तो अब लड्डू को लेकर मचा बवाल

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अरुण श्रीवास्तव     

‘ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं’ यह स्लोगन है कानपुर की एक दुकान का। दुकान के बाहर बकायदा ये सूत्र वाक्य लिखा है। इस दुकान का नाम ही है ‘ठग्गू के लड्डू’। पर ये कहकर ठग रहा हैं कोई चोरी छिपे नहीं। लोग जानते हुए भी खुशी खुशी ठगने के लिए जाते हैं और खुशी खुशी ठग कर चले आते हैं। बहरहाल इधर कुछ दिनों से लड्डू को लेकर चहुंओर बवाल मचा है या यूं कहें कि, मचाया जा रहा है। बवाल मचे भी क्यों न? आखिरकार ये लड्डू पड़ोसी के यहां से आये ‘तिलकहरु’ वाले लड्डू हैं नहीं कि शुगर के पेसेंट होने पर काम वाली को दे दिया। लड्डू भी हैं तो तिरुपति बालाजी मंदिर के। लोग कहते हैं कि तिरुपति बालाजी के लड्डू बहुत ही शुभ होते हैं। यहां मिलने वाले लड्डू को प्रसादम नाम दिया गया है। कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि भगवान वेंकटेश्वर की कृपा से इस तरह के लड्डू प्राप्त होते हैं। अतः धार्मिक लोग इसे आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में ग्रहण करते हैं और भक्तों के लिए पैक करा कर लें जाते‌ हैं। प्रचलित है कि यहां के लड्डू को भगवान वेंकटेश्वर का पसंदीदा नैवेद्यएम यानि भगवान को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद कहते हैं। एक मान्यता के अनुसार यह कोई ऐरा गैरा लड्डू नहीं है इस लड्डू के को चोल वंश में सैनिक ‘गुड लक’ मानते थे। वो जब भी युद्ध के लिए निकलते थे अपने साथ लड्डू लेकर जाते थे। एक जानकारी के अनुसार तिरुपति बालाजी में लड्डू चढ़ाने की परंपरा 1715 से हुई। ये विश्व नहीं भारत का शायद पहला लड्डू है जो आधार कार्ड के पंजीकरण के आधार पर मिलता है। कोई भी व्यक्ति अधिकतम 999 लड्डू ही खरीद सकता है। बाजार में आम लड्डू 10 से ₹ 15 का एक पीस मिलता है तो तिरुपति बालाजी के लड्डू की कीमत ₹ 50 है। तिरुपति बालाजी के लड्डू की बिक्री से सरकार को सालाना 500 करोड़ का रेवेन्यू प्राप्त होता है। हजारों की संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कारोबार के अवसर भी मिलते हैं।
इस लेख में बात तिरुपति बालाजी के लड्डू के इतिहास और भूगोल पर नहीं हो रही है। बात हो रही है प्रसाद के रूप में दिए या खरीदू जाने वाले लड्डूओं में मिलावट की। तिरुपति बालाजी में मिलने या दिए जाने वाले लड्डुओं में मिलावट की जानकारी उजागर हुई। ये जानकारी यूं ही नहीं मिली है बल्कि हाल ही में सरकार बदलने के बाद नई सरकार के आने से मिली है। किसी ने सच ही कहा कि तवे पर रोटी की तरह ही सरकार को बदलते रहना चाहिए नहीं तो वो जलकर खाक हो जाती है। हुआ यह कि चंद्रबाबू नायडू की सरकार जून में सत्ता में आई और जुलाई में उसने लड्डू में मिलावट की शिकायत मिलने के आधार पर इसकी जांच गुजरात के लैब से करा दी। जबकि मंदिर की अपनी लैब है। हो सकता है कि राज्य सरकार की भी अपनी लैब हो। जांच की रिपोर्ट जुलाई में ही आ गई पर सार्वजनिक की गई दो ढाई महीने के बाद। इस जांच रिपोर्ट में लड्डुओं में मिलावट का संदेह/आशंका बताई गई है। रिपोर्ट में कहीं भी स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख नहीं है कि लड्डूओं में क्या चीज मिलायी गयी है और कितनी मात्रा में मिलायी गयी है। नायडू सरकार का दावा है कि इसमें तीन जानवरों की चर्बी मिलाई जाती थी। हालांकि रिपोर्ट के साथ लगे संलग्नक में शंका व्यक्त किया गया है दावा नहीं।
एक नज़र रिपोर्ट पर: 21 जून 2024 चंद्रबाबू नायडू का खास जो कि तिरुपति का प्रशासनिक अधिकारी भी है श्यामला राव लड्डुओं की शुद्धता का दावा कर ट्वीट करता है। घी को बेस्ट बताता है। 12 जुलाई को एनडीडीबी को सैंपल भेजे जाते हैं। 17 जुलाई को सैंपल मिलते हैं। 23 जुलाई को सैंपल्स के रिजल्ट आते हैं। क्या यह सवाल उठना लाजिमी नहीं कि, तकरीबन दो महीने तक रिपोर्ट पर कुंडली जमाए क्यों बैठी रही नायडू सरकार। यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि, नायडू ने केंद्र में एनडीए सरकार को अपना समर्थन दे रखा है और केंद्र सरकार से भारी भरकम आर्थिक मदद चाहते हैं। इस मामले में भाजपा बखेड़ा खड़ा करने में बीजेपी आईटी सेल को करीब एक महीना लगता है। और इतना ही समय गोदी मीडिया को भी सक्रिय होने में लगा। जबकि सभी मुख्य चैनलों के क्षेत्रीय कार्यालय हर प्रदेश की राजधानी में तो होते ही होते हैं। माडिया रिपोर्ट में भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन रेड्डी के ईसाई होने की बाद भी जोर-जोर से प्रचारित की जा रही है जबकि इसका उनके ईसाई होने से कोई मतलब नहीं है। जबकि अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के आस-पास की जमीन एक दिन में अधिक दाम पर बेचने वाले तो ईसाई नहीं थे। राम पथ बनाने वाले तो ईसाई नहीं थे।

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