नई दिल्ली/पटना। नीतीश कुमार भले ही सधी हुई राजनीति की हो पर आज की तारीख में उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं बताया जा रहा है। वह अजीबो गरीब हरकतें कर रहे हैं। कभी पीएम मोदी के पैर छूने लगते हैं तो राष्ट्रगान बजने पर तालियां बजाने लगते हैं। ऐसे में बिहार में राजद नेता तेजस्वी यादव की लोकप्रियता बढ़ रही है।दरअसल बिहार की सियासत में नीतीश कुमार का भविष्य 2025 के विधानसभा चुनाव पर टिका है। इसे लेकर कई तरह की अटकलें और विश्लेषण सामने आ रहे हैं। नीतीश कुमार, जो बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं। इस बार भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के चेहरे के रूप में चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। हालांकि, उनके भविष्य को लेकर कुछ अहम बिंदु हैं जो स्थिति को जटिल बनाते हैं ।
एनडीए का नेतृत्व और समर्थन
नीतीश कुमार की पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सहित एनडीए के घटक दलों ने 2025 के चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में उतरने का ऐलान किया है। एनडीए ने 243 सीटों में से 225 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, और नीतीश को फिर से मुख्यमंत्री बनाने का नारा दिया है (“2025 में 225, फिर से नीतीश”)। हालांकि, बीजेपी के कुछ नेताओं, जैसे अमित शाह, के बयानों ने असमंजस पैदा किया था, जब उन्होंने नेतृत्व के सवाल पर स्पष्ट जवाब नहीं दिया। बाद में बीजेपी ने नीतीश के नेतृत्व की पुष्टि की, जिससे उनके लिए राहत की स्थिति बनी।
स्वास्थ्य और उत्तराधिकार का सवाल
नीतीश कुमार की उम्र और हाल की खराब स्वास्थ्य की खबरों ने उनके भविष्य पर सवाल उठाए हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर नीतीश चुनाव में सक्रिय भूमिका नहीं निभा पाए, तो जेडीयू का नेतृत्व और एकता खतरे में पड़ सकती है। उनके बाद पार्टी का नेतृत्व कौन संभालेगा, यह एक बड़ा सवाल है। कुछ लोग मानते हैं कि नीतीश को सम्मानजनक निकास के तौर पर राज्यपाल का पद ऑफर किया जा सकता है, लेकिन यह उनकी मजबूरी भी हो सकती है। जदयू के कार्यवाहक अध्यक्ष संजय झा और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह नीतीश कुमार से ज्यादा करीब गृह मंत्री अमित शाह के बताये जा रहे हैं।
विपक्ष की चुनौती
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन नीतीश के खिलाफ मजबूत चुनौती पेश कर रहा है। लालू यादव ने नीतीश के लिए “दरवाजे खुले” होने की बात कही, जिससे उनके फिर से पाला बदलने की अटकलें शुरू हुईं। हालांकि, नीतीश ने कहा है कि वे अब “इधर-उधर” नहीं जाएंगे और एनडीए के साथ रहेंगे। विपक्ष नीतीश के स्वास्थ्य और बीजेपी के साथ उनके रिश्तों पर सवाल उठाकर माहौल गरमाने की कोशिश कर रहा है।
नीतीश की रणनीति और लोकप्रियता
नीतीश ने अपनी “प्रगति यात्रा” और 20 साल के विकास कार्यों का रिपोर्ट कार्ड जारी कर जनता के बीच अपनी छवि मजबूत करने की कोशिश की है। बिजली, सड़क, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में उनके कार्यों को एनडीए के प्रचार का आधार बनाया जा रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 में जेडीयू का बीजेपी के बराबर सीटें जीतना (16 सीटें) नीतीश की राजनीतिक ताकत को दर्शाता है। यह उनकी रणनीतिक चालबाजी और बिहार में पकड़ का सबूत है।
हाराष्ट्र फॉर्मूले का डर
संभावित परिदृश्य:
वैकल्पिक परिदृश्य: अगर नीतीश का स्वास्थ्य बिगड़ता है या जेडीयू का प्रदर्शन कमजोर रहता है, तो बीजेपी किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश कर सकती है, जैसा महाराष्ट्र में हुआ।
कम संभावना: कुछ अटकलें हैं कि नीतीश फिर से महागठबंधन की ओर जा सकते हैं, लेकिन उनके हालिया बयानों और बीजेपी के साथ मजबूत गठजोड़ को देखते हुए यह मुश्किल लगता है।
चुनावी एजेंडा और चुनौतियां:
निष्कर्ष:फिलहाल, नीतीश कुमार बिहार की सियासत के केंद्र में हैं और 2025 के चुनाव में एनडीए के चेहरे बने रहने की संभावना प्रबल है। उनकी रणनीति, अनुभव, और बीजेपी की निर्भरता उन्हें मजबूत स्थिति में रखती है। हालांकि, स्वास्थ्य, विपक्ष की चुनौती, और बीजेपी के इरादों पर सवाल उनके भविष्य को अनिश्चित बनाते हैं। अगर एनडीए भारी बहुमत से जीतती है, तो नीतीश का फिर से मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है। लेकिन अगर जेडीयू कमजोर प्रदर्शन करती है, तो बीजेपी नया चेहरा ला सकती है। अगले कुछ महीने नीतीश के लिए निर्णायक होंगे।