सिमरिया घाट: मोक्ष का द्वार और मिथिला की आत्मा का केंद्र

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 राजा जनक की तपोभूमि, जहां से शुरू हुई कल्पवास की परंपरा

दीपक कुमार तिवारी

बेगूसराय। बिहार के बेगूसराय जिले में स्थित सिमरिया गंगा धाम हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए मोक्ष का प्रमुख द्वार माना जाता है। यह पवित्र स्थल न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। सिमरिया धाम को ‘मिथिला का द्वार’ और ‘मुक्ति धाम’ के रूप में मान्यता प्राप्त है।

सिमरिया धाम का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व मिथिलांचल के लोगों की आत्मा से गहराई से जुड़ा हुआ है। सिमरिया का हर कण मिथिलांचल की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है। यह धाम प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मस्थली भी है, जिससे इसका साहित्यिक महत्व भी जुड़ा है। हर वर्ष कार्तिक मास के दौरान यहां लगने वाला एक महीने का कल्पवास मेला लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

राजा जनक की तपोभूमि और कल्पवास की शुरुआत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सिमरिया वह भूमि है जहां राजा जनक ने कल्पवास की शुरुआत की थी। कहा जाता है कि अपने जीवन के अंतिम समय में राजा जनक ने यहीं शरीर त्यागा था। तब से लेकर आज तक, सैकड़ों वर्षों से श्रद्धालु यहां आकर कल्पवास करते हैं। कल्पवास के दौरान लोग गंगा किनारे पर्णकुटी बनाकर एक महीने तक पूजा-पाठ और तपस्या में लीन रहते हैं, जिससे उनके शरीर और आत्मा दोनों का शुद्धिकरण होता है।

आध्यात्मिक माहौल और स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव

मिथिलांचल के लोगों के लिए सिमरिया घाट का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। इस दौरान श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं और अल्पाहार के साथ गंगाजल का सेवन करते हैं, जिसका उनके स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहां भागवत कथा, रामायण पाठ, और विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन होता है, जिससे पूरे क्षेत्र का माहौल भक्तिमय हो जाता है।

सिमरिया: श्रद्धा का केंद्र और मोक्ष की ओर मार्ग

देश के विभिन्न हिस्सों से और नेपाल से भी भारी संख्या में श्रद्धालु कार्तिक मास के दौरान सिमरिया धाम पहुंचते हैं। वे यहां पर्णकुटी बनाकर एक महीने तक गंगा के तट पर वास करते हैं और मोक्ष की कामना करते हुए मां गंगा और तुलसी का पूजन करते हैं। यहां के संत और साधु अपने धार्मिक प्रवचनों के माध्यम से श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं।

सरकार से विकास की अपेक्षाएं

हालांकि सिमरिया धाम की महत्ता को देखते हुए श्रद्धालुओं ने सरकार से इसके और समुचित विकास की मांग की है। सरकार ने भी इस पवित्र स्थल के विकास में योगदान दिया है, लेकिन यहां के श्रद्धालु चाहते हैं कि और भी बेहतर सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि यहां आने वाले भक्तों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

सैकड़ों सालों से चली आ रही है परंपरा

सिमरिया में कल्पवास की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और यह मिथिलांचल के लोगों के दिलों में विशेष स्थान रखती है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं और पवित्रता प्राप्त करने के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

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