकारी न हो कि प्रधानमंत्री जिस रास्ते से गुजरेंगे वहां आंदोलित किसान सड़क जाम कर सकते हैं?
प्रधानमंत्री की सुरक्षा दस्ते के लोग उस इलाके में एक हफ्ते से वहां मौजूद थे तो क्या उन्होंने इस पर विचार नहीं किया होगा कि प्रधानमंत्री का काफिला अगर सड़क मार्ग से गुजरेगा तो उसके सुरक्षा इंतजाम और सुरक्षा मानक क्या होंगे? प्रधानमंत्री के आने-जाने के मार्ग को 48 घंटे पहले एसपीजी अपने कब्जे में ले लेती है और उस इलाके के चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा ऐसे इंतजाम किए जाते हैं कि परिंदा भी पर नहीं मार सके, ऐसे में सवाल उठता है कि वहां आंदोलित किसान कैसे जमा हो गए? सवाल यह भी है कि इस बारे में केंद्रीय खुफिया एजेंसियों का अलर्ट क्या था और उस पर अमल क्यों नहीं हुआ?
दरअसल प्रधानमंत्री के सुरक्षा दस्ते के लोग आमतौर पर राज्य सरकारों के अधिकारियों की किसी भी सलाह को मानने में अपनी तौहीन समझते हैं। यही वजह है कि जब पंजाब सरकार के आला अफसरों ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा टीम को दूसरे रास्ते से फिरोजपुर ले जाने की सलाह दी तो उसे नजरअंदाज कर दिया गया। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पूरे घटनाक्रम पर खेद जताते हुए कहा है कि उनकी सरकार के अधिकारियों प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से ले जाने का कार्यक्रम टालने की सलाह दी थी, लेकिन प्रधानमंत्री के सुरक्षा दस्ते ने यह सलाह नहीं मानी। जब प्रधानमंत्री ने सड़क मार्ग से आना तय कर लिया तो हमारे अधिकारियों ने उन्हें दूसरे रास्ते से ले जाने की सलाह दी, लेकिन यह सलाह भी नजरअंदाज कर दी गई। समझा जा सकता है कि खुद को बहुत सुपीरियर समझने वाले प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात केंद्रीय एजेंसियों के आला अफसरों ने पंजाब के अफसरों को झिड़क दिया होगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना कि जब पंजाब के पुलिस महानिदेशक ने भरोसा दे दिया कि बठिंडा सड़क मार्ग क्लियर है, आप जा सकते है, तभी प्रधानमंत्री का काफिला वहां के लिए रवाना हुआ। लेकिन सवाल है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात अफसरों के पास आईबी के इनपुट क्या थे या नहीं थे कि उस रास्ते की स्थिति क्या है? प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात एजेंसियां अगर बठिंडा जिले के भाजपा नेताओं से ही संपर्क कर लेती तो उन्हें पता चल जाता कि उस रास्ते से उनके के काफिले को ले जाना निरापद नहीं है। बठिंडा में प्रधानमंत्री का स्वागत करने वाले भाजपा के तमाम नेता उसी रास्ते से निकले थे, इसलिए यह कैसे हो सकता है कि उन्हें वास्तविकता की जानकारी न हो?
कहा जा सकता है कि अगर प्रधानमंत्री की सुरक्षा में कोई चूक हुई है तो उसके लिए उनके सुरक्षा अधिकारियों और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की लापरवाही जिम्मेदार है। चूंकि ये सभी एजेंसियां केंद्रीय गृह मंत्रालय के मातहत काम करती हैं, लिहाजा गृह मंत्री अमित शाह भी इस जिम्मेदारी ने बरी नहीं हो सकते।
लेकिन यह मामला सुरक्षा में चूक का नहीं बल्कि पूरी तरह प्रधानमंत्री की पार्टी के राजनीतिक प्रबंधन से जुड़ा हुआ है। दरअसल प्रधानमंत्री को फिरोजपुर में जिस रैली को संबोधित करना था वहां एक लोगों को जुटाने का इंतजाम किया गया था, लेकिन चूंकि भाजपा में भाजपा की कोई ताकत नहीं है, इसलिए इतने लोगों का जुटना आसान नहीं था। फिर भी रैली शुरू हो चुकी थी, जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के भाषण भी हुए। जिस समय ये नेता भाषण दे रहे थे उस समय महज दो-ढाई हजार लोग ही जुट पाए थे।
टीवी चैनल इस रैली का सीधा प्रसारण भी कर रहे थे, जिसमें साफ दिख रहा था कि हजारों कुर्सियां खाली पड़ी हैं। लग नहीं रहा था कि प्रधानमंत्री के आने तक अपेक्षित भीड़ जुट जाएगी। इस बात की सूचना प्रधानमंत्री तक भी पहुंच चुकी थी। अब ऐसी फीकी रैली को तो प्रधानमंत्री संबोधित कर नहीं सकते थे, लिहाजा आनन-फानन में सड़क मार्ग से जाने का कार्यक्रम बनाया गया और सुरक्षा में चूक को कारण बता कर अब तक के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने अपना वहां का दौरा निरस्त कर उसके लिए पंजाब सरकार और प्रकारांतर से कांग्रेस के माथे ठीकरा फोड़ने की नाटकीय कोशिश की।
पूरे घटनाक्रम का लब्वोलुआब यह है कि सुरक्षा में कोई चूक नहीं थी। चूक रही तो सिर्फ और सिर्फ नाटक की पटकथा में। इस कमजोर पटकथा से प्रधानमंत्री की उस लोकप्रियता की कलई भी उतर गई जिसका बखान वे खुद भी और उनके ढिंढोरची टीवी चैनल भी करते रहते हैं।

पार्थ जैन

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