कौन किसी के वास्ते, करता है तकरार ।
वक़्त पड़े की दोस्ती, वक़्त पड़े का प्यार ।।
बदले ‘सौरभ’ ने कहाँ, मन के रीति रिवाज़ ।
दुश्मन हो या दोस्ती, एक रखा अंदाज़ ।।
रहा फूल के पास मैं, देखे उगते कैर ।
नहीं दोस्ती है भली, नहीं भला है बैर ।।
कौन पालता दुश्मनी, कौन बांटता प्यार ।
शिक्षा-संस्कार सदा, दिखते हैं साकार ।।
बस यूं ही बदनाम है, दुश्मन तो बे-बात ।
अपने ही करने जुटे, अपनों पर आघात ।।
फसल प्यार की बोइये, करिये अच्छा काम ।
दुश्मन सीखें कायदे , ऐसा हो पैगाम ।।
दुश्मन की चालें चले, रहकर तेरे साथ ।
‘सौरभ’ तेरी हार में, होता उनका हाथ ।।
‘सौरभ’ मन गाता रहा, जिनके पावन गीत ।
अंत वही निकले सभी, वो दुश्मन के मीत ।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )