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लालू और नीतीश के होते हुए पीएम मोदी का नहीं चल पाएगा जादू!

जातीय समीकरण ही भारी रहेगा बिहार चुनाव में

नई दिल्ली/पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा भले ही न हुई हो पर सभी दलों ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। भले ही प्रशांत किशोर समेत कई संगठन चुनावी समर में ताल ठोक रहे हों पर मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है। चाचा भतीजे की जंग होनी है। इन चुनाव में पता चलेगा कि नीतीश कुमार को लोग आज भी कितना विश्वास करते हैं और लालू प्रसाद के छोटे बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की लोकप्रियता कितनी बढ़ी है ?

पीएम नरेंद्र मोदी का प्रभाव एक महत्वपूर्ण कारक होगा, लेकिन इसका असर कई पहलुओं पर निर्भर करता है। बिहार की राजनीति में मोदी की लोकप्रियता और उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की रणनीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। निम्नलिखित बिंदुओं से स्थिति का विश्लेषण किया जा सकता है। बिहार के चुनाव के बारे में कहा जाता है कि जब तक लालू प्रसाद और नीतीश कुमार हैं किसी और नेता का कोई जादू वहां चलने वाला नहीं है।

मोदी की लोकप्रियता और राष्ट्रीय छवि

पीएम मोदी की राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत छवि और उनके विकास कार्यों, जैसे बुनियादी ढांचे, डिजिटल इंडिया, और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाइयों को बिहार में प्रचारित किया जा रहा है। उनके रोड शो और रैलियों, जैसे कि 29 मई 2025 को पटना में प्रस्तावित रोड शो, NDA के लिए उत्साह बढ़ा सकते हैं।
कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया है कि बिहार में विशेष राज्य का दर्जा, बेरोजगारी, और अधूरी योजनाओं जैसे मुद्दों पर जनता में असंतोष हो सकता है, जो मोदी की अपील को प्रभावित कर सकता है।

NDA की रणनीति और नीतीश कुमार का साथ

गठबंधन की ताकत: NDA में जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी (BJP) का गठबंधन बिहार में मजबूत स्थिति में है। नीतीश कुमार की स्थानीय विश्वसनीयता और मोदी का राष्ट्रीय नेतृत्व मिलकर एक प्रभावी जोड़ी बना सकते हैं। BJP के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा है कि 2025 का चुनाव नीतीश और मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, जिसका लक्ष्य 225 सीटें जीतना है।

चुनौतियां

नीतीश कुमार की उम्र और स्वास्थ्य संबंधी चर्चाएं, साथ ही NDA के भीतर नेतृत्व को लेकर तनाव (जैसे BJP का नीतीश को सीएम चेहरा घोषित करने पर जोर), गठबंधन की एकजुटता को प्रभावित कर सकता है।

विपक्ष की रणनीति

महागठबंधन का प्रभाव: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के तेजस्वी यादव और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल बिहार में मजबूत चुनौती पेश कर रहे हैं। तेजस्वी की युवा अपील और राहुल गांधी के बार-बार बिहार दौरे (पिछले पांच महीनों में चार बार) से विपक्ष सक्रिय है।
मोदी के खिलाफ कथानक: विपक्ष बेरोजगारी, पलायन, और स्थानीय मुद्दों को उठाकर मोदी और नीतीश की जोड़ी को निशाना बना रहा है। तेज प्रताप यादव जैसे नेताओं के सोशल मीडिया पोस्ट्स में NDA पर निशाना साधा गया है, जो मतदाताओं के बीच असर डाल सकता है।

चुनावी मुद्दे और मतदाता भावना

स्थानीय मुद्दे: बिहार में बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के मुद्दे प्रमुख हैं। मतदाता यह देखेंगे कि केंद्र और राज्य सरकार ने इन मोर्चों पर कितना काम किया है।
जातिगत समीकरण: बिहार की राजनीति में जाति एक बड़ा कारक है। NDA और महागठबंधन दोनों ही जातिगत जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दों को भुनाने की कोशिश करेंगे।
मतदाता जागरूकता: निर्वाचन आयोग मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहा है, जिससे युवा और नए मतदाताओं की भागीदारी बढ़ सकती है। यह मोदी की अपील को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि युवा मतदाता राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों पर अलग-अलग राय रख सकते हैं।

मोदी की रणनीति और प्रभाव

बूथ-स्तरीय संगठन: मोदी ने BJP कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर संगठन मजबूत करने, परिवारवाद से बचने, और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने की सलाह दी है। यह रणनीति ग्रामीण और शहरी मतदाताओं तक पहुंचने में मदद कर सकती है।
ऑपरेशन सिंदूर: कुछ एक्स पोस्ट्स में दावा किया गया है कि मोदी ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों का प्रचार कर रहे हैं, जिसे विपक्ष सियासी मार्केटिंग बता रहा है। यह कितना प्रभावी होगा, यह मतदाताओं की धारणा पर निर्भर करता है।
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