प्रोफेसर राजकुमार जैन
उनके इंतकाल की खबर से बेहद तकलीफ हुई।। हमारे वक्त का यह फनकार केवल बेजोड़ कलाकार ही नहीं विनम्रता, तहजीब, अदब में भी दिखावटी नहीं हकीकत में था। तकरीबन 50 साल पहले दिल्ली के कमायनी हाल में किसी कलाकार की संगत कर रहे जाकिर को पहली बार देखा तो देखता ही रह गया। जिस्मानी खूबसूरती तथा सादगी से अपना तबला खुद उठाकर चले आ रहे जाकिर ने झुक झुक कर सुनने वालों का अभिवादन किया। प्रोग्राम शुरू होने पर इनके चेहरे के साथ बालों की लटें जिस तरह मुख्य कलाकार को दाद दे रही थी आंखें उसी को देखे जा रही थी। तबले पर थाप से पहले श्रोताओं का स्वागत, कानों पर हाथ लगाकर अपने गुरुओं का स्मरण, तथा हाल में बैठे हुए बुजुर्ग कलाकारों से इजाजत मांग कर जब तबला वादन शुरू हुआ तो सच कहूं मुख्य कलाकार संगतकार लगने लगा। न जाने कितनी बार इनका तबला वादन सोलो और संगत दोनों रूपों में सुनने को मिला। कई बार कर्नाटक संगीत के चोटी के गायक तथा वाद्य यंत्रों के कलाकारों की संगत को बखूबी करते हुए मैंने देखा। टीवी पर, पाश्चात्य संगीत के मशहूर मारूफ बैंड, वाद्य यंत्रों के कलाकारों के साथ जुगलबंदी, में इनका तबला अलग ही प्रभाव छोड़ता हुआ नजर आया। अक्सर मैंने देखा है कि जब कोई कलाकार मशहूर हो जाता है तो वह जूनियर कलाकारों के साथ संगत करना अपनी तोहीन मानता है परंतु जाकिर का इस मामले में भी कोई जवाब नहीं था। भाव विभोर कलाकार बार-बार विनम्रता से जाकिर का शुक्रिया अदा करता कि जाकिर साहिब ने मेरे साथ संगत करके मुझे इज्जत बख्शी है। जाकिर उसी खुलूस के साथ उसकी होसला अफजाई करते उसका सम्मान करते। अक्सर मैंने संगीत की महफिलों में देखा है की कई तबला वादक अपनी तैयारी को दिखाने के लिए मुख्य कलाकार की संगत न करते हुए कलाकार को अपने सम पर लाने के लिए मजबूर करते हैं, परंतु जाकिर कभी भी अपनी हदबंदी को लांघते नहीं थे।
दिल्ली और दिल्ली से बाहर के संगीत सम्मेलनों मैं सुरों के गायन और वादन में अधिकतर नामवर तथा नवोदित संगीतकारों को सुना और देखा है। पहली पीढ़ी के मंझे हुए कलाकार मंच पर अपने गले और साज की हुनर बंदी, करामात पेश करते थे, परंतु जाकिर के वक्त के अनेकों नौजवान संगीतकार जो किसी मशहूर उस्ताद के बेटे या शागिर्द रहे वह अपने फन से ज्यादा अपने संगीत घराने,खानदान, पिता उस्ताद की महानता का बखान, अपनी पोशाक, हाव-भाव, भंगिमा स्टेज पर प्रदर्शित कर अपनी अहमियत का प्रदर्शन करते, हालांकि उनके संगीत से संगीत रस कोसों दूर होता। ऐसे संगीतकार थोड़े वक्त में ही संगीत जगत से ओझल भी हो गए। लेकिन जाकिर रोज-बरोज बढ़ते ही गये। उनकी सबसे बड़ी खूबी इस बात में थी कि गुनी संगीत रसिको के साथ-साथ स्कूल कॉलेज के छात्र छात्राएं बड़ी तादाद में जाकिर के प्रोग्राम में शामिल होते गए। जिसका बड़ा श्रेय स्पीक मैके नामक संगठन जो स्कूल और यूनिवर्सिटी में संगीत के लेक्चर डेमोंसट्रेशन तथा प्रस्तुतियां आयोजित करता है को भी जाता है।
जाकिर के अंदर की विनम्रता, सहजता, भावुकता से सामना तब हुआ जब वे आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के दीक्षांत समारोह में डी लिट की मानद उपाधि को ग्रहण करने के लिए आए हुए थे, तथा यूनिवर्सिटी के संस्थापक रमाशंकर सिंह के मेहमान बनकर 3 दिन तक उनके घर पर ही ठहरे हुए थे। आईटीएम यूनिवर्सिटी ने संगीत के महान कलाकारों की प्रतिमाओं का एक संग्रहालय स्थापित किया हुआ है, उसमें जाकिर हुसैन के मरहूम पिता तथा मशहूर तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ां की प्रतिमा भी स्थापित की गई । उसका अनावरण जाकिर हुसैन ने ही किया। उस समय में भी उनके साथ ही खड़ा था। ज्योंही प्रतिमा से पर्दा हटा, प्रतिमा को देखकर जाकिर भाव विह्वल हो उठे। उनके दोनों हाथों ने पहले प्रतिमा के चरणों को छुआ, फिर डबडबाती हुई आंखों से प्रतिमा के एक-एक अंग को छूते हुए वह बुदबुदाये, अब्बा हमें माफ करना, हमने आपकी याद में अपनी फर्ज अदायगी नहीं की, ना ही मुंबई में या कहीं और। इस यूनिवर्सिटी ने आपको जो सम्मान दिया है, उसको दिखाने के लिए (उसके बाद उन्होंने कुछ औरतों के शायद अपनी पत्नी, बहन, बेटी वगैरा के नाम लेकर कहा) अगली बार में उन सबको लेकर यहां आऊंगा।
तीन दिन के उनके साथ ने जो असर छोड़ा है, उसको मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। गंगा जमुनी तहजीब, भारत की महान सांस्कृतिक गाथाओं, विरासत से रचे पचे जाकिर ने अनेक किस्से सुनाए। यूनिवर्सिटी के छात्रों को संबोधित करते उन्होंने बताया कि जब मैं पैदा हुआ तो 3 दिन के बाद अस्पताल से लाकर मेरी मां ने अब्बा की गोद में दे दिया ताकि रिवायत के मुताबिक मेरे पिता मजहबी कोई आयत पहली बार मेरे कानों में सुना दे। परंतु मेरे पिता ने पहले तबले की पढंत, बोल सुनाएं, असहज होकर मेरी मां ने कहा यह आप क्या कर रहे हो, तो अब्बा ने कहा कि यह भी खुदा की इबादत है। मैं शिक्षा की देवी सरस्वती तथा भगवान गणेश का उपासक हूं, मेरे शिक्षक ने यही तालीम मुझे दी है, इसीलिए यह मैं अपने शिशु को दे रहा हूं। ऐसे माहौल में पैदा हुए जाकिर हुसैन अब कहां मिलेंगे?