Sahara India : निवेशक और एजेंटों की बगावत से आशंकित सहारा के श्री ने जब अपने परिवार को कर दिया था विदेश शिफ्ट
चरण सिंह राजपूत
सुब्रत राय क्या निवेशकों, एजेंटों और कर्मचारियों का भुगतान करेंगे या नही? इसको लेकर सबके मन में सवाल है ? सुब्रत राय की नीयत अगर पैसा देने की होती तो वह अपने परिवार को विदेश में शिफ्ट न करते। बताया जा रहा है कि निवेशकों और एजेंटों की बगावत होने से आशंकित सुब्रत रॉय ने 2005 में ही अपनी पत्नी स्वप्ना रॉय, बेटों सीमांतों राय, सुशांतो रॉय दोनों बहुओं को न केवल मकदूनिया गणराज्य की नागरिकता दिलवा दी थी बल्कि अपना कारोबार भी वहां पर शिफ्ट करना शुरू कर दिया था। इसे सुब्रत राय का अपने निवेशकों, एजेंटों और कर्मचारियों को धोखा देना ही कहा जाएगा। मतलब सुब्रत राय और उनके परिवार को राजा महाराजाओं वाले ठाट बाट दिलाने वाले निवेशक, एजेंट और कर्मचारी दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं और सुब्रत राय कर परिवार मैसिडोनिया में मजे मार रहा है।
दरअसल मकदूनिया दक्षिण-पूर्वी यूरोप में स्थित है। यह देश नागरिकता की पेशकश रखकर विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करता है। मकदूनिया की सरकार के बारे में ऐसा माना जाता था कि वह ऐसे किसी भी शख्स को नागरिकता देने के लिए तैयार रहती है, जो वहां कम से कम 4 लाख यूरो का निवेश करे और कम से कम 10 लोगों को नौकरी दे। इसके अलावा, जो विदेशी यहां 40 हजार यूरो से ज्यादा रियल एस्टेट में निवेश करते हैं, उन्हें मकदूनिया में 1 साल रहने का अधिकार मिल जाता है। दरअसल, मैसीडोनिया में बेरोजगारी की दर 30 प्रतिशत है और यहां हर तीसरा शख्स गरीबी में जी रहा है। इसलिए इस देश को विदेशी निवेश की सख्त जरूरत है। मकदूनिया की इन शर्तों से ही समझा जा सकता है कि सुब्रत राय के परिवार ने वहां पर अपना कारोबार जमा लिया है।
सुब्रत राय को उनके निवेशक, एजेंट और कर्मचारी भले ही चोर बता रहे हों पर मकदूनिया ने सुब्रत राय को सर आँखों पर बैठाया है। सुब्रत रॉय के मकदूनिया के कई बार राजकीय अतिथि बनने की बात सामने आई है। सुब्रत राय ने मकदूनिया में मदर टेरेसा की बड़ी प्रतिमा स्थापित करने की भी पेशकश रखी थी। पता चला है कि सुब्रत राय वहां एक कैसिनो भी बनाया है। गत दिनों सुब्रत राय के साथ ही सहारा समूह के एक और प्रमुख निदेशक के भी मकदूनिया की नागरिकता ले लेनी की खबर सामने आई थी।
दरअसल मकदूनिया या मैसेडोनिया पूर्व में युगोस्लाविया का हिस्सा था। बाद में यह 1991 में आजाद हो गया। यह 1993 में यूएन का सदस्य बना। हालांकि, नाम की वजह से ग्रीस से हुए विवाद के कारण इस देश ने युगोस्लाविया के पूर्व गणराज्य के तौर पर पहचान स्वीकार कर ली। दक्षिणी बाल्कन में ग्रीस का एक भौगोलिक और प्रशासनिक क्षेत्र है। 2017 में 2.38 मिलियन की आबादी के साथमैसेडोनिया सबसे बड़ा और दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला ग्रीक क्षेत्र है। यह क्षेत्र अत्यधिक पहाड़ी है , जिसमें थेसालोनिकी और कवला जैसे अधिकांश प्रमुख शहरी केंद्र इसके दक्षिणी तट पर केंद्रित हैं। थ्रेस के साथ, और कभी-कभी थिसली और एपिरस के साथ , यह उत्तरी ग्रीस का हिस्सा है। ग्रीक मैसेडोनिया पूरी तरह से के दक्षिणी भाग को शामिल करता है। मैसेडोनिया का क्षेत्र जो इस क्षेत्र के कुल क्षेत्रफल का 51 प्रतिशत है। इसमें ग्रीस का एक स्वायत्त मठवासी क्षेत्र माउंट एथोस भी शामिल है। यदि सुब्रत राय पर सेबी और सुप्रीम कोर्ट का शिकंजा न होता तो सुब्रत राय भी मैसिडोनिया में शिफ्ट हो गए होते।
दरअसल 2000 रुपए से सहारा की शुरुआत कर बुलंदी छूने वाले सुब्रत राय को लोग तब से जानना शुरू किये थे जब वह 1990 के दशक में गोरखपुर से लखनऊ चले आये थे और सपा महासचिव अमर सिंह और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह से पारिवारिक संबंध बनाये थे। तब से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहारा इंडिया परिवार का मुख्यालय है। यह भी जमीनी हकीकत है कि मुलायम सिंह के संबंधों के बल पर ही सुब्रत राय ने लखनऊ में लगभग 170 एकड़ जमीन पर “सहारा सिटी” का निर्माण किया था। धीरे-धीरे सहारा समूह का व्यापार बढ़ने लगा था और बहुत कम समय में सुब्रत राय ने कई क्षेत्रों में अपनी पहचान बना थी।
सहारा के मीडिया में आते है प्रचार मिलना भी शुरू हो गया था। दरअसल वर्ष 1992 में पहले लखनऊ और बाद में दिल्ली-नोएडा से सहारा ने हिंदी दैनिक ‘राष्ट्रीय सहारा’ का प्रकाशन शुरू किया था। 1990 के दशक के अंत में समूह ने पुणे के पास अपनी महत्वाकांक्षी योजना ‘एम्बी वैली’ की शुरुआत की थी। एम्बी वैली को धरती का स्वर्ग भी कहा जाता रहा है। बताया जाता है कि सुब्रत राय की इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए हेलीकॉप्टरों से पहाड़ियों पर पानी पहुंचाया गया था। 2000 में सहारा टीवी (जो बाद में ‘सहारा वन’ हो गया ) की शुरुआत हुई। वर्ष 2003 में सहारा ने 3 साप्ताहिक पत्र – सहारा टाइम, सहारा समय और सहारा आलमी का प्रकाशन शुरू किया था।
सहारा समूह भारतीय क्रिकेट और हॉकी टीमों के भी प्रायोजक रहा है। एक समय पर उनके पास इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की एक फ्रेंचाईजी ‘पुणे वॉरियर्स इंडिया’ की टीम भी थी परन्तु BCCI से किसी मसले पर विवाद के चलते सहारा समूह ने इसे छोड़ दिया। सुब्रत राय फार्मूला वन के एक टीम ‘द सहारा फ़ोर्स इंडिया फार्मूला वन टीम’ के भी मालिक रहे हैं। 2010 में सहारा ने लंदन के ग्रॉसवेनर हाउस तथा 2012 में न्यूयार्क के प्लाजा होटल को ख़रीदा था।
सुब्रत राय बड़े शौक से एयरलाइंस में आये थे। सहारा एयरलाइंस ने बहुत कम समय में देश विदेश में विशेष पहचान बनाई थी। हालांकि बाद में सुब्रत राय को वर्ष 2007 में सहारा एयरलाइन्स जेट एयरवेज को बेचनी पड़ गई थी। सहारा-जेट डील काफी समय तक विवादों में रही क्योंकि पूर्व घोषणा के बावजूद एक समय पर जेट ने सौदे को रद्द कर दिया था। इसके बाद दोनों पक्षों में बातचीत का दौर चला था और फिर जाकर जेट ने सौदे के लिए हां कहा था।
सुब्रत रॉय द्वारा संचालित सहारा समूह की ओर से 30 जून 2010 तक 1,09,224 करोड़ रूपये की परिसंपत्तियां और लगभग 10 लाख लोग कंपनी के लिए कार्य करने का दावा किया गया था। सहारा के अनुसार लगभग 30 करोड़ लोगों ने कंपनी में निवेश किया है। हालांकि आज की तारीख में सुब्रत राय सहारा की परिसंपत्तियां दो लाख करोड़ से ऊपर बताते हैं।
