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  • Pathan-50 करोड़ की ओपनिक के साथ बड़े पर्दे पर धमाल मचाएगी शाहरूख की पठान

    Pathan-50 करोड़ की ओपनिक के साथ बड़े पर्दे पर धमाल मचाएगी शाहरूख की पठान

    पठान- शाहरूख खान और दीपिका के फैन्स का इंतजार अब खत्म होने वाला है। 4 साल बाद बॉलीवुड के बादशाह की धमाकेदार वापसी हो रही है। फिल्म पठान 25 जनवरी को बड़े पर्दे पर रिलीज होने जा रही है। फिल्म के बायकॉट ट्रेंड के बावजूद फिल्म पठान ने हिन्दी फिल्मों के एडवांस बुकिंग के सारे रिकॉर्ड ब्रेक कर दिये है। मोहब्बत और रोमांस के बादशाह ने इस फिल्म में फुल एक्शन के रोल का किरदार निभाया है। हाल ही में इस फिल्म में दीपिका के भगवा रंग को लेकर जो बवाल उठा था उसका नतीज़ा अब बॉक्स ऑफिस पर दिखने लगा है। रिलीज से दो दिन पहले तक ही देश भर के टॉप स्कीन्स पर ही पठान की टिकटे ढ़ाई हजार रूपये तक बिकीं है। आपको बता दे सोमवार तक ही पठान की 6 लाख टिकटे बुक हो चुकी है। हालांकि पठान अब भी साउथ की ब्लॉकबस्टर फिल्मों का रिकॉर्ड ब्रेक नहीं कर पाई। 20 जनवरी को जब से पठान की एडवांस बुकिंग शुरू हुई है, मूवी के टिकट्स के रेट्स आसमान छू रहे हैं। लेकिन किंग खान के फैंस उन्हें स्क्रीन पर देखने के लिए पीछे नहीं हट रहे। गुरुग्राम के एंबियंस मॉल में पठान का टिकट 2400, 2200 और 2000 रुपये में बिक रहा है।

    इतना महंगा टिकट होने के बावजूद सारे शो फुल हैं।यहां तक की मॉर्निग के शो भी फुल हो चुके है। वही दिल्ली के हाल मे 2100 रूपये के टिकट बिक रहे है। फिल्‍म इंडस्ट्री के कारोबार पर नजर रखने वाली वेबसाइट Sacnilk के मुताबिक, ‘Pathaan’ के हिंदी और तेलुगु वर्जन में सबसे ज्यादा टिकट्स बिके हैं। इस फिल्‍म ने रिलीज से पहले ही अभी तक एडवांस बुकिंग से 14.66 करोड़ रुपये का ग्रॉस कलेक्शन कर लिया है। यानी करीब 48 घंटों में ही एडवांस बुकिंग से नेट कलेक्‍शन करीब 11 करोड़ रुपये है। फिल्म ने एडवांस बुकिंग में से 1.79 करोड़ रुपये की कमाई दिल्‍ली-एनसीआर से हुई है। जबकि मुंबई में 1.74 करोड़ रुपये की एडवांस बुकिंग हुई है। इसी तरह देश के दूसरे बड़े शहरों बेंगलुरु, हैदराबाद और कोलकाता में शाहरुख खान के फैंस का जबरदस्त क्रेज दिख रहा है।

    फर्स्‍ट वीकेंड में 300 करोड़ रुपये कमा लेगी ‘पठान’

    सिद्धार्थ आंनद के डायरेक्‍शन में बनी ‘पठान’ को 5 दिनों का एक्‍सटेंडेट वीकेंड मिला है। 26 जनवरी की छुट्टी और आगे शनिवार-रविवार की छुट्टी को देखते हुए यह आकलन है कि यह फिल्‍म अपने फर्स्‍ट वीकेंड में वर्ल्‍डवाइड 300 करोड़ रुपये का कलेक्‍शन कर सकती है। ‘पठान’ में शाहरुख खान के अलावा दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम भी हैं। जबकि फिल्‍म में सलमान खान और कटरीना कैफ का 20 मिनट का कैमियो है। यह यशराज फिल्‍म्‍स के ‘स्‍पाई यूनिवर्स’ के तहत बनी है और इसमें सलमान और कटरीना ‘टाइगर फ्रेंचाइजी’ के किरदार यानी टाइगर और जोया के रोल में नजर आएंगे।

  • मुस्लिम बुद्धिजीवियों को विश्वास में लेकर क्या हिन्दू राष्ट्र घोषित कराने की है आरएसएस प्रमुख की रणनीति?

    मुस्लिम बुद्धिजीवियों को विश्वास में लेकर क्या हिन्दू राष्ट्र घोषित कराने की है आरएसएस प्रमुख की रणनीति?

    पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग समेत पांच प्रतिष्ठित मुस्लिमों से मीटिंग में हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत दिल्ली में जाकर दिल्ली में ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख इमाम डॉ. उमर अहमद इलियासी से मिलना और हिन्दू मुस्लिमों का डीएनए एक बताना क्या दर्शा रहा है ? मोहन भागवत का यह अभियान हिन्दू मुस्लिम एकता है, भाईचारा है या फिर हिन्दू राष्ट्र एजेंडे को मूर्त रूप देना ? दोनों मुलाकातों में मोहन भागवत ने जमकर मुस्लिमों के हितों की पैरवी की है।

    मोहन भागवत चीफ इमाम इलियासी से मिलने के लिए दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग मस्जिद स्थित उनके कार्यालय पहुंचे थे। दरअसल आरएसएस ने हाल ही मुसलमानों से संपर्क बढ़ाया है और भागवत ने समुदाय के नेताओं के साथ कई बैठकें की हैं। इसके पहले भागवत ने कुछ मुस्लिम नेताओं से व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात की है। भागवत से मिलने वाले नेताओं में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, जमीरुद्दीन शाह, सईद शेरवानी और शाहिद सिद्दिकी शामिल थे। भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री रामलाल की पहल पर हुई इस मुलाकात में भी दोनों समुदायों के बीच मतभेद को कम करने के लिए संभावित उपायों पर चर्चा की गई बताया जा रहा है।
    उधर 30 अगस्त 2019 को जमीअत-उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना अरशद मदनी ने भी दिल्ली के झंडेवालान स्थिति संघ मुख्यालय पहुंचकर मोहन भागवत से मुलाकात की थी। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता इंद्रेश कुमार की पहल पर हुई इस मुलाकात की भी बहुत चर्चा हुई थी।

    चर्चा है यह भी कि संघ प्रमुख मोहन भागवत आने वाले दिनों में कश्मीर के कुछ मुस्लिम नेताओं से भी मुलाकात कर सकते हैं। इसे कश्मीर में चुनावी राजनीति की दोबारा शुरुआत के बाद घाटी में शांति बनाए रखने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। ये नेता कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को घाटी में दोबारा सक्रिय न होने और कश्मीरी युवाओं को नए भारत से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

    मुस्लिमों को साधने की कोशिश

    माना जा रहा है कि आरएसएस और भाजपा के नेता लगातार मुसलमानों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। भागवत मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान के पूरा नहीं होने की बात करते हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एलान कर देते हैं कि पार्टी का मिशन मुसलमानों के करीब तक पहुंचने का होना चाहिए।

    कश्मीर के नेता गुलाम अली खटाना को राज्यसभा में भेजना भी संघ परिवार की मुसलमानों से करीबी बढ़ाने की इसी सोच की रणनीति का हिस्सा है। संघ और भाजपा में मुसलमानों के प्रति आ रहे इस बदलाव का कारण क्या है? यह अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी के बीच भारत की छवि बेहतर करने की कोशिश है या इसके जरिए संघ किसी बड़े बदलाव की योजना बना रहा है?

    भागवत ने कहा-हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक

    ऐसा नहीं है कि भाजपा और आरएसएस ने मुसलमानों के करीब पहुंचने की यह कोई पहली कोशिश की हो। दोनों ही संगठन लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते रहे हैं। भाजपा में तो इसके स्थापना काल से ही कई मुस्लिम नेता इसके सर्वोच्च नेताओं में शुमार रहे हैं। सिकंदर बख्त की लोकप्रियता आम जनता के बीच भले ही कम रही हो, लेकिन पार्टी संगठन में उनकी अहमियत अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसी ही रही।

    संघ ने भी अनेक मौके पर यह साफ किया है कि उसे उन मुसलमानों से कोई परेशानी नहीं है, जो भारत को अपनी मातृभूमि मानते हैं और यहां की संस्कृति को अपना समझते हैं। यह क्रम गुरु गोलवलकर ने शुरू किया था, जो संघ प्रमुख मोहन भागवत के 2018 के उस बयान में भी दिखाई पड़ा, जब उन्होंने मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान अधूरा होने की बात कही। उन्होंने भी यह बताने की कोशिश की कि हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक है और दोनों ही इस देश के मूल निवासी हैं। इस देश की संस्कृति को बचाए रखना भी दोनों की ही जिम्मेदारी है।

    गत दिनों मोहन भागवत के साथ हुई पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, नजीब जंग समेत पांच प्रतिष्ठित मुस्लिमों की मीटिंग में गोहत्या समेत कई मुद्दों पर हुई बातचीत हुई थी। एस वाई कुरैशी और शाहिद सिद्दीकी ने कहा था कि मोहन भागवत ने नियमित रूप से मुस्लिम समुदाय के संपर्क में बने रहने को संघ के चार वरिष्ठ पदाधिकारियों को नियुक्त किया है। एस वाई कुरैशी ने तो 99 प्रतिशत भारतीय मुसलमान को भारत का ही बता दिया था।

