नई दिल्ली, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी संबधी स्थायी समिति ने इंटरनेट को आम नागरिकों के लिए रोजमर्रा के जीवन में अपरिहार्य बताते हुए सरकार से हर मामले में इंटरनेट शटडाउन नहीं करने की सिफारिश की है। दूरसंचार सेवाओं/इंटरनेट का निलंबन और इसके प्रभाव विषय पर लोक सभा में पेश अपनी 26वीं रिपोर्ट में संसदीय समिति ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि इंटरनेट का उपयोग करना भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यापार या कारोबार करने के संवैधानिक अधिकार के तहत ही सरंक्षित है, लेकिन इंटरनेट शटडाउन को लेकर कोई एसओपी या समान दिशा निर्देश नहीं होने और अन्य सुरक्षा उपायों में कमी की वजह से राज्य सरकारों को कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी भी सामान्य अनुचित स्थिति में इंटरनेट शटडाउन का सहारा लेने का मौका मिल जाता है।
शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने सरकार से इंटरनेट शटडाउन को लेकर सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए जाने वाले तौर तरीकों को लेकर एक समान एसओपी जारी करने की सिफारिश की है। इसके साथ ही समिति ने दूरसंचार विभाग और गृह मंत्रालय दोनों से देश में इंटरनेट शटडाउन के सभी आदेशों का एक केंद्रीकृत डेटाबेस रखने के लिए जल्द से जल्द एक तंत्र की स्थापना करने की भी सिफारिश की है।
‘सार्वजनकि आपातकाल’ और ‘लोक सुरक्षा’ को परिभाषित करने और इसके प्रावधानों एवं घटकों को तय करने की सिफारिश करते हुए समिति ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि परीक्षा में नकल रोकने और स्थानीय अपराधों को टालने के लिए भी इंटरनेट शटडाउन का सहारा लिया जा रहा है।
समिति ने दूरसंचार विभाग से एक मजबूत निगरानी तंत्र बनाने की भी सिफारिश की है, ताकि राज्य या केंद्र शासित प्रदेश सीआरपीसी की धारा-144 का इस्तेमाल कर इंटरनेट बंद नहीं कर सके। इंटरनेट बंद करने का कोई भी आदेश 15 दिनों से अधिक समय तक लागू नहीं किया जा सकता, के नियम का जिक्र करते हुए समिति ने जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक इंटरनेट बंद रहने के बारे में चिंता भी व्यक्त की, हालांकि सरकार ने समिति को बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से ऐसा किया गया था।
इंटरनेट बंद होने की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान और लोगों की असुविधा का जिक्र करते हुए समिति ने दूरसंचार निलंबन पर निर्णय की समीक्षा करने वाली समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ाने और इसके आदेशों का प्रामाणिक आंकड़ा रखने की सिफारिश भी सरकार से की है।
समिति ने इंटरनेट शटडाउन और सांप्रदायिक दंगों के बीच में संपर्क का पता लगाने के लिए किसी तरह का अध्ययन नहीं होने के सरकार के जवाब का जिक्र करते हुए सरकार से पूरे इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने की बजाय फेसबुक, व्हाट्सएप, टेलीग्राम जैसे साधनों पर प्रतिबंध लगाने के विकल्प तलाशने की सिफारिश करते हुए कहा है कि दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों द्वारा इस संबंध में अपनाए जा रहे नियमों का अध्ययन भी विभाग को करना चाहिए।