कब होगा महेश कोल के साथ न्याय? 48 आंदोलनकारियों को सजा देने का फैसला अन्यायपूर्ण, उच्च न्यायालय से न्याय की उम्मीद
किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम ने सतना जिले के रामनगर गोलीकांड में 19 वर्ष बाद 48 आंदोलनकारियों को 7-7 साल की सजा एवं 4-4 हजार रुपये अर्थदंड दिए जाने के फैसले को दुखद एवं अन्याय पूर्ण बताते हुए कहा है कि 1 सितंबर 2003 को रामनगर निवासी महेश कोल की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हुई थी। जिसके चलते परिजन डॉक्टरों के पैनल द्वारा पोस्टमार्टम की जायज मांग कर रहे थे। आंदोलन के दौरान पुलिस ने अनावश्यक, अवैध, क्रूरता पूर्वक गोली चालन किया, जिसमें तीन नागरिक सत्येंद्र गुप्ता, राम शिरोमणि शर्मा और मणि चौधरी शहीद हुए थे।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि वे पूरे मामले की तथ्यात्मक जानकारी लेने रामनगर गए थे। तब उनके साथ गणेश सिंह भी थे जो गत दो बार से सतना के भा ज पा के सांसद है। डॉ. सुनीलम ने कहा कि उस समय किसान संघर्ष समिति ने एसपी, कलेक्टर और दोषी अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की मांग की थी लेकिन सरकार द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई और अब घटना के 19 वर्ष बाद फर्जी मुकदमों के आधार पर 48 आंदोलनकारियों को सजा सुना दी गई है।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि जिन 48 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किए गए थे, उनमें से बहुत सारे रामनगर निवासी ऐसे थे जो घटना के समय आंदोलन में मौजूद तक नहीं थे।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि उन्होंने आंदोलनों पर पुलिस गोली चालन पर रोक लगाने को लेकर डॉ राम मनोहर लोहिया की जन्म शताब्दी वर्ष पर पूरे देश की यात्रा की थी। इसके बावजूद भी सरकारों द्वारा गोली चलाने और आंदोलनकारियों को सजा दिलाने का क्रम जारी है क्योंकि राजनीति करने वाले दल इसपर मौन हैं।
डॉ. सुनीलम ने कहा कि एसपी राजा बाबू सिंह जब भिण्ड में पदस्थ थे तब उन पर सब इंस्पेक्टर सुश्री चेतना शर्मा का बलात्कार कर हत्या करने का आरोप लगा था। उस समय भिण्ड में किसान संघर्ष समिति द्वारा बड़ा आंदोलन चलाया गया था जिसके परिणाम स्वरूप राजा बाबू सिंह का तबादला भर हुआ लेकिन चेतना शर्मा के हत्यारे और बलात्कारी बच निकले।
डॉ. सुनीलम ने आशा व्यक्त कि है कि उच्च न्यायालय द्वारा अवश्य आंदोलनकारियों के साथ न्याय किया जाएगा। डॉ. सुनीलम ने कहा कि अदालतों के अन्यायपूर्ण फैसलों के खिलाफ सजग नागरिकों को सवाल उठाने चाहिए। समाज को मौन नहीं रहना चाहिए, ऐसे फैसलों का प्रतिकार किया जाना चाहिए ।
डॉ सुनीलम ने अन्याय पूर्ण फैसले का राजनीतिक दलों द्वारा विरोध नहीं किए जाने पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि इससे पता चलता है कि समाज लगातार असंवेदनशील होता जा रहा है तथा आंदोलनकारियों के मनोबल को गिराने की व्यवस्था की साजिश का प्रतिकार करने के लिए लोग और संगठन सामने नहीं आ रहे हैं, जिससे निरंकुशता तानाशाही में बदलती जा रही है। जिससे देश में लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है।