‘मोबाइल ऐप’ का संसार, दोधारी तलवार।

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मोबाइल ऐप
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(ऐप्स उस स्थिति में हमारे लिए सुरक्षा कवच बने जब लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को जानबूझकर तोडा-मरोड़ा जा रहा हो या सच को दरकिनार करके हानिकारक झूठ का विष फैल रहा हो।)

सत्यवान ‘सौरभ’
ज ‘मोबाइल ऐप स्मार्टफोन यूजर्स’ की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं। गाँव से शहर तक लगभग हर व्यक्ति इन पर आश्रित नज़र आता है। देखें तो भारत में एक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता स्मार्टफोन डिवाइस पर (विशेष रूप से मोबाइल ऐप पर)  दिन में लगभग 3.5 घंटे खर्च करता है। हर दिन नए-नए  ऐप आने के साथ, इस से इनकार नहीं किया जा सकता है कि न केवल किसी व्यक्ति के जीवन पर बल्कि उसके सोचने, व्यवहार करने या समझने के तरीके पर भी उनका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। हालाँकि, इस फलते-फूलते मोबाइल ऐप वातावरण का एक बड़ा नुकसान भी है जो हाल के दिनों में बुल्ली बाई ऐप जैसे मामलों में स्पष्ट हो गया कि कैसे ऐप का इस्तेमाल महिलाओं और समुदायों को गलत तरीके से टारगेट करने के लिए किया था।
आज इन ऐप्स का प्रयोग लोकतंत्र के कामकाज में दोधारी तलवार साबित हो रहा है। जानते है इनसे सूचना तक पहुंच का लोकतांत्रिकरण हुआ है।  लेकिन कुछ निजी कंपनियों, उनके अरबपति मालिकों और कुछ विशेष समूहों को चोरी से निजी जानकारी देने में भी ये पीछे नहीं है। दुनिया भर में अब पठनीय सामग्री की खोज के पारंपरिक तरीके बदल गए है। आज के पत्रकारों और संपादकों द्वारा तकनीकी प्लेटफार्मों  पर अधिक जोर दिया गया हैं। वे केवल इसके उपभोक्ता ही नहीं, बल्कि सामग्री के निर्माता और प्रसारक भी बन गए हैं। यही नहीं अब  समान विचारधारा वाले समूहों के तकनीकी समूह बन गए हैं।
दूसरी ओर इनका भयानक सच ये है कि इन ऐप्स पर गलत सूचना जनता की राय को बदल सकती है और जनता में घबराहट और बेचैनी की भावना पैदा कर सकती है। ये ऐसा मंच हैं जो अत्यधिक उदार है और यह आम नागरिकों को अपने विचार रखने की अनुमति देता है। यह लोगों को सीधे अपने नेताओं के साथ संवाद करने की अनुमति भी देता है तो विरोध का कारण भी बनता है। सोशल मीडिया पर जनता की राय को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जिससे लोकतंत्र अधिक पारदर्शी और मजबूत भी होता है।
आंकड़ों के अनुसार व्हाट्सएप के लगभग 400 मिलियन सक्रिय भारतीय उपयोगकर्ता हैं (अमेरिका में जहां इसका मुख्यालय है, उस से लगभग चार गुना); भारत में लगभग 300 मिलियन फेसबुक उपयोगकर्ता सक्रिय हैं (अमेरिका से लगभग 100 मिलियन अधिक); भारत में लगभग 250 मिलियन यूट्यूब उपयोगकर्ता (अमेरिका से लगभग 50 मिलियन अधिक)। इतने बड़े बाजार को देखते हुए महत्वपूर्ण डेटा न्यासियों का दायित्व है कि वे बड़े पैमाने पर भारत में डेटा विषयों के हित में कानून का पालन करें।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) अश्लील, मान हानिकारक भाषण को अपराधी बनाती है, जो महिलाओं  का अपमान करती है और उनकी निजता में दखल देती है। 2000 का सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम अश्लील भाषण को भी दंडित करता है। महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम महिलाओं की अश्लीलता वाली मुद्रित सामग्री के प्रकाशन पर रोक लगाता है। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम एक बच्चे के यौन उत्पीड़न के साथ-साथ अश्लील उद्देश्यों के लिए बच्चों के उपयोग को रोकता है। इन सभी कानूनों का इन प्लेटफार्म पर भी लागू होना बेहद जरूरी है।
हम जानते है कि ऐप्स को नियंत्रित करने की बहुत सख्त नीति व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकती है। प्रौद्योगिकी के अपने लाभ हैं, विशेष रूप से व्यापक पहुंच वाले इस ऐप के। जैसे वर्तमान महामारी के बीच, एसओएस कॉल के लिए व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर थे। मौजूदा दौर में लंबे समय से चल रहे लॉकडाउन में ऐप्स ने लोगों को मानसिक परेशानी से राहत दी है। इसमें कोई विवाद नहीं हो सकता है कि हमें इस संकट से बाहर निकलने में सक्षम बनाने के लिए ऐप्स की आवश्यकता है; महामारी के कारण हमें जो भी नुकसान हुआ है, उससे निपटने के लिए और साथियों से जुड़ने के लिए। सरकार को इन एप्लिकेशन प्लेटफॉर्म्स को रेगुलेट करना चाहिए, लेकिन इस हद तक नहीं कि उनके लिए भारत में बिजनेस करना मुश्किल हो।
चूंकि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, इसलिए निजता के अधिकार और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई भी अवैध या असंवैधानिक जांच नहीं होनी चाहिए। हाँ ,सोशल मीडिया जागरूकता की आवश्यकता है जो नागरिकों को सच्चाई और झूठ के बीच अंतर करने में सक्षम कर सके और यह जान सके कि कब और कितना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हेरफेर किया जा रहा है। ऐप्स उस स्थिति में हमारे लिए सुरक्षा कवच बने जब लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को जानबूझकर तोडा-मरोड़ा जा रहा हो या सच को दरकिनार करके हानिकारक झूठ का विष फैल रहा हो।
आज हमें एक व्यापक आईटी कानून की आवश्यकता है जिसकी सक्रिय होने और समय-समय पर समीक्षा करने की आवश्यकता है ताकि प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पन्न नई चुनौतियों की जांच की जा सके। उपलब्ध कानूनों को कड़े तरीके से लागू किया जाना चाहिए और किसी भी उल्लंघन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

(लेखक रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट है)

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