कांग्रेस और वामदलों को हो सकता है फायदा
नई दिल्ली/पटना। लगभग सभी दलों की निगाहें अब बिहार चुनाव पर हैं। चाहे एनडीए हो या फिर महागठबंधन दोनों ओर से पूरी तैयारी हो चुकी है। भले ही बिहार विधानसभा चुनाव की तारीख की अभी घोषणा न हुई हो पर चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने की संभावना है। यह अनुमान लगाना कि कौन जीतेगा, कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे गठबंधन की ताकत, नेतृत्व, जातिगत समीकरण और मतदाता भावना। हां यह बात है जिस तरह से बिहार में कांग्रेस की तैयारी चल रही है। उसके आधार पर कांग्रेस को इस बार कुछ फायदा हो सकता है। ऐसे ही वामदल भी इस बार उभर कर आएंगे।
प्रमुख दावेदार और स्थिति
एनडीए (JDU-BJP और सहयोगी)
नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए 2025 में मजबूत दावेदार है। नीतीश ने 220-225 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, जो 2010 के रिकॉर्ड को तोड़ने की महत्वाकांक्षा दिखाता है। बीजेपी राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ उतर रही है, और अमित शाह ने दावा किया है कि एनडीए फिर से सरकार बनाएगी।
JDU और बीजेपी के बीच समन्वय और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की रणनीति बन रही है।
नीतीश की जातिगत जनगणना और विकास योजनाओं (जैसे साइकिल योजना, महिला आरक्षण) पर जोर से उनकी अपील बनी हुई है।
हालांकि, कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया है कि एनडीए कमजोर हो सकती है, लेकिन ये दावे असत्यापित हैं।
नीतीश की जातिगत जनगणना और विकास योजनाओं (जैसे साइकिल योजना, महिला आरक्षण) पर जोर से उनकी अपील बनी हुई है।
हालांकि, कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया है कि एनडीए कमजोर हो सकती है, लेकिन ये दावे असत्यापित हैं।
महागठबंधन (RJD-कांग्रेस और सहयोगी):
तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD महागठबंधन का मुख्य चेहरा है। वे व्यवस्था परिवर्तन और युवा-रोजगार जैसे मुद्दों पर जोर दे रहे हैं।
राहुल गांधी का जातीय राजनीति पर फोकस और बार-बार बिहार दौरा (पिछले 5 महीनों में 4 बार) महागठबंधन को मजबूती दे सकता है।
2020 में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन गठबंधन सरकार नहीं बना सका। इस बार भी करीबी सीटों (जैसे रामगढ़, देहरी) पर उनकी नजर है।
तेजस्वी का दावा है कि नीतीश के लिए उनके दरवाजे बंद हैं, लेकिन लालू प्रसाद की रणनीति अलग हो सकती है।
राहुल गांधी का जातीय राजनीति पर फोकस और बार-बार बिहार दौरा (पिछले 5 महीनों में 4 बार) महागठबंधन को मजबूती दे सकता है।
2020 में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन गठबंधन सरकार नहीं बना सका। इस बार भी करीबी सीटों (जैसे रामगढ़, देहरी) पर उनकी नजर है।
तेजस्वी का दावा है कि नीतीश के लिए उनके दरवाजे बंद हैं, लेकिन लालू प्रसाद की रणनीति अलग हो सकती है।
नए खिलाड़ी और अन्य दल:
जन सुराज: प्रशांत किशोर की पार्टी सभी 243 सीटों पर लड़ेगी, जिसमें 40 सीटों पर महिला उम्मीदवार होंगी। हाल के उपचुनावों में उनकी हार के बावजूद, वे 2025 में बड़ा प्रभाव डालने का दावा कर रहे हैं।
AIMIM और ASP: असदुद्दीन ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद की पार्टियां भी कुछ सीटों पर प्रभाव डाल सकती हैं, खासकर मुस्लिम और दलित वोटरों के बीच।
आप सबकी आवाज (राष्ट्रीय): पूर्व IAS आरसीपी सिंह की नई पार्टी कुछ सीटों पर चुनौती पेश कर सकती है।
ये छोटे दल वोट कटवा की भूमिका निभा सकते हैं, जिससे करीबी सीटों पर नतीजे प्रभावित होंगे।
AIMIM और ASP: असदुद्दीन ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद की पार्टियां भी कुछ सीटों पर प्रभाव डाल सकती हैं, खासकर मुस्लिम और दलित वोटरों के बीच।
आप सबकी आवाज (राष्ट्रीय): पूर्व IAS आरसीपी सिंह की नई पार्टी कुछ सीटों पर चुनौती पेश कर सकती है।
ये छोटे दल वोट कटवा की भूमिका निभा सकते हैं, जिससे करीबी सीटों पर नतीजे प्रभावित होंगे।
महत्वपूर्ण कारक
बिहार की राजनीति में जाति अहम भूमिका निभाती है। नीतीश का EBC और महिला वोट बैंक, लालू का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण, और बीजेपी का ऊपरी जाति समर्थन निर्णायक होगा। कुछ का दावा है कि MY समीकरण कमजोर हो रहा है।
करीबी सीटें: 2020 में 11 सीटें 1,000 वोटों से कम अंतर से जीती गई थीं। ये सीटें 2025 में निर्णायक हो सकती हैं।
विकास vs. सामाजिक न्याय: एनडीए विकास और सुशासन पर जोर दे रहा है, जबकि महागठबंधन सामाजिक न्याय और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठा रहा है।
नए मतदाता और युवा: बिहार की आबादी में युवाओं की बड़ी हिस्सेदारी है, और पलायन जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकता होंगे।
करीबी सीटें: 2020 में 11 सीटें 1,000 वोटों से कम अंतर से जीती गई थीं। ये सीटें 2025 में निर्णायक हो सकती हैं।
विकास vs. सामाजिक न्याय: एनडीए विकास और सुशासन पर जोर दे रहा है, जबकि महागठबंधन सामाजिक न्याय और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठा रहा है।
नए मतदाता और युवा: बिहार की आबादी में युवाओं की बड़ी हिस्सेदारी है, और पलायन जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकता होंगे।
वर्तमान रुझान और भविष्यवाणी:
एनडीए का पलड़ा भारी: नीतीश कुमार की साख, बीजेपी की संगठनात्मक ताकत, और गठबंधन की एकजुटता (लोकसभा में 75% सीटें जीतने का रिकॉर्ड) एनडीए को मजबूत स्थिति में रखती है। महागठबंधन की चुनौती: तेजस्वी की आक्रामक रणनीति और राहुल गांधी का समर्थन महागठबंधन को करीबी मुकाबले में ला सकता है, खासकर अगर वे नए मतदाताओं को लुभा सकें। नए दलों का प्रभाव: जन सुराज और अन्य छोटे दल कुछ सीटों पर उलटफेर कर सकते हैं, लेकिन बड़े स्तर पर सरकार बनाने की संभावना कम है।
एक्स पोस्ट्स का मूड: कुछ पोस्ट्स एनडीए की एकतरफा जीत का दावा करती हैं, जबकि अन्य महागठबंधन के पक्ष में माहौल बनाती हैं। ये पोस्ट्स पक्षपातपूर्ण हो सकती हैं और उन्हें पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।
एक्स पोस्ट्स का मूड: कुछ पोस्ट्स एनडीए की एकतरफा जीत का दावा करती हैं, जबकि अन्य महागठबंधन के पक्ष में माहौल बनाती हैं। ये पोस्ट्स पक्षपातपूर्ण हो सकती हैं और उन्हें पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।