President Election 2022 : तीसरे मोर्चे के गठन की वजह से कांग्रेस को विपक्षी एकता में देखने को तैयार नहीं हैं चंद्रशेखर राव और केजरीवाल
राष्ट्रपति चुनाव President Election 2022 को लेकर टीएमसी की मुखिया और पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक के बाद चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। भले ही इस बैठक में कांग्रेस, सीपीआई (एम), सीपीआईएमएल, आरएसपी, शिवसेना, एनसीपी, आरजेडी, एसपी, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीएफ, जेडीएस, डीएमके, आरएलडी, आईयूएमएल और जीएम एम शामिल हुए हों पर आप और टीआरएस के इस बैठक से दूरी बनाकर रखने की वजह से विपक्षी एकता को झटका लगा है। उधर असदुद्दीन ओवैसी ने यह कहकर कि यदि ममता बनर्जी उन्हें बुलातीं तो भी वह कांग्रेस की वजह से बैठक में नहीं जाते। मतलब बैठक में सभी विपक्षी दलों के न पहुंचने की वजह से ममता बनर्जी के इस प्रयास को बड़ा झटका लगा है।
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राष्ट्रपति चुनाव को अधिसूचना जारी होने के साथ ही बुधवार को नामांकन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। पहले दिन 11 उम्मदीवारों ने अपना पर्चा भरा है। President Election 2022 Date 18 जुलाई घोषित कर दी गई है। मतगणना 21 जुलाई को होगी। दरअसल राष्ट्रपति रामनाथ कोविद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। अरविन्द केजरीवाल और के. चंद्रशेखर राव की नाराजगी के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर विपक्ष आम सहमति से एक उम्मीदवार चुनाव में उतारने की रणनीति बना रहा है। बुधवार को विपक्षी एकता के लिए बुलाई बैठक में President Election 2022 Date को देखते हुए पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आम सहमति से उम्मीदवार चुनने की बात कही है।
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दरअसल 2024 के आम चुनाव को लेकर टीआरएस प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के बीजेपी और कांग्रेस से अलग होकर तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद में जुटे हैं। उनके इस मिशन में ममता बनर्जी भी थीं। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर की गई बैठक में ममता बनर्जी के कांग्रेस को बुलाने के वजह से चंद्रशेखर राव नाराज हो गए हैं। ऐसे ही आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस की वजह से बैठक में नहीं पहुंचे।
राष्ट्रपति चुनाव India President Election 2022 के लिए विपक्षी दलों में आम आदमी पार्टी की बड़ी अहमियत मानी जा आ रही है। यही वजह है आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल सोच समझकर अपनी चालें चल रहे हैं। देखने की बात यह है कि केजरीवाल विपक्ष की भूमिका में भले ही आगे रहते हों पर राष्ट्रपति चुनाव में वह कांग्रेस के साथ रहने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि जब ममता बनर्जी ने India President Election 2022 पर मंथन के लिए बुलाई गई विपक्ष की बैठक में कांग्रेस को भी बुला लिया तो अरविंद केजरीवाल ने इस बैठक से दूरी बना ली। ऐसे में प्रश्न उठता है कि राष्ट्रपति चुनाव में आखिरकार आप की भूमिका रहेगी क्या ?
दरअसल अरविन्द केजरीवाल आज की तारीख में कांग्रेस को पीछे धकेल कर आप को दो नंबर की पार्टी बनाने की तैयारी में जुटे हैं। यही वजह है कि वह कांग्रेस की कोई भी रणनीति में शामिल नहीं होना चाहते हैं। दरअसल आज की तारीख में आम आदमी पार्टी के दो राज्यों में 156 विधायक और 10 राज्य सभा सांसद हैं। अरविन्द केजरीवाल आम आदमी पार्टी को गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों में भी जमाने के लिए प्रयासरत हैं। हरियाणा में तो जिस तरह से विभिन्न समाज के लोग दिल्ली में आकर अरविन्द केजरीवाल से मिल रहे हैं।
विभिन्न दलों के लोग आम आदमी पार्टी से जुड़ रहे हैं। ऐसे में यदि आम आदमी पार्टी हरियाणा में सरकार बना ले जाये तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं होगा। हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच विवाद का फायदा उठाने में केजरीवाल लगे हैं। देखने की बात यह है कि आम आदमी पार्टी ने मात्र एक दशक में कांग्रेस को दिल्ली और पंजाब में हाशिये पर धकेल दिया है। यही वजह है कि वह कांग्रेस से दूरी बनाकर अपने को मजबूत करने में लगी है।
जब्त जब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संबंधों की चल रही है तो याद कीजिये कि 2017 में जब राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी के लिए सोनिया गांधी ने जब 17 विपक्षी दलों को लंच पर बुलाया था तो उस समय कांग्रेस ने उस लंच में आम आदमी पार्टी को नहीं बुलाया था। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के संबंधों की कहानी बड़ी दिलचस्प है। आम आदमी पार्टी अन्ना आंदोलन से निकली हुई पार्टी है। जब प्रख्यात समाजसेवक अन्ना हजारे की अगुआई में 5 अप्रैल 2011 को इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन हुआ तो इस आंदोलन में मौजूदा आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया मुख्य आंदोलनकारियों में से एक थे। उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी। इस आंदोलन ने कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को हिलाकर रख दिया था।
कांग्रेस इस आंदोलन के उस झटके से उबर नहीं पाई थी। हालांकि आम आदमी पार्टी का गठन आंदोलन के एक वर्ग ने किया था। 2013 में पहली बार चुनाव लड़ी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से अल्पमत की सरकार बनाई। तब राजनीतिक पंडितों ने कांग्रेस के आप को समर्थन को उसकी बड़ी गलती करार दिया था। 2014 में केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। 2019 के आम चुनाव से पहले गठबंधन की बातचीत टूटने के बाद दोनों दलों के बीच एक विवाद भी शुरू हो गया था। राहुल गांधी और केजरीवाल का एक विवाद शुरू हो गया था। देखने की बात यह भी है कि अरविन्द केजरीवाल 2018 में उन विपक्षी नेताओं में से एक थे, जिन्होंने कर्नाटक में एचडी कुमार स्वामी के शपथ समारोह में हिस्सा लिया था। 2019 में कोलकाता में टीएमसी द्वारा आयोजित एक संयुक्त विपक्षी रैली में भी शिरकत की थी। 2019 के फरवरी में आप ने जंतर मंतर पर लोकतंत्र बचाओ रैली की भी मेजबानी की थी, जहां पर केजरीवाल ने कांग्रेस के आनंद शर्मा के साथ मंच साझा किया लेकिन 2019 आम चुनाव में हार ने फिर से सोचने को मजबूर कर दिया।
दरअसल केजरीवाल, ममता बनर्जी और टीआरएस के. चंद्रशेखर राव और डीएमके के एम् के स्टालिन जैसे नेताओं से मिलना जारी रखते हैं। आम नेताओं का कहना है कि 2024 के आम चुनाव में 2024 के चुनाव की अगुआई में पार्टी संयुक्त मंचों में भाग लेने में काफी हद तक दूर हो जाएगी। जैसे कि अतीत में किया था। विपक्षी दलों की बैठक में शामिल न होने की केजरीवाल की एक और भी वजह है कि की टीएमसी से आप के संबंधों में गिरावट आई है।
दरअसल राष्ट्रपति चुनाव President Election 2022 India को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ी हुई है। इसी सिलसिले में विपक्ष को एकजुट करने के लिए ममता बनर्जी ने बुधवार को एक बैठक बलाई थी। इस बैठक में न तो टीआरएस ने हिस्सा लिया और न ही आम आदमी पार्टी ने अब एआईएमआईएम् प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी कह दिया है कि यदि ममता बनर्जी उन्हें बुलातीं तो कांग्रेस की वजह से वह भी नहीं जाते।
दरअसल टीआरएस प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बीजेपी को हराने के मिशन को लेकर ममता बनर्जी के साथ नजदीकियां बढ़ी थी। President Election 2022 India को लेकर विपक्षी एकता के नाम पर आयोजित बैठक में कांग्रेस को बुलाने पर चंद्रशेखर राव ने कड़ी आपत्ति जताई है। टीआरएस ने दो टूक कह दिया है कि कांग्रेस के साथ किसी भी मंच को साझा करने का कोई सवाल ही नहीं है। हालांकि सपा की ओर से ममता बनर्जी को काफी राहत मिली है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि ममता बनर्जी जो निर्णय लेंगी वह उन्हें मंजूर होगा।
भले ही राष्ट्रपति चुनाव President Election 2022 को लेकर सत्तापक्ष मजबूत माना जा रहा हो पर विपक्ष भी अपनी मजबूती दिखाकर विपक्षी एकता का एक संदेश देना चाहता है। यही वजह है कि ममता बनर्जी सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर 2024 के आम चुनाव की तैयारी अभी से ही करना चाहती है। हालांकि कांग्रेस को बैठक में बुलाने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए के. चंद्रशेखर राव, अरविन्द केजरीवाल और असदुद्दीन ओवैसी ममता बनर्जी का खेल बिगाड़ने में लगे हैं। उधर सत्ता पक्ष बीजेपी की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को राष्ट्रपति चुनाव की बागडोर सौंपी गई है।
-चरण सिंह राजपूत