किस देवता के थे कितने और कौन-से पुत्र

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सोहन पाल राणा 

हिन्दू धर्म में प्राचीनकाल के मानवों में देव (सुर) और दैत्य (असुर) दो तरह के भेद के अलावा और भी कई तरह के भेद थे। जैसे दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सरा, किन्नर, वानर, नाग, किरात, विद्याधर, चारण, ऋक्ष, भल्ल, वसु, सिद्ध, पिशाच, मरुद्गण, भाट आदि। हिन्दुओं के प्रारंभिक इतिहास में उपरोक्त सभी जातियों के लोगों ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ज्ञान, विज्ञान, ज्योतिष आदि की स्थापना की और जिनके कारण कई तरह की घटनाओं का जन्म हुआ।

हिन्दुओं के प्रमुख वंश, अपने पूर्वजों के

हजारों वर्षों के इतिहास कालक्रम के चलते ये सभी लोग अब मिथकीय माने जाते हैं, लेकिन इस पर अच्छे से शोध करेंगे तो पता चलेगा कि अपने-अपने वंश को आगे बढ़ाने, भूमि पर साम्राज्य स्थापित करने और अपने रक्त की शुद्धता बनाने रखने की एक जिद थी जिसके चलते संघर्ष का जन्म हुआ और इसी संघर्ष से नई-नई जातियों और प्रजातियों का जन्म होता गया। खैर…!

अब जानते हैं प्रारंभिक काल के इन देवताओं और लोगों के पुत्रों के बारे में…

ब्रह्मा के पुत्र :ब्रह्मा के पुत्रों की संख्‍या पुराणों में निश्चित नहीं है। ब्रह्मा की तीन पत्नियां के नाम मिलते हैं। सावित्री, गायत्री और सरस्वती। ब्रह्मा के प्रमुख रूप से मानस पुत्रों की चर्चा ही अधिक होती है।

ये पुत्र हैं 1.मारिचि, 2.अत्रि, 3.अंगिरस, 4.पुलस्त्य, 5.पुलह, 6.कृतु, 7.भृगु, 8.वशिष्ठ, 9.दक्ष, 10.कंदर्भ, 11.नारद, 12.इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार, 13.स्वायंभुव मनु और शतरुपा, 14.चित्रगुप्त। इस तरह विष्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, आठवसु, चार कुमार, 14 मनु, 11 रुद्र, पुलस्य, पुलह, अत्रि, क्रतु, अरणि, अंगिरा, रुचि, भृगु, दक्ष, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, नारद, मरिचि, अपान्तरतमा, वशिष्‍ट, प्रचेता, हंस, यति आदि।

उपरोक्त सभी पुत्रों के ही वंशज आज भारत में निवास करते हैं।…मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, कर्तु, पुलस्त्य तथा वशिष्ठ-ये सात ब्रह्माजी के पुत्र उत्तर दिशा में स्थित है, जो स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं।

विष्णु के पुत्र:  कहते हैं कि विष्णु के अप्सराओं से जन्में 100 पुत्र थे। कामदेव को भी भगवान विष्णु के पुत्र माना जाता है। हालांकि विष्णु की पत्नी लक्ष्मी से प्रमुख रूप से 4 पुत्र आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत थे। इसके अलावा भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र वर्ग कहे गए हैं- देवसखाय, चिक्लीताय, आनन्दाय, कर्दमाय, श्रीप्रदाय, जातवेदाय, अनुरागाय, सम्वादाय, विजयाय, वल्लभाय, मदाय, हर्षाय, बलाय, तेजसे, दमकाय, सलिलाय, गुग्गुलाय, कुरुण्टकाय।

शिव के पुत्र : गणेश, कार्तिकेय, हनुमान, जलंधर, सुकेश, अयप्पा स्वामी आदि के अलावा भी शिव के और भी पुत्र हैं। उक्त सभी के जन्म का वर्णन पढ़ें…हनुमानजी को शंकर सुवन कहा गया है। हनुमानजी के जन्म की कथा सभी जानते हैं। हालांकि हनुमानजी को कुछ विद्वान शिव का अंशावतार कहते हैं।

