जब मुस्कान के पीछे छिपे संदेश में प्रश्न दे गए प्रभु श्री राम!

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प्रभु श्री राम
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डॉ. कल्पना ‘नवग्रह’
ज प्रभु श्री राम सपनों में साक्षात् नज़र आए। मन -मस्तिष्क बार-बार विचलित हुआ पर व्यंग्यपूर्ण नज़रों के साथ मुस्कान की अमिट छाप धुंधली न हो सकी। करवटें बदलती रही, बेचैनी साथ छोड़ती नहीं । एक सवालिया प्रश्न घूमता रहा । आज का सपना अलग है उसमें डर, भय नहीं एक आत्मिक संतोष है। पर मुस्कान के पीछे छिपे संदेश में मुझे दे गए प्रश्न ।
मैं मर्यादा पुरुषोत्तम हूं। मर्यादा का अतिक्रमण कभी न कर सका। माता-पिता का श्रवण कुमार हूं, उनके वादों को शपथ की तरह जीने वाला सात्विक आचरण से परिपूर्ण व्यक्तित्वहूं।  भाई प्रेम पितृवत निभाता रहा। सर्वस्व त्याग से  भातृप्रेम को सींचता रहा हूं। पति धर्म का महान प्रमाण हूं। सती पत्नी सीता को प्रमाण के आधार की आवश्यकता नहीं यह जानते हुए भी एक धोबी की शंका निर्मूल रहे , पत्नी का त्याग कर ,असह्य पीड़ा को पीने वाला पति हूं । राजधर्म आचरण में उतार प्रजा का पालक हूं। शबरी के मीठे बेर से प्रेमपाश में बंधा, केवट के अश्रुधार में स्नान किया, मां अहिल्या के सतीत्व का उद्धार  उनका सम्मान स्थापित किया । दिन-रात प्रजा के सुख में सुखी और दुख में दुखी रहा पर आज तुम्हारे माध्यम एक प्रश्न पूछता हूं।
क्यों हर रात्रि इतना डर, भय और शंका में रहते हो ? क्यों शोर ही शोर है?  कोलाहल में जीते हो क्यों?  माताएं शोकाकुल और बेसहारा है क्यों ? भाई -भाई की हत्या की साज़िश में लगा है क्यों?  पराई स्त्री मां समान नहीं क्यों?  प्रजा और राजा के बीच इतनी गहरी-  लंबी खाई है जो पाटी नहीं जा सकती, भरी नहीं जा सकती क्यों?  दर्द पीड़ा की कराहें रात्रि की नि:शब्दता को चीरती हैं क्यों  ? ईश्वर में आस्था- विश्वास भी लोककल्याण नहीं कर पा रहा है क्यों?
मुझे पूजते हो। प्राण प्रतिष्ठा करते हो । सर्वशक्तिमान मानते हो ।मंदिर की स्थापना करते हो पर मर्यादित राम की आचरण व्यवस्था को तो भूल ही गए हो । मैं निरंतर बेचैन हूं । मेरी घबराहट -व्याकुलता शांत नहीं हो रही , निरंतर बढ़ रही है। मैं तुम्हें सोने नहीं दे सकता। रुपए -पैसों के लालच में डूबे हुए तुम सभी, अपनी -अपनी मर्यादा तोड़ चुके हो।  मुझे मंदिर में स्थापित कर , मेरे आचरण को सीमित कर, बाहर समाज में अमर्यादित आचरण कर रहे हो, अनाचार फैला रहे हो। तुम्हें नींद तब तक नहीं आएगी जब तक मां की गोद में बच्चों के निश्छल हंसी वातावरण को सुनाई नहीं देगी। प्रजा के प्रति राजा का बर्ताव मन से मन को मिलाने वाला नहीं होगा । वर्ण व्यवस्था समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए है उनमें नफ़रत -वैर भरने के लिए नहीं। मैं और सिर्फ़ मेरी प्रजा , हम और सिर्फ़ हमारे राजा का यह भाव भरो , अन्यथा रामराज्य को तिरोहित हुए सदियां बीत गई , अब उदय न हो सकेगा।

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