जेडीयू में ललन सिंह के इस्तीफे के बाद बिहार की राजनीती में उथल पुथल देखने को मिल रही है इसी बीच एक बड़ी खबर सामने आ रही है की नितीश कुमार वापस से एनडीए में शामिओल हो सकते है। ललन सिंह के साथ जो कुछ भी हुआ वह अप्रत्याशित तो नहीं था। कुछ इसी तरह से आरसीपी सिंह, शरद यादव या फिर समता से जनता दल तक के आधार बने जॉर्ज फर्नांडिस को भी अध्यक्ष पद से विदाई दी गई थी। अब ललन सिंह की भी विदाई उसी पुराने रास्ते से हुई जिसकी रूप रेखा नितीश कुमार तय करते है। राजनीती वशिष्यज्ञों का मानना है। नीतीश कुमार के पूर्व के फैसलों को विस्तार से देखें तो पता चलता है कि उनका फैसला कुछ इसी तरह का होता है। नीतीश कुमार को जब कुछ बातों के बारे में पता चलता है या फिर उन्हें लगता है कि बाजी हाथ से जा सकती है, तब कुछ ऐसे फैसले लेते हैं। उनके फैसलों से भले सियासी गलियारे में चर्चा शुरू हो जाए। उनका पूर्व का ट्रैक रिकॉर्ड कुछ ऐसी ही कहानी कहता है।
साल 1994 की बात है जब नीतीश कुमार ने जनता दल से अपनी राह अलग कर ली। तब उन्हें जॉर्ज फर्नांडिस का काफी साथ मिला। पहले जनता दल जॉर्ज बना और कुछ महीने बाद समता पार्टी बनी। 1998 में अटल बिहारी सरकार में समता शामिल हुई और नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री बने। 2003 में नीतीश, जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव ने मिलकर जनता दल यूनाइटेड बनाई। जॉर्ज से नीतीश कुमार की नाराजगी तब बढ़ गई जब अरुण जेटली के समझाने पर भाजपा की तरफ से नीतीश कुमार को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट किया गया। तब जॉर्ज ने ये कह कर सबको हैरान कर दिया जब उन्होंने कहा कि हमने पार्टी का नेता तो तय नहीं किया है। लेकिन बाद में समझाने पर जॉर्ज मान तो गए। कहा जाता है नीतीश कुमार ने इसे अच्छे संदेश की तरह नहीं लिया। दोनों नेताओं के बीच खाई बढ़ती गई। फिर आया वो दिन जब वर्ष 2009 में नीतीश कुमार ने खराब सेहत का हवाला देते हुए जॉर्ज को 2009 लोकसभा चुनाव में टिकट ही नहीं दिया। जॉर्ज ने मुजफ्फरपुर से निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। लेकिन नीतीश यहीं नहीं रुके। जॉर्ज को नालंदा से टिकट तो नहीं ही दिया बल्कि उन्हें नीचा दिखाने के लिए उस कौशलेंद्र प्रसाद को टिकट दिया गया, जो कभी जॉर्ज फर्नांडिस का बैग उठाते थे।
नीतीश और आरसीपी
वर्ष 2020 में आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। नीतीश कुमार और आरसीपी के बीच दूरियां तब बढ़ी जब आरसीपी बीजेपी सरकार में मंत्री बन गए। कहा जाता है कि 2020 में जब मोदी अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे थे, तब नीतीश ने आरसीपी को बार्गेन करने के लिए लगाया था। नीतीश कुमार अब तक मंत्रिमंडल में भागीदारी इसलिए नहीं कि उन्हें दो मंत्री पद चाहिए थी। इस विस्तार के क्रम में आरसीपी को बीजेपी से बार्गेन करने के लिए भेजा गया था। लेकिन वो स्वयं मंत्री बन गए। तभी से ही नीतीश और आरसीपी के बीच संबंध खराब हो गए। नतीजतन यह हुआ की 2021 में आरसीपी का जब कार्यकाल समाप्त हो गया तो उनकी राजनीति का अंत करते राज्यसभा का टिकट ही नहीं दिया। आरसीपी को मंत्री पद छोड़ना पड़ा। बाद में इन्होंने भाजपा ज्वाइन कर जदयू की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया।
नीतीश कुमार और ललन सिंह
कहने को तो नीतीश कुमार और ललन सिंह का राजनीतिक रिश्ता करीब चार दशक से भी ज्यादा का रहा है। लेकिन जब नीतीश कुमार को दरकिनार कर ललन सिंह जब लालू प्रसाद की तरफ मुखातिब हुए उसी दिन इनकी विदाई पर मुहर लग गई थी। यह दीगर कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करते जदयू के अध्यक्ष ललन सिंह को नीतीश कुमार को ना कह दिया। सियासी जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार के पास गृह विभाग है। नीतीश कुमार को चारों तरफ से सूचनाएं आती हैं। नीतीश कुमार को ललन सिंह की आरजेडी से करीब नहीं भा रही थी। ललन सिंह लगातार लालू यादव के करीब होते जा रहे थे। बिहार में सियासी चर्चा ये थी कि ललन सिंह बहुत बड़ा गेम प्लान के तहत काम कर रहे हैं। जेडीयू में चर्चा थी कि ललन सिंह का आरजेडी से गुप्त समझौता हुआ था। उस समझौते के बारे में नीतीश कुमार को पता था। नीतीश कुमार ने बहुत सोच समझकर बिहार की सियासत में नया स्क्रिप्ट लिख डाला।
नीतीश कुमार के कुल राजनीतिक करियर का करीब तीन चौथाई हिस्सा आरजेडी विरोध पर टिका रहा है। वे जंगल राज को खत्म करने की बात करके ही सत्ता में इतने दिनों से बने हुए हैं। आरजेडी के साथ महागठबंधन सरकार में भी आए दिन नीतीश कुमार जंगल राज के दिनों की चर्चा कर देते हैं। नीतीश कुमार के सभी विधायक और सांसद आरजेडी के जंगल राज का भय दिखाकर सत्ता में आए हैं। अब वह किस मुंह से जनता के सामने जाएंगे। नीतीश कुमार को यह भी पता है कि इसमें अधिकतर लोग आज भी दिल से से बीजेपी के साथ हैं। नीतीश कुमार की मंडली में ललन सिंह ही एक मात्र ऐसे शख्स रहे हैं जो आरजेडी के साथ गठबंधन के पक्षधर रहे हैं जबकि अधिकतर लोग जैसे संजय झा, अशोक चौधरी, विजय चौधरी आदि एनडीए के साथ जाने की वकालत करते रहे हैं। नीतीश कुमार का कोर वोटर लव कुश समीकरण को भी आरजेडी के बजाय एनडीए का साथ जाने की वकालत करते रहे हैं। नीतीश कुमार का कोर वोटर लव कुश समीकरण को भी आरजेडी के बजाय एनडीए का साथ सूट करता है। इसलिए पार्टी को बचाने के लिए नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मार सकते है।