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कभी बने है छाँव तो, कभी बने हैं धूप !
सौरभ जीती बेटियाँ, जाने कितने रूप !!
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जीती है सब बेटियाँ, कुछ ऐसे अनुबंध !
दर्दों में निभते जहां, प्यार भरे संबंध !!
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रही बढाती मायके, बाबुल का सम्मान !
रखती हरदम बेटियाँ, लाज शर्म का ध्यान !!
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दुनिया सारी छोड़कर, दे साजन का साथ !
बनती दुल्हन बेटियाँ, पहने कंगन हाथ !!
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छोड़े बच्चों के लिए, अपने सब किरदार !
माँ बनती है बेटियाँ, देती प्यार दुलार !!
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माँ ,बहना, पत्नी बने, भूली मस्ती मौज !
गिरकर सम्भले बेटियाँ, सौरभ आये रोज !!
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कदम-कदम पर चाहिए, हमको इनका प्यार !
मांग रही क्यों बेटियाँ, आज दया उपहार !!
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प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार