सरिता मौर्य
नई दिल्ली। कोई आपसे कहे कि कभी 3 रुपए किलो बिकने वाली किसी चीज़ का कारोबार सालाना 15 करोड़ रुपए से ज्यादा का हो जायेगा। जी हां यह बात बिल्कुल सच है। यह सब कुछ कर दिखाया है राजस्थान के आबूरोड के एक रबड़ी कारोबारी ने। जिनकी रबड़ी का दिल्ली के चांदनी चौक से सीधा और खास कनेक्शन क्या है।
दरअसल राजस्थान में जब जब रबड़ी का जिक्र होता है तो सबसे पहले जुबान पर एक ही नाम आता है, वह है आबूरोड की मशहूर रबड़ी। सच तो ये है कि ये रबड़ी अब हिल स्टेशन के नीचे बसे आबूरोड की पहचान बन गई है। यहां ऐसी कोई गली, या ऐसा कोई चौक चौराहा नहीं नहीं, जहां ये रबड़ी न बिकती हो। ऐसे में सीजन चाहे सर्दी का हो या गर्मी का। यहां आने वाले टूरिस्ट में रबड़ी की भारी डिमांड रहती है।
ज्ञात हो कि इस रबड़ी का इतिहास 70 साल से भी पुराना है। इसके मालिक हैं दयाल भाई। दरअसल दयालभाई ने 1968 में आबूरोड की एक छोटी सी दुकान से इसकी शुरुआत की थी और अब ये आबूरोड की सबसे फेमस और पुरानी दुकान बन चुकी है । ऐसे में आप सोच रहे होंगे । .ऐसा क्या खास है इस रबड़ी में की इसे जो एक बार खाता है..वो इसका जायका उम्रभर याद रखता है तो जान लीजिए कि ये रबड़ी भले ही आबूरोड में बनती हो । लेकिन इसके खास जायके की असली वजह आबूरोड से करीब करीब 750 किलोमीटर दूर दिल्ली के चांदनी चौक से जुड़ी हुई है….हैरत में मत पड़िए खुद दयाल भाई ने बताया है कि इस खास रबड़ी की रेसिपी का आइडिया उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक की रबड़ी-फलूदा की एक फेमस दुकान से मिला था…जिसके बाद उन्होंने इस आईडिया को अपने धंधे में आजमाया…और उनकी रेसिपी देखते देखते हिट हो गई…जिसके चलते ही आज आबूरोड शहर में इस खास रबड़ी की 20 से ज्यादा दुकानें है जिन पर 100 से ज्यादा भट्टियों पर ये रबड़ी तैयार की जाती है।
अगर रबड़ी की औसत खपत की बात करें तो हर दुकान पर औसत 30 किलो से ज्यादा रबड़ी बिकती है।इस रबड़ी को तैयार करने में करीब 4 घंटे की मेहनत लगती है..तब कही जाकर 3 किलो रबड़ी तैयार होती है । टूरिस्ट सीजन में तो यह औसत 50 किलो प्रति दुकान से भी ज्यादा होता है।
इसके अलावा सिर्फ दुकानों पर ही नहीं बल्कि कई ठेलों पर भी इसकी बिक्री होती है । दुकानदारों ने बताया कि पूरे आबूरोड में 900 किलो रबड़ी की खपत रोज की होती है…और ये रबड़ी आमतौर पर 400 रुपए किलो के हिसाब बिकती है, हालांकि इसके भाव दूध के भाव पर भी निर्भर करते हैं…जिसके चलते गर्मी और शादियों के सीजन में तो इसके भाव 600 रुपए किलो तक चले जाते हैं…और इसका सालाना कारोबार की बात करें तो ये 15 करोड़ से भी ज्यादा का हो गया है ।
दरअसल राजस्थान में जब जब रबड़ी का जिक्र होता है तो सबसे पहले जुबान पर एक ही नाम आता है, वह है आबूरोड की मशहूर रबड़ी। सच तो ये है कि ये रबड़ी अब हिल स्टेशन के नीचे बसे आबूरोड की पहचान बन गई है। यहां ऐसी कोई गली, या ऐसा कोई चौक चौराहा नहीं नहीं, जहां ये रबड़ी न बिकती हो। ऐसे में सीजन चाहे सर्दी का हो या गर्मी का। यहां आने वाले टूरिस्ट में रबड़ी की भारी डिमांड रहती है।
ज्ञात हो कि इस रबड़ी का इतिहास 70 साल से भी पुराना है। इसके मालिक हैं दयाल भाई। दरअसल दयालभाई ने 1968 में आबूरोड की एक छोटी सी दुकान से इसकी शुरुआत की थी और अब ये आबूरोड की सबसे फेमस और पुरानी दुकान बन चुकी है । ऐसे में आप सोच रहे होंगे । .ऐसा क्या खास है इस रबड़ी में की इसे जो एक बार खाता है..वो इसका जायका उम्रभर याद रखता है तो जान लीजिए कि ये रबड़ी भले ही आबूरोड में बनती हो । लेकिन इसके खास जायके की असली वजह आबूरोड से करीब करीब 750 किलोमीटर दूर दिल्ली के चांदनी चौक से जुड़ी हुई है….हैरत में मत पड़िए खुद दयाल भाई ने बताया है कि इस खास रबड़ी की रेसिपी का आइडिया उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक की रबड़ी-फलूदा की एक फेमस दुकान से मिला था…जिसके बाद उन्होंने इस आईडिया को अपने धंधे में आजमाया…और उनकी रेसिपी देखते देखते हिट हो गई…जिसके चलते ही आज आबूरोड शहर में इस खास रबड़ी की 20 से ज्यादा दुकानें है जिन पर 100 से ज्यादा भट्टियों पर ये रबड़ी तैयार की जाती है।
अगर रबड़ी की औसत खपत की बात करें तो हर दुकान पर औसत 30 किलो से ज्यादा रबड़ी बिकती है।इस रबड़ी को तैयार करने में करीब 4 घंटे की मेहनत लगती है..तब कही जाकर 3 किलो रबड़ी तैयार होती है । टूरिस्ट सीजन में तो यह औसत 50 किलो प्रति दुकान से भी ज्यादा होता है।
इसके अलावा सिर्फ दुकानों पर ही नहीं बल्कि कई ठेलों पर भी इसकी बिक्री होती है । दुकानदारों ने बताया कि पूरे आबूरोड में 900 किलो रबड़ी की खपत रोज की होती है…और ये रबड़ी आमतौर पर 400 रुपए किलो के हिसाब बिकती है, हालांकि इसके भाव दूध के भाव पर भी निर्भर करते हैं…जिसके चलते गर्मी और शादियों के सीजन में तो इसके भाव 600 रुपए किलो तक चले जाते हैं…और इसका सालाना कारोबार की बात करें तो ये 15 करोड़ से भी ज्यादा का हो गया है ।