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    आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मिलने वाले पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का यह कहना कि 99 प्रतिशत भारतीय मुसलमान बाहर से नहीं आए हैं, बल्कि यहां पर ही धर्मांतरित हुए हैं, क्या इशारा कर रहा है ? क्या यह आरएसएस का नफरत की जगह प्यार से मुस्लिमों को हिन्दू राष्ट्र के लिए तैयार करना तो नहीं है ? कहीं इस तरह से मुस्लिम प्रतिनिधियों से मिल मिल कर मोहन भागवत अपने हिन्दू राष्ट्र मुद्दे को आगे तो नहीं बढ़ा रहे हैं। वैसे भी देश में अधिकतर मुस्लिम कन्वर्ट ही हैं और अब देश में हिन्दू बड़े और मुस्लिम छोटे भाई के माहौल से ही देश और समाज का भला होता दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान में जिस तरह से गृह युद्ध के हालात हैं। ऐसे में अब मुस्लिमों का पाकिस्तान से मोह भंग हो रहा है। राणा, चौधरी मलिक सर नेम लिखने वाले मुस्लिम तो अपने को आज भी हिन्दू संस्कृति से जोड़कर दिखाई देते हैं। वैसे भी मोहन भागवत से मिलने के बाद मुस्लिम नेताओं ने मोहन भागवत की तारीफ की है। हां हिन्दू मुस्लिम भाईचारे और एकता में राजनीति और वोटबैंक घुसना मामले को बिगाड़ने वाला है।

    दरअसल पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व एएमयू कुलपति और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ज़मीर उद्दीन शाह, आरएलडी नेता शाहिद सिद्दीकी और व्यवसायी सईद शेरवानी ने साम्प्रदायिक सौहार्द के चलते संघ प्रमुख मोहन भागवत से मीटिंग की है। मीटिंग में सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल भी शामिल थे।

    भागवत से मीटिंग करने वाले एसवाई कुरैशी और पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग के अनुसार मोहन भागवत ने इन लोगों से कहा है कि जहां हिंदू मूर्तियों की पूजा करते हैं, वहीं भारतीय मुसलमान भी काबरा (कब्र) में प्रार्थना करते हैं। देश की प्रगति के लिए सांप्रदायिक सद्भाव जरूरी है और हम सभी सहमत हैं। इन लोगों का कहना है कि ”“बातचीत बहुत सौहार्दपूर्ण रही।
    दरअसल भले ही दिखावे के लिए हो पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपना रुख बदला है। भले ही बीजेपी हिन्दू मुस्लिम कर रही हो पर आरएसएस अब हिन्दू मुस्लिम एजेंडे से बचता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि मोहन भागवत कई बार मुस्लिमों के प्रति हमदर्दी बरतने की अपील कर चुके हैं। गत दिनों जब वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद का मामला उठा तो मोहन भागवत ने हिन्दू संगठनों को हर मंदिर में शिवलिंग न ढूंढने की सलाह दी थी।
    दरअसल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ एक बैठक कर महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की है। बैठक में गोहत्या से लेकर अपमानजनक संदर्भों के उपयोग तक के मुद्दों पर चर्चा हुई। इस दौरान दोनों पक्षों ने दोनों समुदायों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बातचीत जारी रखने के लिए समय-समय पर मिलने का संकल्प भी लिया। दरअसल आरएसएस के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और हिन्दू राष्ट्र के मुद्दे पर मुस्लिम संगठन आरएसएस से नाराज रहे हैं। बाबरी मस्जिद और राम मंदिर मामले को लेकर दोनों पक्षों में ज्यादा टकराव हो गया था। अब जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हो रहा है तो मुस्लिम संगठन आरएसएस के संपर्क में आ रहे हैं।

    हिन्दू मुस्लिम एकता

    मोहन भागवत मामले को लेकर कितने गंभीर हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ आरएसएस प्रमुख की बैठक का समय आधा घंटा निर्धारित था, लेकिन ये बैठक 75 मिनट तक चली। यह बैठक संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय उदासीन आश्रम में एक महीने पहले हुई। इस बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत के अलावा सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व एएमयू कुलपति और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ज़मीर उद्दीन शाह, आरएलडी नेता शाहिद सिद्दीकी और व्यवसायी सईद शेरवानी शामिल थे।

