राजेश बैरागी
आयुक्त का दरबार सजा था। इस दरबार की तुलना किसी भी प्रकार से मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार से नहीं की जा सकती है। हालांकि बादशाह तुगलक को लेकर इतिहासकारों में गहरे भ्रम की समझ रही है।वह विद्वान और परख वाला बादशाह था, ऐसा भी इतिहासकार मानते हैं।वह अजीबोगरीब फैसले लेता था, ऐसा भी इतिहासकारों ने ही बताया है। उसके राजधानी बदलने के एक फैसले ने उसे इतिहास में अमर कर दिया।आज तक सरकारों के किन्हीं फैसलों की आलोचना ‘तुगलकी फैसला’ कहकर ही की जाती है। कमिश्नरेट की थानावार अपराधिक स्थिति की समीक्षा चल रही थी। प्रत्येक थाना प्रभारी उठकर अपने थाने पर ‘रामराज’ स्थापित होने,क्षमा करें अपराध की स्थिति पर तपसरा पेश कर रहे थे। तुगलक की एक विशेषता यह थी कि वह एक ही समय में किसी को पुरस्कृत कर रहा होता था और किसी को मृत्युदंड दे रहा होता था। तो हुआ यूं कि आयुक्त ने समीक्षा के दौरान तीन कोतवालों को उनकी सेवा भावना से प्रभावित होकर पुरस्कृत किया और पांच कोतवालों की कुर्सी छीन ली। बताया गया है कि इनमें से दो कोतवाल शारीरिक रूप से दुरुस्त नहीं थे और तीन को खराब प्रदर्शन की सजा मिली। एक पत्रकार साथी ने टिप्पणी की,- कमिश्नरेट में छः छः माह के कोतवाल होते हैं,ये तो साल भर रह लिए। हालांकि नवनियुक्त आयुक्त को अपनी पसंद की टीम बनाने का पूरा अधिकार है।