क्या राजस्थान की सरकार बिना तोड़फोड़ के नहीं बनेगी ? क्या राजस्थान में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा ? क्या राजस्थान के चुनावी परिणाम को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में बौखलाहट है ? यदि ऐसा नहीं है तो अभी तो मतगणना भी नहीं हुई है और नेता राज्यपाल से क्यों मिल रहे हैं ? कांग्रेस की ओर से अशोक गहलोत तो बीजेपी की ओर से वसुंधरा राजे राज्यपाल कलराज मिश्र से क्यों मिली हैं ?
दरअसल किसी भी चुनाव में यह माना जाता है कि मतगणना के बाद जो पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आती है उसे राज्यपाल सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। राजस्थान में तो गजब की राजनीति हो रही है कि मतगणना अभी हुई नहीं कि सरकार बनाने के प्रयास शुरू हो गये हैं। तो क्या कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों को निर्दलीयों और छोटे दलों से जीतकर आने वाले विधायकों की खरीद फरोख्त का खतरा है। इस तरह का खतरा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि सरकार बनाने और बिगाड़ने में ऐसा ही होता रहा है।
2018 के चुनाव में मध्य प्रदेश में भी तो ऐसा ही हुआ था। इन चुनाव में कमलनाथ ज्यादा दिन तक सरकार नहीं चला सके थे । दरअसल कमलनाथ की सरकार के डेढ़ साल बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में करीब 22 विधायक बीजेपी के संपर्क में आ गए थे । दरअसल कुल 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के पास केवल 114 विधायक थे और उसे बहुमत के लिए 116 विधायक चाहिए थे। ऐसे में कांग्रेस को 4 निर्दलीय, दो बीएसपी और एक एसपी विधायक का समर्थन मिला था। इस तरह कुल 121 विधायक उसके साथ आ गए थे। वहीं बीजेपी के पास उस समय 108 विधायक थे। इसी दौरान कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और 22 विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद एमपी में कमलनाथ सरकार गिर गई थी।
गोवा में भी कुछ ऐसा ही हुआ था कुल 40 विधानसभा सीटों के लिए साल 2017 में जब चुनाव हुए तो नतीजों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी। उसे कुल 17 सीटें हासिल हुई थी और दूसरे नंबर पर बीजेपी रही थी। बीजेपी को इस चुनाव में केवल 13 सीटें मिली थीं। चुनाव नतीजों में कांग्रेस बड़ी पार्टी थी लेकिन बीजेपी ने एमजीपी, जीएफपी व 2 निर्दलीय विधायकों के सहारे सरकार बना ली थी।
इसी तरह जब साल 2022 में जब गोवा विधानसभा के चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी ने 20 सीटें जीती। यहां भी वह एक सीट से बहुमत पाने में नाकामयाब रही थी। फिर बीजेपी ने 3 निर्दलीय और महाराष्ट्रवादी गोमांतक (एमजीपी) के 2 विधायकों का सपोर्ट लिया और राज्य में अपनी सरकार बना ली।
कर्नाटक विधानसभा में भी ऐसा ही हुआ था। कर्नाटक में 224 सीटों पर 2018 में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सबसे अधिक सीटें जीती थीं। उसे कुल 104 सीटें हासिल हुई थीं। लेकिन जेडीएस-कांग्रेस ने गठबंधन करके 120 सीटों के साथ सरकार बना ली थी। चूंकि कर्नाटक को बीजेपी अपने लिए एक अहम राज्य मानती है। अगर उसके हाथ से कर्नाटक निकला तो उसके लिए दक्षिण भारत का दरवाजा बंद हो जाएगा। यही वजह है कि बीजेपी ने यहां पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी। साल 2019 में कर्नाटक में बीजेपी ने खेल खेला था। यहां जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार थी और एक समय ऐसा आया कि इस सरकार के 16 विधायक बीजेपी के संपर्क में आ गए। इसके बाद छह महीने भी नहीं बीते और जुलाई 2019 में 14 महीने पुरानी जेडीएस-कांग्रेस सरकार गिर गई थी।
हरियाणा में साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी (जजपा) से मिलकर सरकार बनाई थी। यहां भी चुनाव के दौरान काफी सरगर्मी रही थी लेकिन नतीजों के बाद तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कर दिया था कि राज्य में बीजेपी का मुख्यमंत्री होगा और उपमुख्यमंत्री पद जजपा को दिया जाएगा। भाजपा ने यहां सरकार बनाने के लिए पहले निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल किया था, उसके बाद जजपा से बातचीत की थी। इसके पीछे की रणनीति ये थी कि भाजपा नहीं चाहती थी कि उसे जजपा की सारी शर्तें माननी पड़ें, इसलिए उसने निर्दलीयों को साधकर बहुमत का आंकड़ा पाया। बाद में उसने जजपा से बात की। भाजपा केवल इसलिए जजपा का साथ चाहती थी, जिससे स्थिरता बनी रहे।
2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने जब नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार कमेटी का प्रमुख बनाया तो उसके विरोध में जेडीयू ने बिहार में भाजपा के साथ 17 साल पुराने गठबंधन को खत्म कर लिया। 2014 के लोकसभा में मिली असफलता के बाद जेडीयू और आरजेडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में साथ चुनाव लड़ा और बिहार में सरकार बना ली। लेकिन 26 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और 20 महीने पुराने महागठबंधन से पार्टी को अलग कर लिया। इसके अगले ही दिन उन्होंने बीजेपी के सहयोग से बिहार में सरकार बना ली और बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच टूटी दोस्ती का फायदा बीजेपी ने उठाया और जेडीयू के सहयोग से बिहार में भी अपना वर्चस्व कायम कर लिया।
उधर हरियाणा के 1982 के विधानसभा चुनाव में चौ. भजनलाल ने ऐसा ही कुछ कर दिया था। भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस को 36 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा से चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ मैदान में उतरे भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन के साथ 37 सीटें मिली थी। सब कुछ राज्यपाल पर निर्भर था। राज्यपाल जीडी तपासे ने पहले चौ. देवीलाल को 22 मई को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया, मगर चौ. भजनलाल ने निर्दलीयों की मदद से अपने पाले में 52 विधायक कर लिए। इस प्रकरण से चौ. देवीलाल के क्रोध की सीमा नहीं रही। वह भाजपा विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे। कहते हैं राज्यपाल से बहस के दौरान देवीलाल ने आपा खो दिया था। कहा तो यह भी जाता है कि देवीलाल ने तपासे को थप्पड़ भी जड़ दिया था।