    एस वाई कुरैशी और शाहिद सिद्दीकी ने एक राष्ट्रीय अख़बार से बात करते हुए कहा, “बातचीत बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। बैठक के बाद आरएसएस प्रमुख भागवत ने नियमित रूप से मुस्लिम समुदाय के संपर्क में रहने के लिए चार वरिष्ठ पदाधिकारियों को नियुक्त किया। अपनी तरफ से हम मुस्लिम बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, लेखकों से संपर्क कर रहे हैं ताकि आरएसएस के साथ इस संवाद को जारी रखा जा सके।”
    एस वाई कुरैशी ने कहा, “उन्होंने (मोहन भागवत) हमें बताया कि लोग गोहत्या और काफिर (गैर-मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले) जैसे शब्दों से नाखुश थे। जवाब में हमने कहा कि हमें भी इससे सरोकार है और अगर कोई गोहत्या में शामिल है तो उसे कानून के तहत सजा मिलनी चाहिए। हमने उनसे कहा कि अरबी में काफिर का इस्तेमाल अविश्वासियों के लिए किया जाता है और यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे सुलझाया नहीं जा सकता। हमने उनसे कहा कि हमें भी दुख होता है जब किसी भारतीय मुसलमान को पाकिस्तानी या जेहादी कहा जाता है।”

    रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी ने कहा, “नुपुर शर्मा की घटना के समय उन्होंने सबसे पहले आरएसएस से मिलने की मांग की थी। हमें लगा कि इस घटना के कारण मुस्लिम समुदाय के भीतर भी एक जहरीला माहौल बना दिया गया है। हालांकि जब तक हमें मोहन भागवत से मिलने की तारीख मिली, तब तक नूपुर शर्मा की घटना को एक महीना हो चुका था और विवाद काफी कम हो चुका है। इसलिए हमने दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक वैमनस्य के मामलों पर चर्चा की।”

    हालांकि आरएसएस के प्रचारक सुनील आंबेकर ने बैठक पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया लेकिन संघ के एक सूत्र ने बताया कि संघ प्रमुख मोहन भागवत से इस तरह की अपॉइंटमेंट जो भी मांगता है, उसे समय मिलता है।

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  • Delhi Police ने फेरा खालिस्तानियों के मंसूबों पर पानी

    Delhi Police ने फेरा खालिस्तानियों के मंसूबों पर पानी

    Delhi Police की Special Team ने PAK में बैठे खालिस्तानी आतंकी का एक बड़ा प्लैन फेल कर दिया है। दरअसल, खालिस्तान भारत में 6 नेताओं की हत्या करवाना चाहता था, इनमें से एक हत्या Delhi और Chandigarh में हाल ही में होनी थी। खालिस्तानी आतंकी Rinda ने भारत में हिन्दू नेताओं और RSS के कार्यकर्ताओं की हत्या की प्लानिंग की थी, लेकिन सही समय पर इस बात का पता दिल्ली पुलिस को चल गया और इनके मंसूबों पर पानी फिर गया।

    Punjab के गायक Sidhu Moose Waala की हत्या के बाद हिन्दू नेताओं की हत्या की साजिश पर कुछ दिनों के लिए रोक लगा दी गई थी, लेकिन उनकी ये कोशिश सफल नहीं हो पाई।

    Khalistani Terrorist Rinda

    आतंकी सहियोगी ने ही खोला पूरा चिट्ठा

    Delhi Police Special Cell की Counter Intelligence Unit ने PAK में बैठे खालिस्तानी आतंकी Rinda के सहियोगी गैंगस्टर Kawar Randeep Singh उर्फ SK को UP के Bareli से गिरफ्तार किया गया है और पूछताछ के समय उसने PAK में बैठे Rinda के सारे काले चिट्ठे खोल दिए। Police के पूछने पर सामने आया कि इस गैंगस्टर को पाकिस्तान में बैठे आतंकी Rinda के कहने पर हिन्दू नेताओं और RSS के अधिकारियों को मारने का टास्क दिया गया था, जिसके लिए ये कई बार दिल्ली आकर भी रुका था।

    Khalistani Terrorist S.K Kharoud

    Special Cell के एक बड़े अधिकारी ने खुलासा किया है कि गिरफ्तार SK Kharoud के मोबाइल से कुछ ऐसे सुबूत बरामत हुए हैं, जिनसे पाकिस्तानी लिंक सामने आ रहा है। उन्होंने ये भी बताया कि हिंदू नेताओं की हत्या की वारदात को अंजाम देने के लिए हथियार वर्ष 2021 में पाकिस्तान से आए थे। Kharoud ने ये भी बताया कि उसे ये हथियार एक आदमी ने Mohali में दिए थे, और ये सारे हथियार ड्रोन (Drone) के जरिए आए थे।

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    Patiala का रहने वाला था गैंगस्टर

    जानकारियों से पता चला है कि पकड़ा गया गैंगस्टर मूल रूप से Punjab के Patiala का रहने वाला था और ये भी पता चला है कि पहले से ही इस पर 7-8 आपराधिक मामले दर्ज हैं। गैंगस्टर SK Signals और WhatsApp के जरिए Rinda से समपर्क में रहता था और Rinda के कहने पर ही उसे कुछ फ़ोटोज़ भेजी गईं थी जिसके जरिए हिन्दू नेताओं और RSS के अधिकारियों को मारने की प्लानिंग की गई थी।

