राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी के रथ को रोकने वाले राजद प्रमुख लालू प्रसाद को कानून को चारों खानों चित्त कर दिया है। डोरंडा कोषागार मामले में दोषी करार देते हुए रांची की CBI अदालत ने पांचवे चारा घोटाला मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को 5 साल कैद की सज़ा सुनाई है। साथ ही उन पर 60 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। इससे पहले चारा घोटाले से जुड़े चार मामलों में लालू प्रसाद को करीब 14 साल की सजा सुनाई जा चुकी है। ये मामले दुमका, देवघर और चाईबासा कोषागार से पैसे निकासी से जुड़े थे। आज कानून के सामने बेबस होने वाले लालू प्रसाद यादव बिहार ही नहीं देश की राजनीति में भी अपना जलवा दिखा चुके हैं। वह लालू प्रसाद यादव ही थे जो न केवल खुद दो बार बिहार के मुख्यमंत्री बने बल्कि अपनी पत्नी को भी मुख्यमंत्री बनवाया। जेपी आंदोलन से निकले लालू प्रसाद ने बिहार में अपनी जड़ें ज़माने के बाद देश में भी अपना कद बढ़ाया। लालू प्रसाद को रेल मंत्री रहते हुए रेलवे को फायदे में लाने की भी श्रेय जाता है।
लालू प्रसाद को देश में राम मंदिर आंदोलन में लाल कृष्ण आडवाणी के रथ को रोकने के नाम से ज्यादा जाना जाता है। यदि बात देश की राजनीति की करें तो लालू प्रसाद जैसे कितने आरोप देश के कितने नेताओं पर चल रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि लालू प्रसाद कोई कोई दूध के धुले हों। हां इतनी बात तो है कि क्षेत्रिय दलों में लालू प्रसाद देश के पहले नेता हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी के आगे नहीं झुके हैं जबकि चाहे मुलायम सिंह यादव हों, नीतीश कुमार हों, शरद पवार हों, शरद यादव हों, देश के जितने भी स्थापित आज के समाजवादी हैं उन्होंने किसी न किसी रूप में इस जोड़ी के सामने आत्मसर्पण किया है। मुलायम सिंह यादव ने तो संसद में ही मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने की अग्रिम शुभकामनाएं दे दी थी। डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसवाद का नारे की तर्ज पर गैर संघवाद का नारा देने वाले नीतीश कुमार तो मोदी की गोद में ही जा बैठे। अपने को मराठा क्षत्रप मानने वाले शरद पवार भी कई बार मोदी की शान में कसीदे पढ़ चुके हैं।
राम मंदिर के निर्माण में बीजेपी, आरएसएस और हिन्दू संगठनों के दूसरे नेता कितना भी श्रेय लेते रहें पर भगवा बिग्रेड का सामना करने के लिए के एक ही नाम लिया जाता है वह लालू प्रसाद हैं। जब राम मंदिर आंदोलन और लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा का जिक्र होता है तो लालू प्रसाद यादव का नाम जरूर आता है। जब्त 1990 की यही जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा जोर पकड़ रहा था। इसी बीच लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक ‘रथयात्रा’ निकालने की घोषणा कर दी थी। इस रथयात्रा के प्रबंधन की जिम्मेदारी देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी गई थी। उस समय नरेंद्र मोदी नेशनल मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत थे और उनका प्रबंधन कौशल भी बीजेपी में जबरदस्त माना जाता था। उस समय यूपी सरकार से लेकर केंद्र में काबिज वीपी सिंह सरकार तक को रथयात्रा रोकने की चुनौती दे डाली दी गई थी।
उस समय देश में ऐसा भी नेता था कि जो आडवाणी के रथ को रोकने का दम रखता था। वह लालू प्रसाद यादव थे। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार में उनके रथ को रोकने की पूरी योजना तैयार कर ली थी। उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोकने की ठान ली थी। आडवाणी की रथयात्रा धनबाद से शुरू होने वाली थी कि लालू की उन्हें सासाराम के नजदीक गिरफ्तार करने की योजना थी। हालांकि यह योजना लीक हो गई। बाद में धनबाद में ही गिरफ्तारी का प्लान बना, लेकिन अधिकारियों के बीच मतभेद के बाद यह योजना भी खटाई में पड़ गई। इस बीच आडवाणी की यात्रा का एक पड़ाव समस्तीपुर भी था। लालू यादव उन्हें यहां हर हाल में गिरफ्तार करना चाहते थे। लालकृष्ण आडवाणी समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे और लालू यादव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि उन्हें कहीं न जाने दिया जाये।
हालांकि उस शाम आडवाणी के साथ उनके काफी समर्थक भी थे, ऐसे में उस दौरान गिरफ्तारी के बाद बवाल होने की आशंका भी ज्यादा थी। ऐसे में लालू यादव ने इंतजार करना ठीक समझा। इसके बाद देर रात करीब दो बजे लालू यादव ने पत्रकार बनकर सर्किट हाउस में फोन किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि आडवाणी के साथ कौन-कौन हैं ? फोन आडवाणी के एक सहयोगी ने उठाया और बताया कि वे सो रहे हैं और सारे समर्थक जा चुके हैं। आडवाणी को गिरफ्तार करने का यह सबसे मुफीद मौका था और लालू यादव ने इसमें देरी नहीं की।
25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू हुई आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी, लेकिन 23 अक्टूबर को आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया। आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की सियासत में भूचाल मच गया। BJP ने केंद्र में सत्तासीन वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया इस सरकार में लालू प्रसाद भी शामिल थे। वीपी सिंह की सरकार गिर गई। आज भले ही दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने वाले नरेंद्र मोदी चौड़े हुए घूम रहे हों पर वह आडवाणी की रथ यात्रा ही थी कि बीजेपी अपने वजूद में आई थी।
राम मंदिर आंदोलन के माध्यम से 1990 के दशक में बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी सबसे प्रमुख चेहरा बने थे। इसीलिए जब राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया था तो केंद्र में बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिव सेना के मुखिया उद्धव ठाकरे ने कहा था कि वो आडवाणी से मिलने जाएंगे और उन्हें बधाई देंगे, “उन्होंने इसके लिए रथ यात्रा निकाली थी, मैं निश्चित रूप से उनसे मिलूंगा और उनका आशीर्वाद लूंगा.” आडवाणी को धन्यवाद देने वालों में उद्धव अकेले नहीं थे, बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने ट्वीट कर अशोक सिंघल और आडवाणी का अभिनंदन किया था। उमा भारती अदालत का निर्णय आने के तुरंत बाद आडवाणी से मिलने उनके घर गईं थीं, वहां उन्होंने मीडिया से कहा था, “आज आडवाणी जी के सामने माथा टेकना ज़रूरी है.”
नवंबर में आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पहले अयोध्या मामला कई पड़ावों से होकर गुज़रा और अब राम मंदिर का निर्माण चल रहा है। राम मंदिर आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से जुड़े कई वरिष्ठ नेताओं की अहम भूमिका रही है। ऐसे नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, प्रवीण तोगड़िया और विष्णु हरि डालमिया के नाम प्रमुख रहे हैं। राम मंदिर निर्माण में भले ही राम आंदोलन से जुड़े नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम प्रमुखता से लिया जाता हो पर लाल कृष्ण आडवाणी के रथ रोकने की वजह से राम मंदिर के साथ लालू प्रसाद यादव का भी नाम जुड़ा हुआ है।