समाजवादी पार्टी इस चुनाव में ओबीसी वोटों को अपनी ओर खींचती दिख रही है। वहीं बीजेपी हिन्दुत्व पर ज्यादा फोकस करती दिख रही है।
द न्यूज 15
लखनऊ। पश्चिमी यूपी में चुनाव प्रचार की अभियान खुद गृहमंत्री अमित शाह संभाले हुए हैं। शाह के मैदान में उतरने से ऐसा लग रहा है जैसे सपा-रालोद गठबंधन होने से बीजेपी अब परेशान दिख रही है, कम से कम पश्चिमी यूपी में शाह की सक्रियता को देखकर तो ऐसा ही कहा जा रहा है। अखिलेश की नजर जहां इसबार अपने परंपरागत वोटों के अलावा ओबीसी पर है तो वहीं बीजेपी फिर से एक बार हिन्दुत्व के मुद्दे पर प्रमुखता से जाती दिख रही है।
कई ओबीसी नेताओं के बीजेपी छोड़कर सपा में जाने के बाद शाह ने तुरंत चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथ में ले ली है। ओबीसी के कद्दावर नेताओं के सपा में जाने पर जाहिर है कि अखिलेश को काफी मदद मिलेगी। मुस्लिम-यादव वोटबैंक से आगे इस बार अखिलेश की नजर ओबीसी वोटों पर है, जिसे वो अपने पाले में करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। वहीं पश्चिमी यूपी में जाटों के बीच रालोद का काफी दबदबा है, और अखिलेश यहां भी बाजी मार चुके हैं। सपा और आरएलडी का गठबंधन बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ा कर रहा है।
अखिलेश के सामने इस बार बड़ी चुनौती है, यह पहला चुनाव है जिसमें वो अपने पिता मुलायम सिंह यादव के साये से अलग होकर चुनावी मैदान में हैं। मुलायम सिंह यादव अब सक्रिय राजनीति में हैं नहीं। ओबीसी तक पहुंच और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के साथ गठबंधन दोनों में, अखिलेश ने एक नया सपा का चेहरा दिखाया है। पश्चिमी यूपी में यह गठबंधन जाटों और मुसलमानों को भी साथ लाता है। दोनों इस क्षेत्र के दो बड़े समूह हैं, जिनके संबंध 2013 के दंगों में तनावपूर्ण हो गए थे।
करहल सीट पर भारतीय जनता पार्टी का चौंकाने वाला दांव : इस बार के चुनाव में पीएम मोदी की लहर कुछ हद तक कम होने के साथ ही ओबीसी वोटों पर बीजेपी की पकड़ भी ढीली होती दिख रही है। ओबीसी राज्य की आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक है। 2017 में, सपा ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 21.82 प्रतिशत वोटों के साथ 47 सीटें जीती थीं और रालोद ने 277 सीटों पर चुनाव लड़ा था उसके हिस्से सिर्फ 1 सीट आई थी और 1.78 प्रतिशत वोट मिला था। बीजेपी को 39.7% वोट मिले थे।
फतेहाबाद में सब्जी की दुकान चलाने वाले सपा समर्थक भवसिंह बताते हैं कि इस पर सपा की रणनीति काम कर रही है, उसका जनाधार बड़ा होता जा रहा है। अब जब जाट हमारे साथ हैं तो कई समुदाय हमारा समर्थन कर रहे हैं। उनमें से कुछ 2017 और 2019 में भाजपा में चले गए थे। एक अन्य सब्जी विक्रेता लक्ष्मण महोरे भी कुछ ऐसा ही कहते हैं। वो बताते हैं कि कीमतों में वृद्धि और बेरोजगारी बड़े मुद्दे हैं। यहां तक कि दलित भी इस चुनाव में सपा-रालोद को जीतते देखना चाहते हैं।
योगी पर राजभर का तंज : आगरा में ट्रक सर्विस सेंटर चलाने वाले महेश चंद यादव भी इस बात से सहमत हैं कि समीकरण हो रहा है, लेकिन उनका कहना है कि इससे सपा-रालोद की संभावनाओं के बारे में उनमें उत्साह नहीं है। उन्होंने कहा- “इससे कड़ा मुकाबला करने के अलावा ज्यादा फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। भाजपा की हार की संभावना नहीं है क्योंकि उसे शहरी समर्थन प्राप्त है और जबकि पिछड़े लोग इसके बारे में मुखर नहीं हैं, भाजपा के पास राम मंदिर के नाम पर एक वोट बैंक है।”
मथुरा में सड़क किनारे एक छोटा सा होटल चलाने वाले जवार सिंह के मन में किसान कानूनों को लेकर भाजपा के खिलाफ गुस्सा भरा दिखा। उन्होंने कहा- “जाट किसान पहले से ही योगी सरकार से खफा थे, फिर आ गया पुलिस का अत्याचार। जाट स्वाभिमानी लोग हैं। वे बीजेपी को कभी माफ नहीं करेंगे”।
2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 384 में से 312 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब कुर्मी, मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, राजभर और निषाद जैसे गैर-यादव ओबीसी समुदायों का उसे समर्थन मिला था। तब भाजपा ने हिन्दुत्व के अलावा विकास और नौकरियों का वादा किया था। अब, ओबीसी के एसपी-आरएलडी की ओर रुख करने के अलावा बेरोजगारी भाजपा के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। इस बीच, मुस्लिम वोट के एसपी-आरएलडी को जाने की उम्मीद है। आगरा शहर में एक दिहाड़ी मजदूर का काम करने वाले अहमद कहते हैं- “मुसलमान इस बार अपने वोटों को बंटने नहीं देंगे। वे केवल सपा को वोट देंगे।” हालांकि, आजमगढ़ के अयाज आसिफ, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि कम से कम कुछ मुस्लिम वोट असदुद्दीन ओवैसी के एआईएमआईएम को जाएंगे। कासगंज उन निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है जहां भाजपा को आसानी जीत की उम्मीद है। एक ईंट भट्टे पर एक मुनीम सौरव वर्मा कहते हैं- “इस निर्वाचन क्षेत्र में, भाजपा को लोध राजपूतों, बघेलों, ठाकुरों और राजपूतों का समर्थन प्राप्त है। इसके वोट आधार में कोई बड़ा सेंध नहीं है।”