हारा-थका किसान

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डॉ. सत्यवान ‘सौरभ’

बजते घुंघरू बैल के, मानो गाये गीत ।
चप्पा-चप्पा खिल उठे, पा हलधर की प्रीत ।।

देता पानी खेत को, जागे सारी रात ।
चुनकर कांटे बांटता, फूलों की सौगात ।।

आंधी खेल बिगाड़ती, मौसम दे अभिशाप ।
मेहनत से न भागता, सर्दी हो या ताप।।

बदल गया मौसम अहो, हारा-थका किसान ।
सूखे-सूखे खेत हैं, सूने बिन खलिहान ।।

चूल्हा कैसे यूं जले, रही न कौड़ी पास ।
रोते बच्चे देखकर, होता खूब उदास ।।

ख़्वाबों में खिलते रहे, पीले सरसों खेत ।
धरती बंजर हो गई, दिखे रेत ही रेत ।।

दीपों की रंगीनियाँ, होली का अनुराग ।
रोई आँखें देखकर, नहीं हमारे भाग ।।

दुख-दर्दों से है भरा, हलधर का संसार ।
सच्चे दिल से पर करे, ये माटी से प्यार ।।

(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

 

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