बिहार में 65% आरक्षण मसले पर याचिकाकर्ता पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

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अभिजीत पाण्डेय

पटना। बिहार सरकार पटना उच्च न्यायालय के बढ़े हुए आरक्षण कोटा को किया रद्द किए जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट डालकर बिहार सरकार की टेंशन बढ़ा दी है।

बदली हुई परिस्थितियों में सरकार ने पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया है। हालांकि आरक्षण के खिलाफ याचिका लगाने वाले अब इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गए हैं जहां पहुंचकर कैविएट लगा दिया है। कैविएट लगाने से सुप्रीम कोर्ट पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार का पक्ष सुनने से पहले याची का पक्ष सुने बिना कोई सुनवाई नहीं कर सकेगी। यही कारण है कि आरक्षण के इस मसले को नवीं अनुसूची में डाले जाने की वकालत होने लगी है।

पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा कि बिहार सरकार ने आरक्षण बढ़ाने का फैसला लिया था वह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था। उसी के आधार पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है। किसी विषय पर जब तक सुप्रीम कोर्ट सुनवाई पूरी नहीं कर लेती है तब तक वह नवीं अनुसूची में नहीं डाला जा सकता है। जैसे कोई व्यक्ति मर गया हो तो उसे अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जा सकता है। इस तरह से आरक्षण के मामले को नवीं अनुसूची में नहीं डाला जा सकता है।

”अगर किसी एक्ट को नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रस्ताव लाया जाता है और अगर वह संविधान का अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता हो तो सुप्रीम कोर्ट उसकी समीक्षा कर सकता है। सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है लेकिन हाई कोर्ट के फैसले के आलोक में हम लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंच चुके हैं और कैबिएट डाला जा चुका है। सरकार का पक्ष सुनने से पहले सुप्रीम कोर्ट हमारे पक्ष को भी सुनेगी।

मालूम हो कि कैविएट याचिका जिस पक्षकार द्वारा दायर की जाती है यह उसकी तरफ से अदालत को दिया गया एक सूचना नोटिस कहा जा सकता है जिसके जरिए पक्षकार अदालत के समक्ष यह दावा करता है कि जिस मामले में उसके द्वारा कैविएट याचिका दायर की गई है, उस मामले में उसका पक्ष सुने बिना या नोटिस दिए बिना कोई फैसला नहीं किया जाए।

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