वर्ष 2014 सुब्रत राय पर आफत बनकर आया। दरअसल 26 फरवरी 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी द्वारा निवेशकों के पैसे वापस नहीं दिए जाने वाले मामले में अदालत में पेश होने में नाकाम रहने के लिए सुब्रत रॉय की गिरफ्तारी का आदेश दिया। अंततः उन्हें 28 फ़रवरी 2014 को बाजार नियामक (SEBI) के साथ एक विवाद में सुप्रीम कोर्ट के वारंट पर सुब्रत राय को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार लिया गया। इसी मामले में सुब्रत 4 मार्च 2014 दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद कर दिए गए। उनके जमानत की याचिका भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गयी थी और न्यायालय ने यह भी कहा था कि उन्हें रिहा तभी किया जायेगा जब वे निवेशकों के कुल बाकि रकम का एक हिस्सा जमा करेंगे। 10,000 करोड़ रुपये जमा करने की शर्त पर 26 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी पर सुब्रत तमाम कोशिशों के बावजूद तय राशि जमा नहीं कर पाये थे।
निवेशक ऐसे ही सुब्रत राय के चंगुल में नहीं फंसे हैं। दरअसल सहारा शुरू में कुछ सालों तक वह निवेशकों को सारे पैसे देता था, लेकिन, बाद में वह निवेशकों को कहता था कि आप पैसे लेने की जगह दोबारा इन्वेस्ट करें, हर बार मेच्योरिटी होने पर वह एक नई स्कीम ला देते थे और फिर से निवेश करा देते थे। रिटर्न्स इतने अच्छे थे कि छोटे कामगार निवेश करते थे, इससे सबका पैसा बार-बार निवेश होता रहा।
सुब्रत राय की दिक्क़तें तब शुरू हुईं जब उन्होंने कंपनी को पब्लिक बनाया। इसके बाद वह हाउजिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर पब्लिक गए। मतलब पहली बार वह प्राइवेट से पब्लिक हुए, इसके पीछे उनका मकसद बिजनेस बढ़ाना था, लेकिन, इसके बाद साल 2005 में SEBI से सहारा की लड़ाई छिड़ गई, लेकिन, सुब्रत राय अपने घमंड में खुद को सबसे ऊपर समझने लगे थे। सुब्रत राय सेबी को जवाब तक नहीं देते थे। SEBI दफ्तर में तो सुब्रत राय ने 127 ट्रकों में भरकर 31 हजार बक्शे में 5 करोड़ डॉक्यूमेंट भेज दिए थे, उन्हें लगता था कि इतने डॉक्युमेंट्स को ठीक करने में रेगुलेटर को कई महीने लगेंगे।
हालांकि, जब सुब्रत रॉय बुरी तरह फंस गए तो उन्होंने कहा था कि पिछले 32 साल में उन्होंने कोई भी हेराफेरी नहीं की है। 1 रुपये भी चुराए हैं तो फांसी दे दीजिए। इस बीच सेबी की पकड़ मजबूत होती देख उन्होंने 11 लाख लोगों के साथ राष्ट्रगान गाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया था। लेकिन, रेगुलेटरी अथॉरिटी उन पर जांच प्रक्रिया तेज करती जा रही थी।
सुब्रत राय की यह हनक ही रही है कि वह कभी भी सुनवाई के लिए कोर्ट नहीं गए। कोर्ट का ऑर्डर नहीं माने, पेशी से बचने के लिए उन्होंने अपने वकील से कोर्ट कहलवा दिया था कि उनकी 92 साल की मां बीमार हैं। इसलिए वह कोर्ट नहीं आ सकते, लेकिन, उसी दिन वह एक शादी में थे, 3 करोड़ छोटे निवेशकों को 24 हजार करोड़ कैसे नहीं पहुंचा, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था। हालांकि, सुब्रत रॉय अगर पैसे दे देते तो वह जेल नहीं जाते, लेकिन उन्होंने पैसे नहीं दिए, इसके बाद सुब्रत राय जेल गए। अब सुब्रत राय की न्यायिक हिरासत कैसी थी। इसका अंदाजा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि जेल में भी एक योग इंस्ट्रक्टर उन्हें योग की ट्रेनिंग देने आता था, इसके पीछे की वजह थी कि उन्हें डर था कि वह मोटे न हो जाएं। मतलब सुब्रतो रॉय एक अलग तरह की लाइफस्टाइल में आ गए. साल 2016 में उन्हें पेरोल मिली तो वह बाहर आए और अभी भी बाहर हैं।