Live in Relation : अपराध की बुनियाद पर टिकी है यह परिपाटी !

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मौज मस्ती का माना जाता है जिम्मेदारियों से बचने वाला हर रिश्ता

चरण सिंह राजपूत

लिव इन रिलेशन को लोग किसी भी रूप में देखते हों पर यह बात समझने की जरूरत है कि यह रिश्ता बस अपराध की ओर ही बढ़ता है। लिव इन रिलेशन में मारपीट तो आम बात है, कई मामले हत्या के भी आये हैं पर जिस तरह का मामला श्रद्दा और आफताब का है, इसने समाज को झकझोर कर रख दिया है। इस हत्याकांड में आफताब की दरिंदगी ने तो सभी हदें पार कर ही दी हैं पर क्या श्रद्धा ने भी बहुत कम समय में आफताब पर भरोसा नहीं कर लिया था। जब श्रद्धा अपने माता के इस कदम को उठाने के विरोध का जवाब अपने को बालिग होना कहकर दे सकती थी तो आफताब के जुल्म क्यों सहती रही ? क्यों नहीं उसने आफताब को भी अपने बालिग होने का एहसास कराया। उसके जुल्मों की क्यों नहीं उसने रिपोर्ट दर्ज कराई ? यदि श्रद्दा उस पर शादी का दबाव बना रही थी तो शादी करके ही क्यों नहीं उसके साथ रही ? क्या पश्चिमी सभ्यता के चक्कर में पड़कर आज के कुछ युवा शादी के पवित्र रिश्ते को भूलकर लिव इन रिलेशन का रिश्ते की दलदल में फंस रहे हैं। लिव इन रिलेशन में पति-पत्नी की तरह तो रहेंगे पर पति-पत्नी नहीं बनेंगे। बस यही सोच अपराध की ओर जाती है। दरअसल यह रिश्ता जिम्मेदारियों का नहीं बल्कि मौज-मस्ती का है।

यह जमीनी हकीकत है कि मौज मस्ती से मन भरने के बाद लड़की और लड़के का अलग होना ही है। जमीनी हकीकत यह है कि स्त्री और पुरुष के जिस रिश्ते में बस मौज-मस्ती ही होती है वह लंबे समय तक चल ही नहीं सकता। लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते जिम्मेदारियों के बंधन में बंधे होते हैं। लिव इन रिलेशन तो कुछ समय तक के लिए मौज-मस्ती के लिए बनाया गया रिश्ता ही है। जब तक एक दूसरे की जरूरतें पूरी हो रही हैं तो ठीक है और दोनों से ही किसी एक को दूसरे की जरूरत महसूस नहीं होगी तो कलह और विवाद होना ही है। ऐसा ही श्रद्धा के साथ भी हुआ होगा।

आफताब का जब उससे मन भर गया तो वह उससे पीछा छुड़ाने लगा हो या फिर श्रद्धा को आफताब के साथ दूसरी लड़कियों के संबंध होने का पता चला हो तो उसे असुरक्षा महसूस होने लगी हो और उसने आफताब पर शादी का दबाव बनाान शुरू कर दिया हो। वैसे भी पुलिस के सामने उसने श्रद्दा के मर्डर के बाद २० लड़कियों के साथ दोस्ती करने की बात स्वीकारी है। मतलब आफताब कितना शातिर है कि उसकी एक प्रेमिका का शव उसके फ्रिज में रखा है और वह दूसरी लड़कियों के साथ रोमांस कर रहा है। उसने खुद स्वीकार किया है कि इन लड़कियों को बाकायदा वह अपने घर लाया था।
लिव इन रिलेशन की पैरवी करने वालों को समझ लेना चाहिए कि अधिकतर पति-पत्नी का ्श्तिता भी बच्चों की जिम्मेदारियों व समाज और रिश्तेदारों के दबाव में निभता है। वह सामाजिक बंधन ही होता है कि घर-परिवार बसते हैं और निभाये जाते हैं। लिव इन रिलेशन में ऐसा कुछ भी नहीं है। इस रिश्ते में न तो समाज का दबाव है और न ही बंधन। अधिकतर लोग तो लिव इन रिलेशन में समाज के सामने झूठ बोलकर रहते हैं। आफताब ने भी अपने मकान मालिक को श्रद्दा को अपनी पत्नी बताया था। मतलब जिस रिश्ते की बुनियाद ही झूठ पर टिकी हो वह रिश्ता अपराध की ओर ही तो जाएगा। यह जमीनी हकीकत है कि फिल्मी दुनिया से शुरू हुई लिव इन रिलेशन की यह परिपाटी नई पीढ़ी को अपराध की ओर धकेल रही है। जिन लोगों को इस रिश्ते में अपराध नहीं दिखाई दे रहा है चन लिव इन रिलेशन में रहने वाले लोगों का सर्वे करके देख लें तो सब कुछ समझ में आ जाएगा कि अधिकतर मामलों का अंत अपराध से ही हुआ है। मारपीट, हत्या, आत्महत्या या फिर ब्लैकमेल यही परिणाम निकल रहे हैं लिव इन रिलेशन के।

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