बटेंगे तो कटेंगे के नारे तक सिमटा सत्तापक्ष तो विपक्ष उलझा वंशवाद, परिवारवाद और जातिवाद में

चरण सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र का तीसरा कार्यकाल चल रहा है और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का दूसरा कार्यकाल चल रहा है पर दोनों ही नेता चुनाव प्रचार में अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाने के बजाय हिन्दुत्व पर अटक कर रह जा रहे रहे हैं। योगी आदित्यनाथ अपने बटेंगे तो कटेंगे के नारे को दोहरा रहे हैं तो प्रधानमंत्री बंटने की स्थिति में कांग्रेस पर आरक्षण हटाने का आरोप लगे रहे हैं। यह अपने आप में दिलचस्प है कि बीजेपी के नेता डिबेट में तो देश के बंटने की बात करने लगते हैं पर जब बात चुनाव की आती तो यह नारा हिन्दू मुस्लिम पर आकर अटक जाता है।
बटेंगे तो कटेंगे के नारे को लेकर सवाल है कि आखिरकार काटेगा कौन ? यदि यह नारा हिन्दू मुस्लिम को लेकर दिया गया है तो फिर विशुद्ध रूप से वोटबैंक को ध्यान में रखकर दिया गया है। बीजेपी के पक्ष में हिन्दुओं को एकजुट रहने को लेकर दिया गया है। मतलब बीजेपी का राष्ट्रवाद का नारा खोखला है वह तो किसी भी तरह से हिन्दुओं का वोट हिन्दुत्व के नाम पर हासिल चाहती है। बीजेपी की नीति है कि हिन्दुओं को डराकर उनका वोट लेते रहो और देश पर राज करते रहे। यह अपने आप में दिलचस्प है कि सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी की भाषा विपक्ष की है तो विपक्ष बचाव की मुद्रा में देखा जा रहा है। क्या बीजेपी देश को बता सकती है कि देश के आजाद हुए बिना उनकी पार्टी से कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक बन सकता था। क्या राजतंत्र में बीजेपी का क्या रोल था ? क्या अंग्रेजी शासन में इन्हें कोई पूछने वाला था ?
देश आजाद हुआ तब जाकर इन पार्टियों को देश पर राज करने का मौका मिला। अब ये दल आजादी की कीमत को भूलाकर वोटबैंक के लिए देशको जाति और धर्म के नाम पर बांटने में लगे हैं। बात तो न बंटने की कर रहे हैं पर वोट के लिए खुद ही समाज को बांट रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उंता है कि देश को आजाद कराने में क्या मुसलमानों, ईसाइयों और सिखों का योगदान नहीं है ? यह भी जमीनी हकीकत है कि बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस और जनसंघ पर अंग्रेजी हुकूमत का साथ देने के आरोप भी लगते रहे हैं। ऐसे ही प्रधानमंत्री मोदी आदिवासियों से कह रहे हैं कि यदि वे जातियों में बंट गये तो कांग्रेस उनका आरक्षण छीन लेगी। मतलब आदिवासी एकजुट होकर बीजेपी को वोट दे दें। यदि हिन्दू एकजुट होकर कांग्रेस या फिर बीजेपी से अलग किसी और पार्टी को वोट दे दे तो क्या फिर भी बीजेपी हिन्दुओं के लिए बटेंगे तो कटेंगे का नारा देगी ? मतलब हिन्दुत्व के नाम पर बीजेपी को वोट देना है। यदि प्रधानमंत्री जातिवाद के इतने ही खिलाफ है तो फिर अपने को ओबीसी क्यों बोलते हैं ?क्यों नहीं अपने को एक हिन्दुस्तानी बोलते ?
क्या मोदी ओबीसी के प्रधानमंत्री ही हैं ? क्या सवर्णांे और दलितों के प्रधानमंत्री वह नहीं हैं ? क्या प्रधानमंत्री ओबीसी के वोट हासिल करने के लिए अपने को ओबीसी नहीं बोलते ? ऐसा नहीं है कि विपक्ष कोई साफ सुथरी राजनीति कर रहा हो ? विपक्ष में भी जो नेतृत्व है वह भी वोटबैंक ही उलझा हुआ है, वंशवाद पर टिका हुआ है। जातिवाद, वंशवाद और परिवारवाद इन पार्टियों में पूरी तरह से जगह कर गया है। विपक्ष भी दलितों औेर ओबीसी के वोट हासिल करने के लिए जाताीय जनगणना की पैरवी कर रहा है। कुल मिलाकर देश में वोटबैंक की राजनीति के अलावा कुछ नहीं हो रहा है। हर दल अपने वोटबैंक के हिसाब से एक एक कदम आगे बढ़ाता है। तो यह समझा जाए कि इन दलों के प्राथमिकता वोटबैंक है न कि देश और समाज।

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