    SK को करनी थी Target Killing

    SK Kharoud के पास से पांच आधुनिक हथियार बरामद किए गए हैं। इनमें से दो चीनी पिस्टल हैं, जबकि तीन स्टार पिस्टल हैं। स्टार पिस्टल पाकिस्तान में बनती है। गिरफ्तार आरोपी ने पूछताछ में खुलासा किया है कि Delhi और Chandigarh में Target Killing वाले नेताओं की रेकी हो गई थी।

    Late Siddhu Moose wala

    Rinda ने ये रेकी किसी और ग्रुप से करवाई थी। रेकी की सूचना SK Kharoud को दे दी गई थी और फिर SK को टारगेट किलिंग करनी थी। आरोपी Kharoud ने ये भी बताया कि उसे हिंदू नेताओं की हत्या के आदेश बहुत पहले ही दे दिए गए थे। बस Sidhu Moose Wala की हत्या के कारण इस साजिश को टाल दिया गया था।

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    – Ishita Tyagi

  • आरएसएस प्रष्ठभूमि का न होते हुए भी भाजपा में कट्टर हिंदुत्व की पहली पसंद बने योगी आदित्यनाथ! 

    आरएसएस प्रष्ठभूमि का न होते हुए भी भाजपा में कट्टर हिंदुत्व की पहली पसंद बने योगी आदित्यनाथ! 

