प्रेरणा जैन
लखीमपुर खीरी कांड में उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट के आधार पर विपक्षी पार्टियां केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र उर्फ टेनी को बर्खास्त करने की मांग रही है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो उनसे इस्तीफा मांग रहे हैं और न ही उन्हें बर्खास्त कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी अजय मिश्र का बचाव इस आधार पर कर रही है कि बेटे के अपराध के लिए पिता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
गौरतलब है कि लखीमपुर में चार किसानों और एक पत्रकार को गाड़ी से कुचल कर मारने के मामले में अजय मिश्र का बेटा आशीष मिश्र मुख्य आरोपी है और गिरफ्तार है। एसआईटी ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में इस घटना को एक सोची-समझी साजिश का परिणाम बताया है। भाजपा और केंद्र सरकार मामले को इस तरह पेश कर रहे है, जैसे आशीष मिश्र के अपराध के लिए अजय मिश्र का इस्तीफा मांगा जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है।
अजय मिश्र के बेटे किसानों को कुचल कर बाद में मारा है, उससे पहले अजय मिश्र ने किसानों अपने खिलाफ काले झंडे दिखाते हुए प्रदर्शन कर रहे किसानों को धमकी दी थी, सार्वजनिक मंच से उनको सबक सिखा देने की चेतावनी दी थी। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र ने 25 सितंबर को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपने बारे में गर्व से बताते हुए कहा था- ”सिर्फ मंत्री या सांसद, विधायक भर नहीं हूं। जो लोग मेरे विधायक और सांसद बनने से पहले मेरे बारे में जानते होंगे, उनको यह भी मालूम होगा कि मैं किसी चुनौती से भागता नहीं हूं।’’
अजय मिश्र ने अपने भाषण में आंदोलन कर रहे किसानों को चेतावनी देते हुए कहा था- ”जिस दिन मैंने उस चुनौती को स्वीकार कर लिया उस दिन पलिया नहीं, लखीमपुर खीरी तक छोड़ना पड़ जाएगा, यह याद रहे।’’ इस भाषण के वायरल हुए वीडियो में वे यह भी कहते सुनाई दे रहे है कि सामना करो आकर, ”हम आपको सुधार देंगे, दो मिनट लगेंगे।’’
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र के ऊपर हत्या सहित कई दूसरे आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। उन्होंने किसानो कों उन मुकदमों की याद दिलाई थी और सबक सिखा देने की चेतावनी दी थी। दरअसल जैसा अजय मिश्र का जैसा अतीत है, उसे देखते हुए उनको मंत्री बनाना ही नहीं चाहिए था, लेकिन वे भाजपा उम्मीदवार के तौर पर न सिर्फ सांसद चुने गए बल्कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनको अपनी सरकार में मंत्री भी बना दिया।
ठीक है, अगर मंत्री बना भी दिया तो इस भाषण के बाद ही उन पर कार्रवाई होनी चाहिए थी, जो कि नहीं हुई और उनके भाषण के ठीक एक हफ्ते बाद तीन अक्टूबर को उनके नाम से रजिस्टर्ड गाड़ी से किसानों को कुचल कर मार दिया गया। गाड़ी में अजय मिश्र का बेटा मौजूद था। जब राज्य सरकार की एसआईटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कहा है कि किसानों को कुचल कर मार डालने की घटना एक सोची-समझी साजिश के तहत हुई है तो यह क्यों नहीं माना जाए कि इस साजिश मे मंत्री भी शामिल हो सकते है?
अजय मिश्र का मंत्रिपरिषद से इस्तीफा इसलिए भी होना चाहिए कि एसआईटी ने अभी अपनी अंतिम जांच रिपोर्ट दाखिल नहीं की है, क्योंकि जांच अभी भी जारी है, जिसे प्रभावित किया जा सकता है। अजय मिश्र केंद्र सरकार के गृह राज्य मंत्री है, जो अपनी आधिकारिक हैसियत से जांच को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उनका इस्तीफा इसलिए भी होना चाहिए कि उन्होंने अपने बेटे के कथित अपराध की एसआईटी जांच के बारे में सवाल पूछने पर एक पत्रकार को पीट दिया और मोबाइल फोन छीन लिया। सो, यह सिर्फ नैतिकता का मामला नहीं है, जिसके आधार पर मंत्री का इस्तीफा मांगा जा रहा है, बल्कि धमकी देने, मंत्री के तौर पर गलत आचरण करने और एक साजिश में शामिल होने की संभावना के कारण इस्तीफा मांगा जा रहा है।
अजय मिश्र से इस्तीफा मांगे जाने या उन्हें मंत्रिपरिषद से बर्खास्त किए जाने के पर्याप्त आधार मौजूद होने के बावजूद प्रधानमंत्री ने उन्हें मंत्री बनाए रखा है और उनकी पार्टी उनका बचाव कर रही है तो सिर्फ इसलिए कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। माना जाता है कि प्रधानमंत्री ने अजय मिश्र को उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल किया था। अब वे उन्हें हटा इसलिए नहीं रहे हैं, क्योंकि उनको लगता है कि उन्हें हटा देने से उत्तर प्रदेश में पहले से ही भाजपा से नाराज चल रहे ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी और बढ जाएगी। यानी वे एक आपराधिक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति को ब्राह्मणों का नेता मान कर चल रहे हैं। सवाल है कि क्या ऐसा मान कर अजय मिश्र का बचाव करना उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं का अपमान नहीं है?
एसआईटी के ऊपर दबाव था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जांच में देरी पर कई बार उसे फटकार लगाई थी। इसके बावजूद जांच रिपोर्ट में राजनीति देखी जा रही है। केंद्रीय राज्य मंत्री और मुख्यमंत्री के टकराव वाले रिश्ते को भी इससे जोड़ा जा रहा है। एक तरफ ब्राह्मण वोट की चिंता है तो दूसरी ओर निजी मसले हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि राज्य की सत्ता ने पुराना हिसाब चुकता कर लिया है अब देखना है कि केंद्र की सत्ता कैसे अजय मिश्र को कैसे और कब तक बचाती है?