लालू के ‘यस’ पर तेजस्वी का ‘नो’

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 कैसे मिलेगी नीतीश कुमार को एंट्री?

दीपक कुमार तिवारी

पटना। बिहार के अंदर राजनीति घटनाक्रम इतनी तेजी से बदलता है कि कोई भी यह तय नहीं कर सकता है कि अगले पल क्या होना है? यहां अब एक नई पटकथा लिखे जाने की तैयारी की जा रही है और इसको लेकर अब माहिर खिलाड़ी के तरफ से भ संकेत दिए जा रहे हैं।
बिहार की राजधानी इन दिनों 360 डिग्री पर घुम रही है। इसकी वजह महज एक बात है कि क्या बिहार के सीएम नीतीश कुमार अपने चिरपरचित अंदाज में वापस से सहयोगी को बदलेंगे ? क्योंकि राजद के तरफ कुछ लोग बढ़-चढ़ कर यह दावा कर रहे हैं कि बिहार के सियासत में बड़ा खेल होने वाला है। हालांकि उनके नेता तेजस्वी यादव इस मामले में दो टूक जवाब ‘न’ यानी नो में देते हैं। लेकिन,दूसरी तरफ से पार्टी के बड़े नेता ‘यस’ यानि हां में जवाब देते हैं। ऐसे में शायद यह कहा जाए की घर में ही कलह के हालत पैदा हो रहे हैं तो शायद यह गलत नहीं हो !
दरअसल, बिहार में इन दिनों यह खबरें फैलाई जा रही है कि सीएम नीतीश कुमार एक बार फिर अपने सहयोगी बदलने वाले हैं। हालांकि, जदयू के तरफ से इसे सिरे से खारिज कर दिया जाता है। लेकिन, बीती रात राजद सुप्रीमो लालू यादव ने एक ऐसा बयान दिया है जो एक नई पटकथा लिखे जाने की भनक दे रही है। लालू यादव से जब यह सवाल किया गया कि- क्या नीतीश कुमार के लिए आपका दरवाजा खुला हुआ है ? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि – मेरा दरवाजा तो हमेशा खुला हुआ है, अब नीतीश कुमार को भी अपना दरवाजा खुला रखना चाहिए।
इसके बाद जब लालू ने यह सवाल किया गया कि- नीतीश जी आपके पास वापस आते हैं तो आप माफ़ कर देंगे तो इसके जवाब ने लालू ने कहा कि माफ़ करना तो मेरा काम रहा है तो इस बार भी कर देंगे। वह खुद बार -बार चल जाते हैं। यदि आएंगे तो माफ़ कर देंगे,इसमें कोई बात नहीं है। सबलोग मिलकर काम करेंगे।
लेकिन, अब घर में कलह की शुरुआत इस बात को लेकर हो सकती है क्योंकि बिहार विधानसभा के नेता विपक्ष सह राजद के दुसरे नंबर के नेता तेजस्वी यादव यह कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के लिए हमारा दरवाजा हमेशा के लिए बंद हैं,हमें नीतीश कुमार की जरूरत नहीं है। अब उनके अंदर कुछ भी नहीं बचा है। बिहार की जनता समझ गई है कि तेजस्वी जो बोलता है वह करता है और इस बार हम सरकार बना रहे हैं। यानी तेजस्वी यादव साफ़-साफ़ नीतीश कुमार के साथ आने वाली बात पर नो कहते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि एक तरफ घर के मुखिया अपने पुराने दोस्त को वापस से बुलाना चाह रहे हैं कि क्योंकि वह बिहार की राजनीति के माफ़ी पक्के हुए खिलाड़ी हैं और अच्छी तरह समझते हैं कि बिहार की राजनीति के लिए नीतीश कुमार कितने अहम हैं। लिहाजा वह नीतीश कुमार को साथ लाना चाहते हैं। लेकिन, दुसरे तरफ से घर के उत्तराधिकारी को यह मंजूर नहीं की अब उसे कोई मदद करें, शायद वह समझ रहे हैं की बिहार की जनता उनके बातों पर अब पूरी तरह से भरोसा करने लगी है और वह आसानी से किला फतह कर लेंगे। लेकिन, जिस तरह का माहौल हैं उससे कहीं घर के अंदर ही एक शीत युद्ध न लड़ना पड़ जाए।
बहरहाल, बिहार के इसी साल विधानसभा का चुनाव होना है और इसको लेकर हर राजनीतिक पार्टी तैयारी में लगी हुई है। राजद के नेता भी बिहार भ्रमण कर रहे हैं तो एनडीए के नेता भी बिहार में जनता से संवाद करने निकल चुके हैं। ऐसे में अब देखना यह होगा कि वर्तमान में जो उथल-पुथल है उसपर कैसे विराम लगता है और चुनावी युद्ध का मैदान कैसा सजता है।

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