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सियासत:नीतीश की प्रगति यात्रा पर राजनीतिक कड़वाहट बढ़ी!

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-अंदर खाने हलचल
-बाहर सामान्य दिखने के दावे
-कई तरह की आशंकित चर्चाएं

दीपक कुमार तिवारी

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सोमवार को अपनी प्रगति यात्रा के लिए पटना एयरपोर्ट से पश्चिम चंपारण के लिए रवाना हुए। बता दे की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीते दो दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे जिसके कारण उन्होंने बिहार की राजधानी पटना में होने वाले इन्वेस्टर मीट में भी भाग नहीं लिया इसके साथ-साथ राजगीर में होने वाले बड़े कार्यक्रम को भी स्थगित कर दिया गया। सोमवार को पटना एयरपोर्ट पर नीतीश कुमार को रवाना करने के लिए जदयू के कई बड़े नेता मौजूद रहे लेकिन सबसे बड़ी खास बात यह रही की बिहार में उनकी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने इस प्रगति यात्रा से दूरी बनाए रखी। पटना एयरपोर्ट पर बीजेपी का कोई बड़ा नेता नीतीश के स्वागत के लिए नहीं था इसके बाद यह माना जा रहा है कि बिहार में जदयू और भाजपा में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। प्रगति यात्रा की तस्वीर से जेडीयू-भाजपा के रिश्तों में आई कड़वाहट साफ-साफ दिख रही है।
खास बात यह रही कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ सिर्फ जेडीयू कोटे वाले मंत्री ही दिखे। विजय चौधरी तो साथ गए ही हैं। एयरपोर्ट पर मंत्री श्रवण कुमार, रत्नेश सदा, मदन सहनी, जयंत राज दिख रहे थे। एयपोर्ट पर नीतीश कैबिनेट में भाजपा कोटे के एक भी मंत्री शामिल नहीं हुए। ऐसा लग था कि नीतीश कुमार जेडीयू की यात्रा में जा रहे हों। बता दें,मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा में दोनों डिप्टी सीएम भी शामिल नहीं हो रहे हैं। सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा दिल्ली में हैं। यात्रा से भाजपा की दूरी के बाद राजनैतिक गलियारे में जबरदस्त चर्चा है।
बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक कदमों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। जदयू की ओर से कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं, जो यह इशारा कर रहे हैं कि नीतीश कुमार एक बार फिर बड़ा राजनीतिक दांव खेल सकते हैं। अटकलें हैं कि वे बीजेपी से गठबंधन तोड़कर राजद के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं।
इन चर्चाओं के बीच, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की सक्रियता ने भी सियासी माहौल को गरमा दिया है। तेजस्वी यादव ने अपनी कार्यकर्ता संवाद यात्रा को बीच में ही रोककर रविवार देर शाम पटना पहुंचने का फैसला लिया। वे मंगलवार को राजद नेताओं के साथ एक बड़ी बैठक करेंगे। इस बैठक को लेकर माना जा रहा है कि इसमें बिहार की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों पर चर्चा की जाएगी और भविष्य की रणनीति तय की जाएगी।
हालांकि, इन अटकलों पर अब तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन जदयू और राजद के बीच बढ़ती नजदीकियां साफ दिख रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर नीतीश कुमार बीजेपी से गठबंधन तोड़ते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर साबित होगा। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के फैसलों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। उनके अगले कदम को लेकर हर किसी की नजरें टिकी हुई हैं। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि बिहार की सियासत किस ओर रुख करती है।
बिहार की सियासत में हलचल मचाने वाला केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान जदयू और भाजपा के बीच खटास को और बढ़ा रहा है। बीते दिनों एक निजी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में नेतृत्व को लेकर अभी चर्चा बाकी है और चुनाव किसके नेतृत्व में होगा, यह सभी एनडीए दल मिलकर तय करेंगे। इस बयान के बाद जदयू के नाराज होने की खबरें सामने आ रही हैं।
इस बयान को लेकर जदयू में असंतोष स्पष्ट रूप से दिख रहा है। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। उनके चुप रहने से सियासी गलियारों में चर्चा और तेज हो गई है। माना जा रहा है कि नेतृत्व के सवाल पर भाजपा और जदयू के बीच टकराव का दौर जारी है।
इस बीच, बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने रविवार देर शाम कहा कि एनडीए के नेता नीतीश कुमार हैं और आगामी विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। सम्राट चौधरी का यह बयान भाजपा और जदयू के रिश्तों में दरार को कम करने का प्रयास माना जा रहा है। अमित शाह के बयान और जदयू की नाराजगी से यह साफ हो रहा है कि बिहार में एनडीए के भीतर नेतृत्व को लेकर मतभेद बना हुआ है। अब यह देखना होगा कि नीतीश कुमार इस पर क्या रुख अपनाते हैं और इसका एनडीए के भविष्य पर क्या असर पड़ता है।