झटके दर झटके, बीच लोकसभा चुनाव में लालू की पार्टी को लगी नई बीमारी!

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दीपक कुमार तिवारी

पटना। इन दिनों राष्ट्रीय जनता दल में इस्तीफों की झड़ी लगी हुई है। पार्टी से नेताओं का मोह भंग हो रहा है। राजद से हाथ झटक कर दूसरी पार्टियों का साथ देते नजर आ रहे हैं। इनमें कई नए नेता भी शामिल हैं तो कई पुराने भी। कुछ नेताओं ने टिकट न मिलने की वजह से पार्टी से किनारा किया तो कुछ को अब आरजेडी में अपना भविष्य नहीं दिखाई देता।

हाल के दिनों में आरजेडी से हुए इस्‍तीफों की वजह से सवाल उठना लाजमी है। ये अलग बात है कि इन इस्‍तीफों पर तेजस्‍वी यादव या पार्टी के सिपहसालार कुछ भी नहीं बोल रहे। मगर, अंदरखाने में कुछ-न-कुछ गड़बड़ी की बात की जा रही है। हाल के दिनों में वृषण पटेल, बूलो मंडल, करुणा सागर, रामा सिंह, देवेंद्र यादव, गणेश प्रसाद जैसे कई नेताओं ने साथ छोड़ दिया है तो शहाबद्दीन की पत्नी हिना शहाब नाराज दिख रही हैं।

लोक सभा चुनाव 2024 के दौरान तेजस्‍वी यादव लगातार रैलियां कर रहे हैं। वो बहुत ज्‍यादा व्‍यस्‍त हैं। चुनाव प्रचार में उनका पूरा परिवार लगा हुआ है। उनकी दो बहनें रोहिणी आचार्य और मीसा भारती चुनावी मैदान में हैं। लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, तेजस्‍वी यादव उनके लिए वोट मांग रहे हैं। ये अलग बात है कि तेजस्‍वी यादव बिहार में लोकसभा की 40 की 40 सीट जीतने के दावे कर रहे हैं। महागठबंधन की मजबूती की बात कह रहे हैं। लेकिन अंदर ही अंदर सबकुछ ठीकठाक नहीं लग रहा।

पिछले दिनों तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे करुणा सागर ने राष्ट्रीय जनता दल की सदस्यता छोड़ दी। करुणा सागर के आरजेडी में शामिल होने का खूब प्रचार किया गया था। पटना में करुणा सागर के राजद में आने के पोस्टर लगे थे। कुछ समय से वो तेजस्वी यादव के साथ नजर नहीं आ रहे थे। एक झटके में उन्‍होंने लालू यादव की पार्टी राजद को छोड़ महागठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस का दामन थाम लिया।

करुणा सागर राजद में प्रवक्ता पद पर थे। अचानक उनका कांग्रेस में शामिल होना कई सवाल खड़े करता है। जहानाबाद निवासी करुणा सागर भूमिहार जाति से आते हैं। उनकी मंशा जहानाबाद से चुनाव लड़ने की थी। चाहत पूरी नहीं होने पर उन्‍होंने अब आरजेडी से किनारा कर लिया। हालांकि, करुणा सारण के कांग्रेस जॉइन करने पर राजद की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

आरजेडी के पुराने नेताओं में गिने जाने वाले वृषिण पटेल ने भी नाता तोड़ लिया। उन्‍होंने आरजेडी से अलग होते वक्‍त बड़े भावुक मन से ये बात कही कि आरजेडी में अब लोकतंत्र नहीं बचा। उनके इस बयान के व्‍यापक मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि आरजेडी केवल एक परिवार की पार्टी होकर रह गई है। चर्चा इस बात की है कि पार्टी के भीतर लंबे समय से काम कर रहे कई पुराने नेता आरजेडी के साथ अपना जीवन लगा चुके हैं।

लेकिन आरजेडी का शीर्ष नेतृत्‍व परिवार से आगे बढ़ कर पुराने कार्यकर्ता और नेताओं की ओर देखने को तैयार ही नहीं है।पिछले एक महीने के दौरान आरजेडी के कई नेताओं के अलग होने और पाला बदलने वालों में रामा सिंह का नाम महत्‍वपूर्ण है। रामा सिंह ने तीन दिन पहले ही पार्टी की सदस्‍यता और सभी पदों से खुद को अलग कर लिया। अब वो चिराग पासवान की पार्टी का हिस्‍सा बन गए हैं।

