हमारा देश एक लोकतंत्र है, जहां सभी को बोलने की और विचार व्यक्त करने की आज़ादी है। और यही मूल सिद्धांत इस देश की पार्टियां भी अक्सर एक दूसरे को याद दिलाती रहती हैं । लेकिन अक्सर देखा गया है कि ये ही राजनीतिक पार्टियां, अपनी पार्टी के कार्यकर्ता का मतभेद सहन नहीं कर पाती हैं । ऐसा ही कुछ वाक्य हमें देखने को मिला समाजवादी पार्टी(सपा) में । लोकतंत्र, धार्मिक सदभावना, समाज कल्याण की बात करने वाली सपा ने अपने धर्म के लिए अडिग रहने वाली रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला।
दरअसल, विवाद शुरू हुआ था, सपा नेता और MLC स्वामी प्रसाद मौर्य के श्री रामचरितमानस के ऊपर किए गए विवादित बयान से । मौर्य ने कहा था कि रामचरितमानस में कुछ आपत्तिजनक पंक्तियां हैं, उन्हें सरकार हटा दे या फिर रामचरित मानस को ही बैन कर दिया जाए । उनके इस बयान के बाद कई जगह पर श्रीरामचरितमानस को जलाने का वाक्या भी सामने आया। वहीं मौर्य के इस बयान के बाद उनका विरोध भी देशभर में हुआ, इतना ही नही, उनका विरोध उनकी ही पार्टी के लोगों ने भी करना शुरु किया । जिसमे प्रमुख नाम रहे, पू्र्व सपा नेता रोली मिश्रा, ऋचा सिंह और अमेठी के गौरीगंज से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह। हालांकि पार्टी के अंदर और बाहर के विरोध के बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार अभद्र और विवादित बयानबाज़ी करते जा रहे हैं।
हाल ये रहे कि जहां सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मौर्य के लगातार विवादित बयानबाज़ी के खिलाफ मौर्य को फटकार लगानी चाहिए थी और उन्हें लाखों लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के चक्कर में उनके खिलाफ एक्शन लेना चाहिए था तो वहीं इन सब की जगह माननीय अखिलेश जी ने मौर्य का प्रमोशन कर उन्हें पार्टी महासचिव बना दिया। तो वहीं दूसरी तरफ जब रोली और ऋचा सनातनी होने के नाते, अपने धर्म के अपमान करने वाले मौर्य के विरुद्ध खड़ी हुईं तो, उन्हें अखिलेश यादव ने पार्टी से ही निकाल दिया। वाह अखिलेश की राजनीतिक लीला तो बड़ी ही अपरमपार है।
यहां पर अखिलेश की पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र की पोल- दो कारणो की वजह से खुल जाती है ।
1. पहला ये कि पार्टी को जहां धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मौर्य के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए थी, तो ऐसा करने कि बजाय सपा ने रोली और ऋचा के खिलाफ कार्यवाही की। गौरतलब है कि सपा ने दोनो नैत्रियों को बिना ‘कारण बताओ नोटिस’ के निष्कासित किया ।
2. दूसरा ये कि इस मामले से साफ हो गया है कि सपा में आंतरिक लोकतंत्र है ही नहीं । जहां एक नेता हिंदू धर्म पर कुछ भी बोल कर देश की अधिकांश आबादी की भावनाए आहत कर सकता है, वहीं अपने धर्म के के लिए आवाज उठाने वाले के विरुद्ध एक्शन लेकर पार्टी ने साबित कर दिया की कितना आंतरिक लोकतंत्र पार्टी में मौजूद है ।
बता दें कि रोली और ऋचा दोनो ही स्वामी प्रसाद मौर्य के श्रीरामचरितमानस पर बयान को लेकर सोशल मीडिया पर मुखर तरीके से विरोध करती रही थीं। अब जानते है सपा की पढ़ी-लिखी, निष्कासित महिला- रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह के बारे में ।
डॉ रोली तिवारी मिश्रा
बात करें रोली तिवारी मिश्रा की तो वो 16 साल तक एक कर्मठ समाजवादी नेता रहीं है । जिन्होने खुद कहा कि उन्हे मुलायम सिंह यादव स्वंय अपनी बेटी जैसी मानते थे । एक ऐसी सपा नेता जो मुलायम सिंह के दुख के दिनो में भी उनके साथ खड़ी रहीं । वो खुद पार्टी के इस निर्णय के बाद सन्न रह गईं थी। और आहत थीं की उन्हे कारण बताओ नोटिस तक जारी नही किया गया । उनका कहना था कि उन्हे लगा, शायद मौर्य अपने बयान पर माफी मांगेंगे, लेकिन इसके उल्टा वो और ज़्यादा बयानबाज़ी में लगे रहे । रोली ने ये भी कहा कि उन्होंने पार्टी में मौर्य की बयानबाज़ी के विरुद्ध बात रखी थी, लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नही हुई ।
डॉ ऋचा सिंह
डॉ ऋचा सिंह इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की पहली निर्वाचित महिला छात्रसंघ अध्यक्ष और सपा की पूर्व प्रदेश प्रवक्ता हैं। छात्रसंघ आंदोलन से निकली डॉ ऋचा सिंह बेहद मजबूत इरादों वाली एक संघर्षशील महिला है। मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर ऋचा सिंह ने अपने दम पर राजनीति में जगह बनाई है। ऋचा सबसे पहले योगी आदित्यनाथ के विरोध करने पर सुर्खियों में आई थी ।
इस पूरे मामले पर आपका क्या कहना है हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। क्या रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह ने अपने धर्म के अपमान के विरुद्ध जाने वाले के खिलाफ आवाज़ उठा कर गलत किया? क्या अखिलेश का स्वामी प्रसाद मौर्य को प्रमोशन देना सही है? बाकी तमाम खबरों से रुबरू रहने के लिए आप बने रहिए The News 15 के साथ ।