चरण सिंह
इसे सहारा निवेशकों की बेबसी ही कहा जाएगा कि उनके मालिकान और अधिकारियों ने उनका बेवकूफ बनाया वहीं केंद्र सरकार भी लगातार उनका बेवकूफ बनाने में लगी है। अब जब लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। आचार संहिता लागू है। मतलब कुछ नहीं हो सकता है, ऐसे में सीआरसीएस ने अपनी वेबसाइट सहारा निवेशकों के भुगतान करने की बात कही है। सीआरसीएस की ओर से लिखा गया कि एक लाख रुपये तक के निवेशक १४ मई से आवेदन करें तो एक लाख से पांच लाख तक के निवेशक २० मई से आवेदन करें। पांच लाख से ऊपर के निवेशकों को जल्द ही सूचना दी जाएगी।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि केंद्र सरकार ने दस साल में सहारा निवेशकों का भुगतान क्यों नहीं कराया ? जब सहारा-सेबी के खाते से पांच हजार रुपये सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निकाल लिये गये थे तो वे रुपये सहारा निवेशकों को क्यों नहीं दिये गये ? सहारा रिफंट पॉर्टल के लांच होने के बावजूद निवेशकों को पैसे नहीं मिले। जांच के नाम पर आवेदन रिजक्ट कर दिये गये। अब क्या गारंटी है कि सीआरसीएस जिन आवेदनों को मंगा रहा है उन आवेदनों में कोई कमी नहीं निकालेगा या फिर निवेशकों को उनका पैसा मिल जाएगा। वैसे भी यह सरकार रहेगी या नहीं रहेगी इस बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता है। बात सहारा निवेशकों की ही नहीं है दूसरी ठगी कंपनियों के निवेशकों की स्थिति भी कमोवेश यही है।
देखने की बात यह है कि सहारा के साथ दूसरी ठगी कंपनियों के निवेशकों की लड़ाई लड़ने के लिए ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार, ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष न्याय मोर्चा, ठगी पीड़ितों की आवाज संगठन बने। अपने-अपने स्तर से सभी संगठनों ने प्रयास भी किये। देशभर में आंदोलन हुआ। दिल्ली जंतर मंतर के साथ ही रामलीला मैदान में भी कई धरना प्रदर्शन हुए पर सरकार ने निवेशकों की पीड़ा की ओर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। बताया जाता है कि भुगतान न होने की स्थिति में सहारा के साथ ही दूसरी ठगी कंपनियों के हजारों एजेंटों ने आत्महत्या कर ली है। सहारा में निवेशकों के भुगतान का वादा करते-करते सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय चल बसे पर निवेशकों को उनका भुगतान न हो सका।
दिलचस्प बात यह है कि गृह मंत्री अमित शाह ने सहारा निवेशकों को उनका भुगतान कराने का वादा किया। सहारा रिफंड पार्टल लांच भी किया गया। सहारा सेबी के खाते से पांच हजार करोड़ रुपये भी निकाले गये पर निवेशकों को उनका पैसा न मिल सका। मतलब यह सब निवेशकों का वोट हासिल करने के लिए हो रहा था। अब भी जब सीआरसीएस ने अपनी वेबसाइट पर सहारा निवेशकों से भुगतान के लिए आवेदन मांगे हैं तो निवेशक यही कह रहे हैं कि यह सब वोट हासिल करने के लिए किया जा रहा है। क्योंकि सहारा निवेशक १० करोड़ के आसपास बताये जा रहे हैं। निवेशक बीजेपी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि अब वे बीजेपी को वोट नहीं देंगे।
यदि बात लीगल कार्यवाही की करें तो तमाम मामले में विभिन्न अदालतों में विचाराधीन हैं पर निवेशकों को कुछ खास राहत नहीं मिल पा रही है। विश्व भारती जन सेवा संस्थान की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कने का दावा किया जा रहा है। ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष मोर्चा भी सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने की तैयारी में लगा है। मतलब सब कुछ हो रहा है पर नहीं हो रहा है तो वह निवेशकों का भुगतान है। निवेशक इसे देश का सबसे बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि सहारा का दो लाख करोड़ और सभी ठगी कंपनियों पर निवेशकों का २० लाख करोड़ रुपये से ऊपर का बकाया भुगतान है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि न तो सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष इस ओर गंभीरता से विचार क्यों नहीं कर रहा है, जबकि सहारा निवेशकों के भुगतान का मामला विभिन्न विधानसभाओं के साथ ही लोकसभा में भी उठ चुका है। खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने सहारा निवेशकों का भुगतान कराने का वादा किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई की गारंटी की बात करते रहे पर उनको इन ठगी कंपनियों के मालिकान भ्रष्ट नहीं लगे।