दक्षिण भारत में अयप्पा स्वामी को भी भगवना शिव का पुत्र माना जाता है। भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी हैं। विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया और उनके वीर्य से ही बाद में सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा गया। शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण उनको ‘हरिहरपुत्र’ भी कहा जाता है।

भूमि पुत्र मंगल भी शिव का पुत्र था जिसे भूमा कहा जाता था। एक समय जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव समाधि में ध्यान लगाए बैठे थे, उस समय उनके ललाट से तीन पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं।

इन बूंदों से पृथ्वी ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया, जिसके चार भुजाएं थीं और वय रक्त वर्ण का था। इस पुत्र को पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया।

माना जाता है कि भगवान शिव की पहली पत्नीं सती, दूसरी पार्वती, तीसरी काली और चौथी उमादेवी थी। सती तो यज्ञ में दाह हो गई थी। माता पार्वती से कार्तिकेय का जन्म हुआ।

भगवान गणेश की उत्पत्ति पार्वतीजी ने की थी। सुकेश नाम के एक नवजात को उन्होंने गोद लिया था। सुकेश ने गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया। देववती से सुकेश के 3 पुत्र हुए- 1.माल्यवान, 2.सुमाली और 3.माली। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई। शिव का चौथा पुत्र जलंधर था। जलंधर भी शिव का अंश ही था।

अन्य देवताओं के पुत्रों का वर्णन

स्वायंभुव मनु 14 मन्वन्तर के 14 मनु कहे गए हैं। अब तक 7 मनु हुए हैं और 7 होना बाकी है। प्रथम स्वायम्भुव मनु, दूसरे स्वरोचिष, तीसरे उत्तम, चौथे तामस, पांचवें रैवत, छठे चाक्षुष तथा सातवें वैवस्वत मनु कहलाते हैं। वैवस्वत मनु ही वर्तमान कल्प के मनु है। इसके बाद सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि, रुद्र सावर्णि, .रौच्य या देव सावर्णि और भौत या इन्द्र सावर्णि नाम से मनु होंगे।

प्रथम मन्वन्तर के मनु स्वायंभुव मनु को प्रथम मानव कहा गया है। सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई है। इनकी पत्नीं का नाम शतरूपा था। स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पांच सन्तानें थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएं आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, कर्तु, पुलस्त्य तथा वशिष्ठ-ये सात ब्रह्माजी के पुत्र उत्तर दिशा में स्थित है, जो स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं।

आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि के आकूति से एक पुत्र उत्प‍न्न हुआ जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे।

हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई। प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी।

स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि, वसु, ज्योतिष्मान, द्युतिमान, हव्य, सबल और पुत्र आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम तामस और रैवत- ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो अपने नामवाले मनवंतरों के अधिपति हुए।

महाराज प्रियव्रत के दस पुत्रों मे से कवि, महावीर तथा सवन ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।

स्वारोचिष मनु : द्वितिय स्वारोचिष मन्वन्तर में प्राण, बृहस्पति, दत्तात्रेय, अत्रि, च्यवन, वायुप्रोक्त तथा महाव्रत ये सात सप्तर्षि थे। इसी काल में तुषित नाम वाले देवता थे और हविर्घ्न, सुकृति, ज्योति, आप, मूर्ति, प्रतीत, नभस्य, नभ तथा ऊर्ज-ये महात्मा स्वारोचिष मनु के पुत्र बताए गए हैं, जो महान बलवान और पराकर्मी थे।

उत्तम या औत्तमी मनु : वशिष्ठ के सात पुत्र तथा हिरण्यगर्भ के तेजस्वी पुत्र ऊर्ज, तनूर्ज मधु, माधव, शुचि, शुक्र, सह, नभस्य तथा नभ– ये सभी उत्तम मनु के पराक्रमी पुत्र थे। इस मन्वन्तर में भानु नाम वाले देवता थे।

तामस मनु : काव्य, पृथु, अग्नि, जह्नु, धाता कप्वां और अकपीवान- ये सात उस काल के सप्तर्षि थे। इस काल में सत्य नाम वाले देवता थे। द्युति, तपस्य, सुतपा, तपोभूत, सनातन, तपोरति, अकल्माष, तन्वी, धन्वी और परंतप- ये दस तामस मनु के पुत्र कहे गए हैं।

