चरण सिंह
जो लोग समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि यह महीना लोहिया जी के संघर्ष का महीना है। लोहिया जी अगस्त क्रांति दिवस को स्वतंत्रता दिवस से ज्यादा महत्व देते थे। उनका कहना था कि क्षतिपूर्ण आजादी मिलने के बाद ब्रिटिश वायसराय और हमारे प्रधानमंत्री ने हाथ मिलाया था। मतलब अंग्रेजों ने हमें क्षतिग्रस्त आजादी दी थी। अगस्त क्रांति दिवस जनता की अभिव्यक्ति थी। मतलब उन्होंने अगस्त क्रांति दिवस को स्वतंत्रता दिवस से ज्यादा माना था। मैं कहने का प्रयास कर रहा हूं कि जिन समाजवादियों ने अगस्त क्रांति दिवस नहीं मनाया। जो प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी ऊषा मेहता को उनकी पुण्यतिथि पर याद नहीं किया। वे दिखावे के समाजवादी हैं। स्वार्थ में डा. लोहिया को याद करने वाले समाजवादी नहीं हो सकते।
मतलब इन लोगों ने समाजवाद को बदनाम कर रखा है। बंगलों में रहकर समाजवाद की बात नहीं की जा सकती हैं।
जनता के बीच में जाकर उनकी तरह संघर्ष न करने वाले नेता समाजवादी नहीं हो सकते हैं। मतलब जब से समाजवाद और समाजवादी कमजोर हुए हैं। तब से जमीनी मुद्दे दब कर रह गए हैं।।
चाहे आजादी की लड़ाई हो, जेपी आंदोलन हो यार फिर अन्ना आंदोलन, लगभग सभी आंदोलनों में समाजवादियों ने बढ़चढ़ भाग लिया। अब क्या हो गया है समाजवादी अहम फाइट में टकरा रहे हैं।
मतलब महिलाओं को खुद अपनी व्यवस्था करनी होगी। यहां किसी का कोई भरोसा नहीं है
वैसे भी बांग्लादेश में हिंसा फैलने में पाकिस्तान एजेंसी आईएसआई का हाथ बताया जा रहा है। ऐसे में कोई अधिकारी कुछ बोल नहीं सकता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि पीएम मोदी क्या कर रहे हैं।
जब बीजेपी और आर एस एस मुस्लिमों को लेकर अनाप शनाप बातें कर रहे हैं तो फिर ये लोग यह क्यों नहीं बताते कि किस वजह से बांग्लादेश में हिंसा हुई। लोग तो महिलाओं के लिए काम करने का ढकोसला करते हैं, वे लोग देश और समाज दोनों को जोड़ने में असफल रहे हैं। देश में जरूरत है कि खुद बनाओ और खुद खाओ।