ढले वतन की राह में

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लाज तिरंगे की रहे, बस इतना अरमान ।
मरते दम तक मैं रखूँ, दिल में हिन्दुस्तान ।।

सरहद पर जांबाज़ जब, जागे सारी रात ।
सो पाते हम चैन से, रह अपनों के साथ ।।

हम भारत के वीर हैं, एक हमारा राग ।
नफरत गैरत से हमें, जायज से अनुराग ।।

भारत माता रो रही, लिए हृदय में पीर ।
पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से वीर ।।

भारत माता के रहा, मन में यही मलाल ।
लाल बहादुर-सा नहीं, जन्मा फिर से लाल ।।

मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद ।
जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद ।।

मेरे साथियों, कर लें उनका ध्यान ।
शान देश की जो बनें, देकर अपनी जान ।।

आओ कर लें साथियो, ऐसा भी कुछ काम ।
ढले वतन की राह में, इस जीवन की शाम ।।

(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। ) 

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