रैवत मनु : उसमें देवबाहु, यदुघ्र, वेदशिरा, हिरण्यरोमा, पर्जन्य, सोमनंदन, ऊघर्वबाहु तथा अत्रिकुमार सत्यनेत्र- ये सप्तर्षि थे। अभूतरजा और प्रकृति नाम वाले देवता थे। धृतिमान, अव्यय, युक्त, तत्त्वदर्शी, निरुत्सुक, आरण्य, प्रकाश, निर्मोह, सत्यवाक्, और कृती- ये रैवत मनु के पुत्र थे।

चाक्षुक मनु : उसमें भृगु, नभ, विवस्वान, सुधामा, विरजा, अतिनामा और सहिष्णु- ये ही सप्तर्षि थे। लेख नाम वाले पांच देवता थे। नाड़्वलेय नाम से प्रसिद्द रुरु आदि चाक्षुष मनु के दस पुत्र बतलाए जाते हैं।

वैवस्वत मनु :अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र तथा जमदग्नि- ये इस वर्तमान मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं जिनके नाम पर वर्तमान में एक सप्तऋषि तारामंडल है। साध्य, रूद्र, विश्वेदेव, वसु, मरुद्गण, आदित्य और अश्वनीकुमार – ये इस मन्वन्तर के देवता माने गए हैं। वैवस्वत मनु के इक्ष्वाकु आदि दस पुत्र हुए।


इंद्रादि देवताओं के पुत्रों का वर्णन

इंद्रदेव (पुरंदर) के पुत्र : जयंत, वसुक्त, वृषा, वानरराज बालि, कुंति पुत्र अर्जु आदि इंद्र के पुत्र थे। प्रत्येक मन्वंतर में एक इंद्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। हम जिस इन्द्र की बात कर रहे हैं वह अदिति पुत्र और शचि के पति देवराज पुरंदर हैं। इन इन्द्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर भी कहा जाता है।

इन्द्र का विवाह असुरराज पुलोमा की पुत्री शचि के साथ हुआ था। इन्द्र की पत्नी बनने के बाद उन्हें इन्द्राणी कहा जाने लगा। इन्द्राणी के पुत्रों के नाम भी वेदों में मिलते हैं। उनमें से ही दो वसुक्त तथा वृषा ऋषि हुए जिन्होंने वैदिक मंत्रों की रचना की। जयंत उनका प्रमुख पुत्र था। वानरराज बलि और कुंति पुत्र अर्जुन भी इन्हीं के संसर्ग से जन्में थे।

अग्निदेव (हव्यवाहक): अग्निदेव के अधिन रहती है समस्त जगत की अग्नि। दक्ष की कन्या स्वाहा का विवाह अग्निदेव से हुआ। पुराणों के अनुसार अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। इनके पुत्र-पौत्रों की संख्या उनंचास है। उनके एक पुत्र सुवर्ण तथा कन्या सुवर्णा की उत्पत्ति कथा विचित्र है जो पुराणों में मिलती है। अंगिरस ने अग्निदेव से अनुनय किया था कि वह उन्हें अपना प्रथम पुत्र घोषित करें। अंगिरा और अंगिरस से लेकर बृहस्पति के माध्यम से अन्य ऋषिगण अग्नि से संबद्ध रहे हैं।

विवस्वान (सूर्य) : सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु, शनि, यम, कालिन्दी, कुंति पुत्र कर्ण आदि थे। विवस्वान से ही सूर्यवंश चला। अदिति के प्रथम पुत्र विवस्वान् को सूर्यदेव (प्रत्यक्ष सूर्य नहीं) भी कहा जाता था। ब्रह्माजी के पुत्र मरिचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान और विवस्वान के पुत्र वैवस्त मनु थे। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा विवस्वान् की पत्नी हुई। उसके गर्भ से सूर्य ने तीन संतानें उत्पन्न की। जिनमें एक कन्या और दो पुत्र थे। सबसे पहले प्रजापति श्राद्धदेव, जिन्हें वैवस्वत मनु कहते हैं, उत्पन्न हुए। तत्पश्चात यम और यमुना- ये जुड़वीं संताने हुई। यमुना को ही कालिन्दी कहा गया।

