वजह जो भी हो पर मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद किसान आंदोलन में कुछ पेंच नजर आ रहे हैं। जहां संयुक्त किसान मोर्चा ने नई दिल्ली में होने वाले ट्रैक्टर मार्च को स्थगित किया है। वहीं आंदोलन को आगे बढ़ाने की कोई ठोस रणनीति नहीं बना पाया है। गत चार दिसम्बर को हुई संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक में आंदोलन को तेज करने के ऐलान की उम्मीद आंदोलनकारी किसान कर रहे थे पर मीटिंग सरकार से बातचीत करने के लिए पांच नेताओं की कमेटी बनाने तक ही सिमट कर रह गई। यही वजह रही कि मोर्चे को ७ दिसम्बर को फिर मीटिंग रखनी पड़ी। संयुक्त किसान मोर्चा जिस तरह से कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि आंदोलन में कहीं न कहीं ऐसा कोई झोल है जो आंदोलन को आगे बढ़ाने में रोड़ा बन रहा है।
दरअसल जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार एमएसपी गारंटी कानून की मांग न करने को आढ़ती लॉबी किसान नेताओं पर दबाव बना रही है। आंदोलन में शामिल होने वाले पंजाब के कई किसान भी आढ़ती बताये जा रहे हैं। ये आढ़ती एमएसपी गारंटी कानून को अपने धंधे में घाटा मान कर चल रहे हैं। इन आढ़तियों को लगता है कि यदि एमएसपी गारंटी कानून बन जाता है तो जो फसल वे औने-पौने दाम पर खरीदते हैं वे उन्हें एमएसपी पर खरीदने पड़ेंगी। पंजाब और हरियाणा में एमएसपी होने की वजह से एमएसपी गारंटी कानून की मांग पर आंदोलन करने पर किसान नेताओं में मतभेद होने की बात सामने आ रही है। उत्तर प्रदेश भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत एमएसपी गारंटी कानून बनवाने के लिए किसान आंदोलन को तेज करने का ऐलान कर चुके हैं तो पंजाब के कुछ किसान वैसे भी एमएसपी गारंटी कानून की मांग की गूंज गाजपुर बार्डर पर ज्यादा गूंज रही है। गाजीपुर बार्डर पर जो किसान जमे हैं उनमें अधिकतर उत्तर प्रदेश के बताये जा रहे हैं। यह भी अपने आप में प्रश्न है कि गत 4 तारीख को सरकार के साथ बातचीत करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 नेताओं की जो कमिटी बनाई है उसमें किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत का नाम नहीं है। इस कमेटी में बलबीर राजेवाल, गुरनाम चढूनी, शिव कुमार कक्का, युद्धवीर सिंह, अशोक धवले का नाम है। मीटिंग में एमएसपी गारंटी कानून पर कोई बात न होने का मतलब कहीं न कहीं इस मामले में झोल कुछ है।
दरअसल एमएसपी किसी कृषि उपज (जैसे गेहूँ, धान आदि) का न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जिससे कम मूल्य देकर किसान से सीधे वह उपज नहीं खरीदी जा सकती। न्यूनतम समर्थन मूल्य, केंद्र सरकार तय करती है। उदाहरण के लिए, यदि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य २००० रूपए प्रति कुन्तल निर्धारित किया गया है तो कोई व्यापारी किसी किसान से २१०० रूपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीद सकता है किन्तु १९७५ रूपए प्रति कुन्तल की दर से नहीं खरीद सकता।