सच बैठा है मौन

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आखिर सच ही गूँजता, खोले सबकी पोल ।
झूठे मुँह से पीट ले, कोई कितने ढोल ।।

जिसने सच को त्यागकर, पाला झूठ हराम ।
वो रिश्तों की फसल को, कर बैठा नीलाम ।।

वक्त कराये है सदा, सब रिश्तों का बोध ।
पर्दा उठता झूठ का, होता सच पर शोध ।।

रिश्तों के सच जानकर, सब संशय हैं शांत ।
खुद से खुद की बात से, मिला आज एकांत ।।

एक बार ही झूठ के, चलते तीर अचूक ।
आखिर सच ही जीतता, बिन गोली, बन्दूक ।।

झूठों के दरबार में, सच बैठा है मौन ।
घेरे घोर उदासियाँ, सुनता उसकी कौन ।।

चूस रहे मजलूम को, मिलकर पुलिस-वकील ।
हाकिम भी सुनते नहीं, सच की सही अपील ।।

(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

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