शीलहरण की कहे कथाएं

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महाभारत हो रहा फिर से अविराम ।
आओ मेरे कृष्णा, आओ मेरे श्याम ।।

शकुनि चालें चल रहा है,
पाण्डुपुत्रों को छल रहा है ।
अधर्म की बढ़ती ज्वाला में,
संसार सारा जल रहा है । ।

बुझा डालो जो आग लगी है,
प्रेम-धारा बरसाओ मेरे श्याम ।।

शासक आज बने शैतान,
मूक, विवश है संविधान ।
झूठ तिलक करवा रहा,
खतरे में है सच की जान । ।
गूंज उठे फिर आदर्शी स्वर,
मोहक बांसुरी बजाओ मेरे श्याम।।

दु:शासन की क्रूर निगाहें,
भरती हर पल कामुक आहें । ।
कदम-कदम पर खड़े लुटेरे,
शीलहरण की कहे कथाएं । ।

खोए न लाज कोई पांचाली,
आकर चीर बढ़ाओ मेरे श्याम ।।

आग लगी नंदन वन में,
रूदन हो रहा वृंदावन में ।
नित जन्मते रावण-कंस,
बढ़ रहा पाप भुवन में । ।

मिटे अनीति, अधर्म, अंधकार सारे,
आकर आशादीप जलाओ मेरे श्याम।।
(प्रियंका सौरभ के काव्य संग्रह ‘दीमक लगे गुलाब’ से।)

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