पार्टी छोड़ते वक्‍त भी रामा सिंह ने आरजेडी पर गंभीर आरोप लगाए थे। इतना ही नहीं उन्‍होंने अपनी पत्‍नी वीणा सिंह के पार्टी छोड़ने की बात कह दी है। वीणा सिंह महनार से आरजेडी की विधायक हैं। रामा सिंह शिवहर या वैशाली से चुनाव लड़ना चाहते थे। मगर, उन्‍हें टिकट नहीं दिया गया। जिसका नतीजा ये है कि रामा सिंह ने खुद को पार्टी से अलग कर लिया। हालांकि, पार्टी छोड़ते वक्‍त उन्‍होंने ये बात जरूर कही कि पार्टी में लोकतंत्र खत्‍म हो गया है।

पार्टी अपने सिद्धांतों से भटक गई है।आरजेडी के पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार उर्फ बूलो मंडल ने भी आरजेडी को तगड़ा झटका दिया है। भागलपुर से सांसद रहे बूलो मंडल ने अब जेडीयू की सदस्‍यता ले ली है। लालू की पार्टी से चुनाव लड़कर बीजेपी के शहनवाज हुसैन को भागलपुर से हराने वाले बूलो मंडल ने अब आरजेडी से किनारा कर लिया है। माना जा रहा है कि बूलो मंडल भागलपुर की लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन सीट शेयरिंग में ये सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। जिसके चलते बूलो मंडल आरजेडी से नाराज चल रहे थे।

बूलो मंडल के जेडीयू में शामिल होने के बाद इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि अब भागलपुर में अजय मंडल की स्थिति और मजबूत हो गई है।इधर, 15 दिनों के भीतर पार्टी छोड़ने वालों में एक महत्‍वपूर्ण नाम देवेंद्र प्रसाद यादव का भी है। उन्‍होंने भी 17 अप्रैल को पार्टी की सदस्‍यता और सभी पदों से खुद को मुक्‍त कर लिया। आरजेडी के लिए किसी झटके से कम नहीं है। देवेंद्र प्रसाद यादव आरजेडी के पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। देवेंद्र यादव ने अपना इस्‍तीफ पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष को भेजा। उन्‍होंने कहा कि पार्टी अपने सिद्धांतों से भटक गई है।

देवेंद्र यादव ने कहा कि पार्टी ‘राज’ करने की ‘नीति’ पर चल रही है। जबकि, ‘राज’ और ‘नीति’ दोनों का सामंजस्‍य बैठाना जरूरी होता है। देवेंद्र यादव ने आयातित नेताओं को टिकट दिए जाने पर नाराजगी जाहिर की। देवेंद्र यादव भी आरजेडी से टिकट चाहते थे।राजद के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधान पार्षद गणेश भारती ने भी मंगलवार की देर रात पार्टी को टाटा-बाय-बाय कह दिया। बुधवार को इसकी सूचना सार्वजनिक हुई। गणेश भारती नोनिया समाज से आते हैं और उन्हें राजद की तरफ से अपना स्टार प्रचारक भी बनाया गया था। स्टार प्रचारक होते हुए भी उन्होंने पार्टी के तमाम पदों से इस्तीफा दे दिया। जिसे लेकर अब चर्चाएं होने लगी हैं।

माना जा रहा है औपचारिक रूप से आरजेडी की कमान भले ही लालू प्रसाद यादव के हाथ में है लेकिन अघोषित रूप से लालू ने सभी फैसलों की जिम्‍मेदारी तेजस्‍वी यादव को ही सौंप दी है। तेजस्‍वी यादव अब आरजेडी को अपने तरीके से चलाना चाहते हैं। जिसका नतीजा है कि पार्टी के पुराने नेता जिन्‍होंने पार्टी के साथ लंबा वक्‍त गुजारा और अपना जीवन लगाया, अब उन्‍हें पार्टी में अपना भविष्‍य नहीं दिखाई दे रहा है। जैसा कि पार्टी छोड़ने वाले ज्‍यादातर नेताओं ने अनदेखी का आरोप लगाया।

पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के बयानों को सच माना जाए तो ये कहा जा सकता है तेजस्‍वी यादव नए प्रयोग कर रहे हैं। जिसमें वो नए लोगों पर भरोसा करते नजर आ रहे हैं। लिहाजा, आरजेडी से पुराने और कद्दावर नेताओं के अलावा हाल में पार्टी से जुड़े नेता-प्रवक्‍ता भी अब किसी अन्‍य पार्टी को अपना ठिकाना बनाने में भलाई समझ रहे हैं।

ऐसे में तेजस्‍वी यादव का नेतृत्‍व भी सवालों के घेरे में है। रामा सिंह, वृषिण पटेल, बूलो मंडल जैसे नेताओं का किनारा करना अपने आप में सवाल खड़े करता है। वहीं, हिना शहाब ने इस बार बिहार लोकसभा चुनाव के समय से ही आरजेडी से दूरी बनाई हुई हैं। हिना शहाब दो बार आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं। लेकिन उन्‍हें कोई सफलता नहीं मिली। अब वो निर्दलीय मैदान में हैं।

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