वर्ष 1998 का,महीना मार्च का,स्थान कांग्रेस मुख्यालय,
कहानी कांग्रेस के उस अध्यक्ष की जिसे बेइज्जत कर पद से हटाया था।
धोती खोल कर उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया गया था।
कहानी सीताराम केशरी की जो एक वक्त कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे।
कहानी शुरू होती है नरसिम्हा राव से,वर्ष था 1996 का, महीना सितंबर,जब उस वक्त के कांग्रेस अध्यक्ष पी वी नरसिम्हा राव को हटाने के लिए गांधी परिवार द्वारा साजिश रची जाने लगी।उस समय गांधी परिवार को किसी ऐसे भरोसेमंद और वफादार कांग्रेसी की तलाश थी जिसे कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाए जो गांधी परिवार के इशारे पर चल सके।ऐसे में गांधी परिवार की नजर गई केंद्रीय मंत्री रहे दिग्गज कांग्रेसी सीताराम केसरी पर।
बिहार के दिग्गज कांग्रेस नेता केसरी महज 13 साल की उम्र से ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने लगे थे।1930 से 1942 के बीच सीताराम केसरी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते कई बार जेल गए।साल 1973 में बिहार कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने और 1980 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने।1967 में सीताराम केसरी कटिहार लोकसभा सीट से सांसद बने।इसके बाद केसरी 1971 से 2000 तक पांच बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए।गांधीवादी विचार के समर्थक सीताराम केसरी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री भी रहे।केसरी अक्सर कहा करते थे पार्टी ही मेरा परिवार है।
केसरी को नरसिम्हाराव की जगह कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया।केसरी के अध्यक्ष बनते ही पार्टी के कई पुराने नेता अर्जुन सिंह,माधवराव सिंधिया,एन डी तिवारी जैसे दिग्गज कांग्रसी जो कांग्रेस छोड़ कर जा चुके थे,वो वापस आ गए।
इसी बीच 1998 का लोकसभा चुनाव आ गया,इस चुनाव में कांग्रेस 141 सीटों पर सिमट गई,यहां तक कि कांग्रेस अपना गढ़ अमेठी भी हार चुकी थी।इसके बाद ही कांग्रेस अध्यक्ष केसरी को पद से हटाने की साजिश रची जाने लगी।
इस पर केसरी ने कहा कि “जब सोनिया और 10 जनपथ के सारे आदेश मैं मान ही रहा हूं तो मुझे अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने को क्यों कहा जा रहा है।”
लेकिन इतने सबके बावजूद पार्टी के कुछ नेता केसरी को हटाने के लिए षडयंत्र करने लगे। षडयंत्र सोनिया गांधी तक पहुंचा।हार से बौखलाई सोनिया इस बयान के बाद और भी तिलमिला उठीं।
सीताराम केसरी सार्वजनिक मंचों से कहने लगे थे कि साधारण परिवार से आने वाला और कम पढ़ा लिखा नेता भी कांग्रेस के अंदर सर्वोच्च पद पर पहुंचा है।यह बात गांधी परिवार खासकर सोनिया गांधी को खटकने लगी।
14 मार्च 1998 ही वह तारीख है जिस दिन कांग्रेस के नेताओं ने सीताराम केसरी को बेइज्जत किया और उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाया।5 मार्च 1998 को CWC की बैठक बुलाई गई।इसमें फैसला लिया गया कि सोनिया गांधी पार्टी के कार्यों में ज्यादा सक्रिय हों और संसदीय दल का नेता चुनने में हेल्प करें।उस वक्त संसदीय दल के नेता सीताराम केसरी ही थे।प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी के कानून में बदलाव कर तय कराया था कि पार्टी का नेता संसदीय दल का नेता हो सकता है,चाहे वह लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य हो या नहीं।
पार्टी में अपने खिलाफ इस तरह की गतिविधियों को देखते हुए 9 मार्च 1998 को सीताराम केसरी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।कुछ ही मिनट बाद उनका मन बदल गया और कहा कि उन्होंने केवल मंशा जाहिर की है, इस्तीफा नहीं दिया है।सीताराम केसरी ने तय किया कि वह AICC की आम सभा में कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ेंगे।इसके बाद 14 मार्च 1998 को CWC से करीब 13 नेता प्रणब मुखर्जी के घर पर जुटे और CWC की बैठक बुलाकर सीताराम केसरी को अपने इस्तीफे पर फैसला करने की मांग रख दी।
11 बजे CWC की बैठक हुई।इसमें प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में सीताराम केसरी के पार्टी के लिए किए गए कार्यों के लिए धन्यवाद कहा और कहा कि सोनिया गांधी पार्टी में अध्यक्ष पद संभालें।इस बात पर सीताराम केसरी नाराज हो गए।महज 8 मिनट में ही केसरी ने बैठक स्थगित कर दी और हॉल से सटे अपने दफ्तर चले गए।मनमोहन सिंह के साथ कुछ और नेता उन्हें मनाने पहुंचे लेकिन वह नहीं माने और दोबारा बैठक में नहीं आए।इसके बाद पार्टी के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में दोबारा बैठक शुरू की गई।यहां औपचारिक रूप से सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया।तत्काल सीताराम केसरी का नेमप्लेट उखाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया गया।इतनी बेइज्जती के बाद सीताराम केसरी 24 अकबर रोड को छोड़ कर जा रहे थे तभी यूथ कांग्रेस के कुछ उदंड कार्यकर्ताओं ने उनकी धोती खींच दी और उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया।
एक थी कांग्रेस !
लम्बे समय तक देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के लगातार कमजोर होने पर यह लेख वायरल हो रहा है। लेख में लिखा है कि बात 90 के दशक की है,जब कांग्रेस अपने चरम पर थी।