    चरण सिंह राजपूत 

    देश में राजनीति का दौर बदलता रहा है। कभी देश पर धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले राज कर रहे थे तो अब कट्टर हिन्दुत्व का राग अलापने वाले। कट्टर हिन्दुत्व में भी एक बड़ा तबका ऐसे नेताओं को पसंद करता है जो मुस्लिमों के खिलाफ खुलकर बोलते हों। उनके खिलाफ खुलकर काम करते हों। आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के अलावा  राजनीतिक पार्टियों में कभी शिवसेना के बाला साहेब ठाकरे, तो कभी नरेंद्र मोदी और अमित शाह और आज की तारीख में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस कथित हिन्दुत्व का बड़ा चेहरा माना जा रहा है। चेहरा भी ऐसा कि हिन्दुत्व के समर्थकों के लिए प्रधानमंत्री नरंेद्र मोदी को टक्कर देने वाला। यह योगी का हिन्दुत्व के पैरोकार में पैठ बनाना ही है कि भाजपा में उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प माना जाने लगा है। देश में उनके क्रियाकलापोंं को लेकर कितना भी विरोध होता रहे पर उनके समर्थकों में उनका कद लगातार बढ़ रहा है। भाजपा में तमाम कशकश के बाद आखिर योगी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ना भाजपा दिग्गजों की मजबूरी हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का वरिष्ठ आईएएस अरविंद शर्मा को उत्तर प्रदेश की राजनीति में घुसाना भी योगी के सामने कोई काम न आया।
    हिन्दू संगठनों में योगी आदित्यनाथ वह बड़ा चेहरा उभरकर आया है जो आरएसएस की पृष्ठभूमि का न होते हुए भी हिन्दुओं की पहली पसंद बने हुए हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सामने आरएसएस की पसंद भी आज की तारीख में योगी आदित्यनाथ बताये जा रहे हैं। इन सबका बड़ा कारण है कि योगी आदित्यनाथ का मुस्लिमों के प्रति आक्रामक रवैया है।
    योगी आदित्यनाथ समय समय पर मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलते रहते हैं। जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं तो ऐसे में वह हिंदू वोटबैंक को अपने पक्ष में करने के लिए  मुस्लिमों को लेकर आक्रामक हैं। उन्होंने फिर से बोला है कि हमारा किसी चेहरे, व्यक्ति, जाति या मजहब से विरोध नहीं है लेकिन जिसका विरोध भारत से है और भारतीयता से है तो स्वाभाविक रूप से हमारा उससे विरोध होगा। उनका सीधा सीधा निशाना बीजेपी की ओर है। एक टीवी इंटरव्यू में जब सीएम योगी आदित्यनाथ से पूछा गया कि आपका मुसलमानों से क्या रिश्ता है तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि जैसे वे मुझे देखते हैं, वैसे मैं भी उन्हें देखता हूं। दरअसल इस टीवी चैनल के इंटरव्यू में  योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछा गया कि पीएम मोदी का नारा रहा है सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास। आप भी इस नारे को हर मंच से दोहराते हैं। आपने अभी तक बहुत से उम्मीदवार घोषित किए हैं लेकिन कोई भी मुसलमान कैंडिडेट घोषित नहीं किया है। आपका मुसलमानों से क्या रिश्ता है? इस सवाल के जवाब में सीएम योगी ने कहा कि मेरा वही रिश्ता उनके साथ में है जो उनका रिश्ता मुझसे है। आगे उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार में मेरे मंत्रिमंडल में एक मुस्लिम मंत्री मोहसिन रजा हैं। केंद्र सरकार में मुख़्तार अब्बास नकवी मंत्री हैं। इसी प्रकार के कई चेहरे हैं। आरिफ़ मोहम्मद ख़ान केरल के राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हमारा किसी चेहरे, व्यक्ति, जाति या मजहब से विरोध नहीं है। लेकिन जिसका विरोध भारत से है और भारतीयता से है तो स्वाभाविक रूप से हमारा उससे विरोध होगा। कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व का बड़ा चेहरा बना हुआ है। चाहे अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो। मथुरा और काशी का मामला हो योगी आदित्यनाथ हिदुत्व का माहौल बनाते रहते हैं। योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि जो भारत को प्यार करता है। हम उससे प्यार करते हैं। जो भारत के मूल्यों और सिद्धांतों में रचा बसा है। हम उसको हृदय से लगाते हैं, गले से लगाते हैं और सम्मान भी देते हैं। लेकिन अगर आजादी के बाद किसी ने ईमानदारी से सबका साथ सबका विकास पर काम किया है तो वो भाजपा सरकार ने किया है। आप देख सकते हैं कि जो लोग गरीब कल्याण का नारा देते थे, गरीबी हटाओ का नारा देते थे, सामाजिक न्याय की बात करते थे। उनका क्या सामाजिक न्याय है? गरीबों की पेंशन हड़प जाना क्या यही सामाजिक न्याय है? गरीबों के आवास योजना को लागू न करना क्या यही सामाजिक न्याय है?बता दें कि करीब तीन दशक के बाद किसी भी प्रमुख पार्टी ने गोरखपुर सदर सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार घोषित किया है। बसपा ने गोरखपुर सदर से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपने पुराने पार्टी कार्यकर्ता ख्वाजा शम्सुद्दीन को चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि इस सीट पर पहले के चुनावों में भी मुस्लिम उम्मीदवार को 3000 से ज्यादा वोट नहीं मिले हैं। सिर्फ 1993 के चुनाव में बसपा के उम्मीदवार जाफर अली जिप्पू  को करीब 14% वोट मिले थे और वे तीसरे स्थान पर रहे थे।
    हिंदुत्व को लेकर जंग छिड़ी है। ‘हिंदुत्व’ राजनीति के दुश्चक्र में फंस गया है। एक तरफ हाहाकारी हिंदुत्ववादी हैं और दूसरी ओर ‘मैं हिंदू हूं, पर हिंदुत्ववादी नहीं’ के झंडाबरदार। फिर कोई खुर्शीद साहब आते हैं और हिंदुत्व को ‘बोको हराम’ बता जाते हैं। बोको हराम जैसे नृशंस संगठन की तुलना हिंदू धर्म से करना अपनी जाहिलियत का एलान ही है।कभी कोट के ऊपर जनेऊ पहनने वाले राहुल गांधी हिंदुत्व को हिंसा और सांप्रदायिकता का औजार बता देते हैं। दरअसल हिंदू और हिंदुत्व अद्वैत हैं। हिंदुत्व अपने आप में कोई धर्म, पंथ या वाद नहीं है। जो ‘हिंदुइज्म’ के जरिये हिंदुत्व को समझने की कोशिश करते हैं, उन्हीं से यह बखेड़ा खड़ा हुआ है। हिंदुत्व सिर्फ ‘हिंदू-पन’ है। हमारी परंपरा में चार्वाक ईश्वर के अस्तित्व को ही नहीं मानते थे। उन्होंने वर्तमान में जीने और कर्ज लेकर घी पीने का एलान किया था। हमने उनका सिर कलम नहीं किया, बल्कि ऋषि का दर्जा दिया। कबीर पत्थर को पूजने (मूर्तिपूजा) के खिलाफ खड्गहस्त थे। हमने उन्हें भक्त माना। तुलसी सगुण उपासक थे। पर उन्होंने लिखा पद बिन चले, सुनै बिन काना यानी ईश्वर बिना पैर के चलता और बिना कान के सुनता है।

    यानी ईश्वर निर्गुण है। एक ही बिस्तर पर मेरी सनातनी दादी अंतकाल रघुवर पुर जाई गाती थी, तो आर्य समाजी दादा अंतकाल अकबरपुर (फैजाबाद पैतृक गांव) जाई का उद्घोष करते थे। एक मूर्ति पूजा करता, दूसरा उसका विरोध। पर दोनों हिंदू थे। एक ही छत के नीचे कोई राम भक्त, कोई शिव भक्त, कोई कृष्ण भक्त, तो कोई शक्ति की उपासना करता था। पर सब हिंदू थे। यह है हिंदू धर्म का मूल।

