आज के मीडिया के मुताबिक दिल्ली प्रदूषण के चरम पर पहुंच चुकी है ।प्रदूषण का अंक 401aqi पर पहुंच गया है। जबकि सामान्य तौर पर शुद्ध हवा के लिएयह 201 aqiसे नीचे होना चाहिए ।
दिल्ली की हालत मुंबई के गैस चैंबरके नाम से जाने जाने वाले चेंबूर से भी बदतर हो गई हे ।हालत इतनी भयावह है की बड़ी संख्या में लोग व नौनिहाल अस्थमा के शिकार हो रहे हैं ।
अंधविश्वास या परंपराओं की जड़ता इतनी गहरी है कि इसके बावजूद भी लोग पटाखे फोड़ रहे हैं ,और धुंआ फैला रहेहैं तथा अपने ही परिवार को धीमी और मूक मौत की ओर धकेल रहे हैं ।
यह भी विचित्र है कि सर्वोच्च न्यायालय या सरकार, प्रदूषण के लिए किसानों को दोष देती है और पराली जलाने जाने को रोकने के नाम पर किसानों के विरुद्ध कार्रवाई करती है। परंतु दीपावली के नाम पर भारी धुंआ छोड़ने ,आवाज का प्रदूषण फैलानेवाले विक्रेताओं व उनकी दुकानों और प्रयोग करने पर रोक नहीं लगती । जबकि पराली के धुएं से जलाने वाले किसान स्वतः भी उस धुएं से प्रभावित होते हैं पर वे अगली बुआई के लिए जमीन साफ करने को लाचार होकर जलाते हैं ।परंतु पटाखे के नाम पर धनवान तबका अपनी संपन्नता के प्रदर्शन और मद में पटाखे चलाता है। गरीब लोग भी उनकी नकल करते हैं। गरीबों के बच्चे अमीरों के बच्चों की नकल करतेहैं ।यह स्थिति लगभग सारे देश की है ।
आज मैं भोपाल में हूं और मेरे चारों ओर धुंआ फैला हुआ है। कानफोड़ आवाज आ रही हैं। स्थिति इतनी जटिल है कि सांस लेना भी मुश्किल और नहीं लेना भी मुश्किल। सांस लेते हैं तो धुएं के बादल को पीना है और नहीं लेते तो भी जान देना हे।…ऐसी स्थिति केवल मेरी ही नहीं बल्कि अधिकांश लोगों की है। पटाखे या जोसुतलीबम बनाए गए हैं वह भी इतनी तेज आवाज वाले हैं कि मकानों की दीवारें हिल जाती हैं। कानों के पर्दे लगता है फट रहे है,इनकी आवाजसे ऐसा लगता है। जबकि इनके बनाने और बिक्री पर रोक है।परंतु त्यौहार का उन्माद पैसे का लोभ और सरकार की अकर्मण्यता ने एक चिंताजनक स्थिति पैदा की है । नौ बजे रात से शुरू हो कर अब रात बारह बज रहे हैं पर पटाखे बंद नहीं हो रहे। चलाने वालों के माता पिता बच्चो के लिए आनंद खोज रहे हैं पर वह भूल जाते हैं कि वे अपने परिवार को छोटे अबोध बच्चों को स्वतः अस्थमा की ओर ढकेल रहे हैं।
क्या प्रशासन के कान बहरे हैं और उन्हें ये कानफोडू आवाजें नहीं सुन पड़ रही। क्या उन्हें रात बारह बजे पटाखे बेचने वालो की दुकानें खुली नहीं दिख रही ।
मैं त्योहारों के मनाने के विरुद्ध नहीं हूं परंतु उनके मनाने के तरीके शालीन ,सभ्य और समाज को हितकारी होना चाहिए । कितना अच्छा होता कि आज देश धुआं और ध्वनि मुक्त दीपावली मनाता ओर प्रदूषण के विरुद्ध अपना संकल्प व्यक्त करता।
(रघु ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संरक्षक हैं)