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Panic Module : तो मुस्लिम देश घोषित कराने का भी रचा जा रहा है षड्यंत्र!

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Panic Module : पटना पुलिस ने आतंकी  मॉड्यूल का किया भंडाफोड़, पीएफआई और एसडीपीआई से जुड़े होने की बात आ रही है सामने 

Panic Module : देश में यह बात तो सुनने को मिलती रहती है कि यदि जनसंख्या पर नियंत्रण न लगाया गया तो 2050  तक देश में हिन्दुओं से ज्यादा संख्या मुस्लिमों की हो जाएगी। पर जिस तरह से बिहार में आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश हुआ है उससे तो यह भी लग रहा है कि देश में कुछ लोग इस षड्यंत्र में भी लगे हैं कि आजादी के 100 साल पूरे होने पर देश को मुस्लिम राष्ट्र घोषित करा दिया जाए। इन लोगों के तार धर्म के आधार पर बने पीएफआई और एसडीपीआई से जुड़े होने की बात सामने आ रही है। यह षड्यंत्र बिहार में रचा जा रहा था। ये लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट कर रहे थे। दरअसल बिहार की राजधानी पटना पुलिस ने एक आतंकी  मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया है। इस मामले में झारखंड पुलिस के एक रिटायर्ड दारोगा समेत दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है।

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Growing Fanaticism

पुलिस के अनुसार ये लोग मिशन 2047 पर काम कर रहे थे, जिसका उद्देश्य भारत को साल 2047 तक मुस्लिम राष्ट्र घोषित कराना था। तो यह माना जाए कि देश में कुछ संगठन यदि कुछ संगठन हिन्दू राष्ट्र घोषित कराने में लगे हैं तो कुछ मुस्लिम संगठन भी देश को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कराने में लग गये हैं। देश में भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगम्बर मोहम्मद पर विवादित बयान के बाद तो ऐसा लग रहा है कि जैसे हिन्दू-मुस्लिम के अलावा कोई बात हो ही नहीं रही है, Growing Fanaticism. हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही ओर दे कट्टरता की बातें की जा रही हैं। उदयपुर हत्याकांड के बाद हिंदुओं की ओर से भी सिर कलम करने की बातें की जाने लगी है। दोनों ही ओर से कुछ संगठन राजनीतिक रोटियां सेंकने में लग गये हैं।

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देश में बने कट्टरता के इस माहौल में धर्मनिरपेक्षता तो जैसे मजाक बनकर रह गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि हिन्दू और मुस्लिम दोनों संप्रदायों की ओर से कुछ लोग अपने नापाक मकसद के लिए धर्म के आधार पर देश को घोषित कराने में लग जाएंगे तो देश के Constitutional Framework का क्या होगा ? क्या बाबा साहेब की अगुआई में लिखे गये संविधान के होते हुए देश को धर्म के आधार पर घोषित कराया जा सकता है। यदि नहीं तो कहीं हम अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशों के बनाये रास्ते पर तो नहीं चल पड़े हैं ?

बिहार में 2047 तक मुस्लिम राष्ट्र घोषित कराने के रचे जा रहे षड्यंत्र में झारखंड पुलिस ने जिन दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया है, उनमें एक रिटायर्ड दारोगा मोहम्मद जलालुद्दीन है तो दूसरा संग्दिध पटना के गांधी मैदान में हुए बम धमाके के आरोपी मंजर का सगा भाई । मतलब इन लोगों के आतंकी संगठनों के संपर्क होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। इनके पास से पीएफआई का झंडा, बुकलेट, पंपलेट मिलने का मतलब साफ है कि इनके तार पीएफआई से जुड़े हैं। ये लोग एक बिल्डिंग में एनजीओ के नाम पर युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दे रहे थे। इनके निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी का बिहार दौरा था। तो क्या पीएफआई देश में as Terrorist Organization आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने में लग गया है ? सरकार की ओर से कई बार पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की बात सामने आई है पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है। कुछ लोग तो सिमी के बदले रूप को पीएफआई बताता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि पीएफआई देश में इतना खतरनाक संगठन बन गया है तो फिर इस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा रहा है?

देश में ये जो हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर तरह-तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। इसके लिए न केवल सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष और संविधान की रक्षा के लिए बनाये गये तंत्र भी जिम्मेदार हैं। ये जो हर जगह लोग जाति और धर्म के नाम पर बंटते जा रहे हैं। संवाद कर रहे हैं। नफरत कर रहे हैं। लड़ रहे हैं। सोशल मीडिया पर उकसावे की बातें लिख रहे हैं, बोल रहे हैं। इससे Constitutional Framework नहीं बिगड़ रहा है क्या ? इससे देश में जो विषाक्त माहौल बना रहा है यह नयी पीढ़ी को न केवल भटकाने वाला है बल्कि आतंकी गतिविधियों में भी धकेलने वाला भी है। कहना गलत न होगा कि देश में तीन सोच वाले लोग हो गये हैं।  एक ओर कट्टर हिन्दुत्व की बात हो रही है तो दूसरी कट्टर मुस्लिम की। तीसरी ओर प्रेम मोहब्बत और भाईचारे की बात करने वाले लोग हैं पर इनकी संख्या न के बराबर है।

इसमें दो राय नहीं कि देश में पनप रहे कट्टरता के माहौल को बढ़ाने में मीडिया बड़ा सहायक साबित हो रहा है। बेरोजगारी, महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों को छोड़कर राष्ट्रीय मीडिया पर हिन्दू-मुस्लिम को लेकर ज्यादा डिबेट चलाना तो जैसे आम बात हो गई है। अखबारों में लिखी जाने वाली संपादकीय में शांति, अमन चैन की बात कम और जाति और धर्म का लेकर ज्यादा लिखी जा रही हैं। ऐसे में प्रश्न यह भी उठता है कि यदि देश में विपक्ष मोदी सरकार पर आरएसएस के एजेंडे को लागू करने का आरोप लगा रहा है तो पीएफआई जैसे संगठनों की संदिग्ध गतिविधियों पर चुप क्यों है ?  जबकि पीएफआई का नाम दिल्ली दंगों के अलावा कानपुर में हिंसा फैलाने में भी आ गया है। तो क्या यह Panic Module नहीं है क्या ?

– चरण सिंह राजपूत