भगवान् सूर्य के तेजस्वी स्वरूप को देखकर संज्ञा उसे सह न सकी। उसने अपने ही सामान वर्णवाली अपनी छाया प्रकट की। वह छाया स्वर्णा नाम से विख्यात हुई। उसको भी संज्ञा ही समझ कर सूर्य ने उसके गर्भ से अपने ही सामान तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया।

वह अपने बड़े भाई मनु के ही समान था। इसलिए सावर्ण मनु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। छाया-संज्ञा से जो दूसरा पुत्र हुआ, उसकी शनैश्चर के नाम से प्रसिद्धि हुई। यम धर्मराज के पद पर प्रतिष्ठित हुए और उन्होंने समस्त प्रजा को धर्म से संतुष्ट किया। सावर्ण मनु प्रजापति हुए। आने वाले सावर्णिक मन्वन्तर के वे ही स्वामी होंगे। वे आज भी मेरुगिरि के शिखर पर नित्य तपस्या करते हैं।

पवनदेव : वायुदेव ब्रह्मा के पुत्र हैं। हनुमान और भीम को पवनपुत्र माना जाता है। उनकी एक पुत्री है जिसका नाम इला है। इला का विवाह ध्रुव से हुआ था। वायु को पवनदेव भी कहा जाता है। पवनदेव के अधीन रहती है जगत की समस्त वायु। ये त्वष्ट्री के जामाता कहे गए हैं। कुशनाभ की सौ पुत्रियों को वायुदेव ने कुब्जा बना दिया था। एक बार नारद के उत्साहित करने पर इन्होंने सुमेरु का शिखर तोड़कर समुद्र में फेंका डाला। वही लंकापुरी बन गया था।

मित्र और वरुणदेव : मकर पर विराजमान मित्र और वरुणदेव दोनों भाई हैं और यह जल जगत के देवता है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है। भागवत पुराण के अनुसार वरुण और मित्र को अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। वरुणदेव देवों और दैत्यों में सुलह करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बताई गई हैं।

उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि वाल्मीकि की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा उर्वशी की उपस्थिति में एक घड़े में गिर गए तब ऋषि अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई।

मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है। वरुणदेवता को ईरान में ‘अहुरमज्द’ तथा यूनान में ‘यूरेनस’ के नाम से जाना जाता है। वरुण के साथ आप का भी उल्लेख किया गया है। आप का अर्थ होता है जल। मित्रःदेव देव और देवगणों के बीच संपर्क का कार्य करते हैं। वे ईमानदारी, मित्रता तथा व्यावहारिक संबंधों के प्रतीक देवता हैं।

यमराज :  सूर्य (विवस्वान) पुत्र यमराज मृत्यु के देवता हैं। यमराज का दूसरा नाम धर्मराज है। यमराज, स्वर्ग तथा नरक के मुख्यालयों में तालमेल भी कराते रहते हैं। महाभारत काल में युधिष्ठिर धर्मराज के ही पुत्र थे।

चित्रगुप्त :  यमराज के मुंशी ‘चित्रगुप्त’ हैं। इनके भी बहुत पुत्रों की गणना है। संसार के लेखा-जोखा कार्यालय को संभालते हैं। कायस्त्र संप्राय के जितने भी लोग हैं वे सभी चित्रगुप्त के वंशज हैं।

कुबेर : कुबेर धन के अधिपति और देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। इनके दो पुत्र नलकूबर एवं मणिग्रीव थे। कुबेर के ये दोनों बेटे अपने पिता की धन−सम्पत्ति के प्रमाद में घमंडी और उद्दंड हो गए थे। एक दिन इन्होंने देवर्षि नारद का उपहास उड़ाया था।

