अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा भक्ति, आस्था, श्रद्धा या विश्वास 

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पवन कुमार 

अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को वैश्विक स्तर पर सभी देशवासियों के लिए एक बड़ा दिन है क्योंकि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में होने वाला है। प्राण प्रतिष्ठा -हिंदू धर्म परंपरा में प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र अनुष्ठान है जो किसी मूर्ति या प्रतिमा में उस देवी, देवता का आवाहन कर उसे पवित्र दिव्य बनाने के लिए किया जाता है प्राण शब्द का अर्थ जीवन है, जबकि प्रतिष्ठा का अर्थ स्थापना है। अर्थात कोई मूर्ति तब तक सिर्फ पत्थर की मूर्ति, प्रतिमा ही है, वह पूजनीय नहीं है जब तक उसमें अनुष्ठान अनुसार प्राण प्रतिष्ठित न किए जाएं।
आज समस्त राम भक्तों के लिए हर्षोल्लास का दिन है।यह राम भक्तों की आस्था ही थी कि आज अयोध्या में राम मंदिर राम लला प्राण प्रतिष्ठा का दिन आ ही गया, क्योंकि आस्था अक्षर उम्मीद से जुड़ी होती है उम्मीद कुछ पाने की, उम्मीद कुछ करने की, उम्मीद कुछ पूरा होने की, आस्था कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि आस्था एक पूर्ण विश्वास है, जो उस सम्मान को दर्शाता है जो रखी गई तारीख 22 जनवरी को अयोध्या में रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा के दिन लिए हमारे हृदय में अपार प्रेम, आस्था, श्रद्धा,विश्वास है इसलिए आस्था प्रेम का विषय भी बन जाता है।आस्था श्रद्धा से जुड़ी है श्रद्धा में भक्ति है भक्ति में प्रेम है।
श्रद्धा और प्रेम में क्या अंतर है? प्रेम स्वाधीन कार्य पर निर्भर करता है, किसी को कोई अच्छा लगता है उसे उससे प्रेम हो जाता है ,और श्रद्धा व्यक्ति के उत्तम कार्यों के द्वारा उत्पन्न होने वाली मनोदशा है, इसका सामाजिक प्रभाव होता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण जी ने प्रेम का अर्थ समझाते हुए कहा है, प्रेम का अर्थ किसी को पाना नहीं किंतु उसमें खो जाना है श्री कृष्ण कहते हैं कि हमें प्रेम में त्याग करना पड़ता है, प्रेम वह नहीं है जिसे छीनकर या मांग कर लिया जाए बल्कि प्रेम वही है जहां त्याग है, श्री कृष्ण कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति से ज्यादा प्रेम,लगाओ हानिकारक बन जाता है।
श्रद्धा और भक्ति में अंतर-श्रद्धा श्रेष्ठ के प्रति होती है और भक्ति आराध्या के प्रति किंतु देखा जाए तो दोनों में अति सूक्ष्म अंतर होते हुए भी अर्थ और भाव की दृष्टि से काफी असमानता है, उसके प्रति किसी की श्रद्धा भी रहती है और भक्ति भी लेकिन आराध्या के प्रति मात्र भक्ति ही होती है। जैसे प्रभु श्री राम के प्रति राम भक्तों की भक्ति है।
हमारे शास्त्रों में भक्ति को 9 भागों में रखा गया है जिसको नवधा भक्ति बोलते हैं। (1) श्रवण भक्ति – (राजा परीक्षित) ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति इत्यादि की प्रेम सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।
(2)कीर्तन – (शुकदेव) ईश्वर के गुण चरित्र,नाम,पराक्रम,आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।
(3)स्मरण -(प्रहलाद) अनन्य भाव से परमेश्वर,भगवान का स्मरण कर उस पार मुग्ध होना।
(4)पाद सेवन – (लक्ष्मी ) ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्ही को अपना सर्वस्व समझना।
(5)अर्चन -(प्रथुराजा) मन,वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।
(6)वंदन -(अक्रूर)भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान अन्य रूप में व्याप्त भक्तजन आचार्य,ब्राह्मण,गुरुजनों,माता पिता आदि को परम आदर सत्कार के साथ पवित्र भाव से प्रणाम,नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।
(7) दाश्य -हनुमान ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।।
(8) सख्य -अर्जुन ईश्वर को ही अपना परम मित्र मानकर अपना सर्वोच्च उसे समर्पण कर देना तथा स्वच्छ भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।
(9) आत्म निवेदक -राजा बलि अपने आप को भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपने स्वतंत्र सत्ता न रखना यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई है।
आज सभी राम भक्त उत्साहित है और गांव-गांव शहर शहर उत्साह की लहर है जगह जगह पर हवन यज्ञ हो रहे हैं घरों को दीपावली की तरह सजाया जा रहा है,प्रभात फेरी की तैयारी चल रही है, घरों पर भगवा ध्वज लहरा रहे हैं, अयोध्या में राम आ रहे हैं।

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