    हिंदू धर्म की इस संवादप्रियता के कारण ही भारतीय इस्लाम और भारतीय ईसाई यहां वैसे नहीं हैं, जैसे अपने मूल रूप में अरब और पश्चिम में हैं। हिंदू धर्म में आस्तिकता की भी जगह है और नास्तिकता की भी। इसमें मूर्ति को मानने वाले भी हैं, मूर्ति को न मानने वाले भी। द्वैत-अद्वैत और सगुण-निर्गुण को मानने वाले भी।

    धर्म के व्यापक फलक में सनातनी भी हिंदू हैं, आर्य समाजी भी और ब्रह्म समाजी भी। ऐसा विशाल और व्यापक धर्म दुनिया में नहीं है। तो फिर हिंदुत्व क्या है? क्या बजरंग दल और श्रीराम सेना की सोच हिंदुत्व है? क्या हिंदुत्व प्रेमी जोड़ों पर हमला है? पहनने-ओढ़ने पर सामाजिक पुलिसिंग है? क्या ‘लव जिहाद’ के नाम पर आंदोलन हिंदुत्व है? घर वापसी हिंदुत्व है?

    वैलेंटाइन-डे का डंडे से मुकाबला हिंदुत्व है? प्राय: कट्टरता को नव राष्ट्रवादी हिंदुत्व का लक्षण मान रहे हैं। एक पवित्र शब्द का अर्थ ऐसे गिरा कि इस शब्द ने अपनी अर्थवत्ता ही खो दी। धारणा में हिंदुत्व के नाम पर एक आक्रामक लठैत समाज खड़ा हो गया, जिसे कोई आलोचना बर्दाश्त नहीं। जैसे बंधु-बंधुत्व, बुद्ध-बुद्धत्व, मनुष्य-मनुष्यत्व होता है, वैसे ही हिंदू-हिंदुत्व होता है।

    उसमें गड़बड़ की अंग्रेजी शब्द ‘हिंदुइज्म’ ने, जिसका अनुवाद अंग्रेजीदां मित्रों ने हिंदुत्व कर लिया। हिंदुत्व शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल बंकिमचंद्र के आनंदमठ में हुआ था। बाद में सावरकर ने इसे राजनीतिक विचारधारा से जोड़ा। नासमझी दोनों तरफ है। जो हिंदुत्व में बोको हराम जैसी नृशंसता देख रहे हैं, उन्हें हिंदू धर्म के बारे में कुछ नहीं पता।

    हिंदू धर्म न किसी एक किताब से जुड़ा है, न किसी एक धर्म प्रवर्तक या भगवान से। यह दुनिया का इकलौता धर्म है, जहां से आप कोई धार्मिक पुस्तक या भगवान निकाल लें, तो भी बगैर खतरे के धर्म बना रहेगा। हिंदू आत्मा के अमरत्व में विश्वास करता है। हिंदू का धर्म ही उसे वह ताकत देता है कि वह अधर्म से निपट सके।

  • जब आरएसएस के मुख्यालय पर तिरंगा फहराने के प्रयास में दर्ज हो गया था मुकदमा 

    जब आरएसएस के मुख्यालय पर तिरंगा फहराने के प्रयास में दर्ज हो गया था मुकदमा 

    द न्यूज 15 
    नई दिल्ली/मुंबई। जो भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवाद पर इतना जोर दे रही है। जो भाजपा तिरंगे के नाम पर किसान आंदोलन को बदनाम करती रही। उसी भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस ने लंबे समय तक नागपुर स्थित अपने मुख्यालय पर तिरंगा न फहराकर अपना ध्वज फहराया। उल्टे जब कुछ युवकों ने उनके कार्यालय पर तिरंगा फहराने का प्रयास किया तो उन मुकदमा दर्ज करा दिया गया। दरअसल अगस्त 2013 को नागपुर की एक निचली अदालत ने वर्ष 2001 के एक मामले में दोषी, तीन आरोपियों को बाईज्जत बरी कर दिया था, इन तीनों आरोपियों – बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी का जुर्म तथाकथित रूप से सिर्फ इतना था कि वे 26 जनवरी 2001 को नागपुर के रेशमीबाग स्थित RSS मुख्यालय में घुसकर, गणतंत्र दिवस पर तिरंगा झंडा फहराने का प्रयास कर रहे थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जिस भवन पर ये युवक तिरंगा फहराना चाहते थे वो कोई मदरसा तो था नहीं,वो तो RSS का राष्ट्रीय मुख्यालय था, जो देशभक्ति की सीख देता रहता है। तब फिर ऐसी क्या वजह थी कि संघ इस कोशिश पर इतना तिलमिला गया कि तीनों युवकों पर मुकदमा दर्ज करा दिया गया? और 12 साल तक वो लड़के, संघ के निशाने पर क्यों बने रहे!
    यह इन बच्चों के आरएसएस मुख्यालय पर तिरंगा फहराने का प्रयास और नागपुर की अदालत में यह मुकदमा दर्ज होने का असर ही रहा कि  2002 में RSS ने अपने मुख्यालय पर तिरंगा झंडा फहराने का निश्चय किया। दरअसल RSS यह समझ गया था कि इस मुकदमे का हवाला देकर, उसकी देश के प्रति निष्ठा पर सवाल खड़े किये जायेंगे।
  • दिग्विजय सिंह ने ‘दीमक’ से की संघ की तुलना

    दिग्विजय सिंह ने ‘दीमक’ से की संघ की तुलना

    द न्यूज़ 15
    इंदौर। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय संघ की तुलना दीमक से की है.