तब नारद ने दोनों को शाप दे दिया, ‘जाओ, मर्त्यलोक में जाकर वृक्ष बन जाओ।’ शापवश उसी समय दोनों मर्त्यलोक में, गोकुल में नंद बाबा के द्वार पर पेड़ बन कर खड़े हो गए। बाद में नारदजी को उन पर दया आ गई। उन्होंने अपने शाप का परिमार्जन करते हुए कहा, ‘जब द्वापर में भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में वहां अवतरित होंगे और दोनों वृक्षों का स्पर्श करेंगे तब उन्हें मुक्ति मिल जाएगी।’

कामदेव : कामदेव और रति सृष्टि में समस्त प्रजनन क्रिया के निदेशक हैं।

अर्यमा या अर्यमन👉 यह 12 आदित्यों में से एक हैं और देह छोड़ चुकी आत्माओं के अधिपति हैं अर्थात पितरों के देव। एक अन्य अर्यमा अत्रि के पुत्र भी थे। अदिति के तीसरे पुत्र अर्यमा की गणना आदित्यों में है। इनके कई पु‍त्र थे।

श्रीगणेश👉 शिवपुत्र गणेशजी को देवगणों का अधिपति नियुक्त किया गया है। गणेशजी की बहन का नाम अशोक सुंदरी हैं। विघ्ननाशक की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं। सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। कहते हैं शिवपुत्र गणेश के भाई कार्तिकेय ने विवाह नहीं किया था।

देवऋषि नारद👉 दुनिया के प्रथम पत्रकार और संवाददाता देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। नारद देवताओं के ऋषि हैं तथा चिरंजीवी हैं। नारदजी की कई ‍पत्नियां थीं। इनकी पत्नीं का नाम है और पुत्रों का नाम है। देवर्षि नारद व्यास, बाल्मीकि तथा महाज्ञानी शुकदेव आदि के गुरु हैं।

श्रीहनुमान👉 देवताओं में सबसे शक्तिशाली देव रामदूत हनुमानजी अभी भी सशरीर हैं और उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। वे पवनदेव के पुत्र हैं। उनकी पत्नीं का नाम सुवर्चला और पुत्र का नाम मकरध्वज है। मकरध्वज एक मकर या मछली से उत्पन्न होने के कारण मकरध्वज नाम पड़ा। हनुमानजी ब्रह्मचारी थे। सुवर्चला उनकी पत्नीं जरूर थी लेकिन भगवान सूर्य से विद्या प्राप्त करने की शर्त अनुसार ही उन्होंने नाममात्र का विवाह किया था।

देवता और असुरों के भाई-बंधुओं की जानकारी

कश्यप अदिति के पुत्र :ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं। अदिति से देवता और दिति से दैत्य और दनु से दानव, क्रदू से नाग, अरिष्टा से गंधर्व, सुरसा से यातुधान राक्षस की उत्पत्ति हुई।

1.अदिति:  पुराणों अनुसार कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्यों को जन्म दिया।

इन्हें ही तुषित नाम वाले देवता भी कहा जाता है। ये आदित्य ही देव कहलाए जो कि इस प्रकार थे- विवस्वान् (सूर्य), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। ऋषि कश्यप के पुत्र विस्वान से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। इक्ष्वाकु कुल में ही श्रीराम का जन्म हुआ था।

विवस्वान् (सूर्य) के और भी पुत्र थे जिनमें महाभारत काल में एक कर्ण भी शामिल है। इंद्र के और भी पुत्र थे जिनमें महाभारत काल के अर्जुन भी शामिल हैं।

2.दिति:  कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुद्गण कहलाए।

वेदों में मरुद्गणों को रुद्र और वृश्नि का पुत्र लिखा गया है और इनकी संख्या 49 नहीं 60 की तिगुनी मानी गई है; लेकिन पुराणों में इन्हें कश्यप और दिति का पुत्र लिखा गया है। पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। जबकि हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। इन्ही से दैत्यों का वंश आगे बढ़ा।…

3.दनु : ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई।

4.ऋषि कश्यप की अन्य पत्नीयां : रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएँ जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने साँप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।

ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।

रानी विनता के गर्भ से गरुड़ (विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा हुए। कद्रू की कोख से बहुत से नागों की उत्पत्ति हुई, जिनमें प्रमुख आठ नाग थे-अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।

रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।

माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था। कश्यप ऋषि के जीवन पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।

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