    इंदौर युवा कांग्रेस के कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री सिंह ने आरएसएस पर हमला बोलते हुए कहा, आप एक ऐसे संगठन से लड़ रहे हैं जो ऊपर से दिखाई नहीं देता. जैसे घर में दीमक होता है, वैसे ही यह काम भी करता है।

    पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा, मैं समझता हूं कि जब मैं ऐसा कहूंगा तो मुझे सबसे ज्यादा गाली दी जाएगी क्योंकि मैंने आरएसएस की तुलना दीमक से की है.

    उन्होंने कहा कि संघ कोई पंजीकृत संस्था नहीं है। कोई सदस्यता नहीं, कोई खाता नहीं। जब कोई यूनियन कार्यकर्ता आपराधिक कृत्य में पकड़ा जाता है, तो वे कहते हैं कि हम सदस्य नहीं हैं। यह एक ऐसा संगठन है जो गुप्त और गुप्त रूप से काम करता है। ये लोग केवल फुसफुसाते हैं और गलत भावनाएं फैलाते हैं। किसी की समस्या के लिए कभी भी आंदोलन या लड़ाई न करें।

    संघ पर सीधा हमला बोलते हुए उन्होंने कहा, आरएसएस की विचारधारा नफरत है. हिन्दुओं को खतरा दिखाकर डर पैदा करो और डर पैदा कर कहो कि तुम्हारी रक्षा सिर्फ हम ही कर सकते हैं, और कोई नहीं कर सकता। आज जब राष्ट्रपति से लेकर नीचे तक सभी पदों पर हिंदू हैं तो कौन खतरे में है?

    अस्वीकरण: यह सीधे आईएएनएस न्यूज फीड से प्रकाशित एक खबर है। इसके साथ ही न्यूज नेशन की टीम ने किसी भी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है। ऐसे में इससे जुड़ी खबरों को लेकर जो भी जिम्मेदारी होगी उसकी जिम्मेदारी खुद न्यूज एजेंसी की होगी.

  • जेएनयूएसयू ने बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की, कैंपस में किया विरोध प्रदर्शन

    जेएनयूएसयू ने बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की, कैंपस में किया विरोध प्रदर्शन

    नई दिल्ली, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने अयोध्या में ध्वस्त बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग को लेकर कैंपस के अंदर एक विरोध मार्च निकाला। विध्वंस की बरसी पर सोमवार रात को विरोध मार्च निकाला गया। छात्र एक जगह पर तख्तियां लिए हुए, नारेबाजी करते हुए जमा हो गए और बाद में उन्होंने परिसर के अंदर मार्च निकाला। छात्र नेताओं ने मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग को लेकर भाषण भी दिया।

    जेएनयू प्रशासन ने हाल ही में विरोध प्रदर्शन नहीं करने की चेतावनी दी थी, लेकिन छात्र संघ ने फिर भी विरोध प्रदर्शन किया। रविवार को छात्रसंघ ने परिसर में एक शो का भी आयोजन किया जिसमें बाबरी मस्जिद विध्वंस पर आधारित एक फिल्म दिखाई गई। एडमिन ने छात्रों से कहा था कि ऐसी कोई भी फिल्म का प्रसारण न करें अन्यथा सख्त कार्रवाई की जाएगी।

    सोमवार शाम को निकाला गया विरोध मार्च चंद्रभागा छात्रावास में समाप्त हुआ, जहां छात्र नेताओं ने भाषण दिया।

    जेएनयूएसयू के उपाध्यक्ष साकेत मून ने कहा कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण से न्याय मिलेगा।

    जेएनयूएसयू अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा कि बाबरी मस्जिद के बाद भाजपा का अगला निशाना काशी है और उन्होंने (भाजपा) इस पर काम करना शुरू कर दिया है।

    उन्होंने कहा, “हम इस दिन बाबा साहब को याद कर रहे हैं। हम नागालैंड में नागरिकों की हत्या की भी निंदा कर रहे हैं। भाजपा और आरएसएस ने विकास के नाम पर कुछ नहीं किया है, लेकिन वे हमें धर्म, कानून और व्यवस्था के नाम पर बांट रहे हैं।”