अमित शाह की बैठक को ‘ना’ कर खेल गए ‘दांव’, अब क्या करेगी बीजेपी?
दीपक कुमार तिवारी
नई दिल्ली/पटना। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार चौंकाते रहते हैं। कब किसके साथ रहेंगे और कब किसकी जड़े उखाड़ने में लग जाएंगे, यह प्रीडिक्शन से परे है। गठबंधन के नाम पर ही इधर-उधर होने का अपना एक अलग रिकॉर्ड ही है। और एक कदम पीछे हट कर दो कदम आगे निकल जाना यह तो उनका विशेष गुण है ही। इधर फिर नीतीश कुमार के एक फैसले ने बिहार की राजनीति को चौंका डाला है।
इस बार सीएम नीतीश कुमार ने गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में आज (सोमवार 7 अक्टूबर ) दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित बैठक के लिए ना कहा है। दरअसल नीतीश कुमार को अमित शाह की बैठक से दूर रहने की वजह इस बैठक का विषय है। और यह विषय है वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों की स्थिति को लेकर है। और रणनीति यह है कि केंद्र सरकार वामपंथी उग्रवाद को पूरी तरह से समाप्त करना चाह रही है।
दरअसल, नीतीश कुमार का वाम प्रेम जगजाहिर है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू एकला कमर कस चुकी थी, तब उन्होंने वाम दल के साथ लोकसभा के चुनावी दंगल में उतरे थे। इसलिए बड़ी समझदारी के साथ भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को भेजा ताकि जदयू और वाम दलों के बीच का रिश्ता मधुर बना रहे। बता दें कि वाम उग्रवाद उन्मूलन को लेकर बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को मिलकर रणनीति पर काम करना है।
जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता और एमएलसी नीरज कुमार ने कहा कि नीति आयोग की बैठकों में नीतीश कुमार का शामिल न होना कोई असामान्य बात नहीं है, क्योंकि बिहार का प्रतिनिधित्व अक्सर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री ही करते थे। इसके अलावा, बिहार से चार केंद्रीय मंत्री भी हैं जो नीति आयोग के सदस्य हैं और वे बैठक में उपस्थित रहेंगे।
वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नई दिल्ली में मई 2023 को आयोजित नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। तब यह कारण सामने आया कि नीति आयोग की बैठक में शामिल होने के पहले ही नीतीश कुमार ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की बात कह चुके थे। तब विरोध स्वरूप पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की तर्ज पर सीएम नीतीश कुमार ने भी नीति आयोग की बैठक से किनारा किया।
अगस्त 2022 में भी आयोजित नीति आयोग की बैठक में सीएम नीतीश कुमार नहीं शामिल हुए थे। लेकिन तब कहा गया था कि इस बार नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कोरोना से उबरे थे और फिलहाल अपनी कमजोरी से वे जूझ रहे हैं। वो चाहते थे कि नीति आयोग की बैठक में उनका प्रतिनिधित्व उपमुख्यमंत्री करें। चूकि इस बैठक में मुख्यमंत्री ही शामिल हो नहीं सकते हैं। तब इस बात की पुष्टि भी हुई थी। सीएम नीतीश खराब स्वास्थ्य की वजह से जनता दरबार नहीं लगा रहे थे। इससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के लिए पीएम मोदी की ओर से आयोजित रात्रिभोज और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए थे।
राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा दूरियां और नजदीकियां बस एक कदम चलने की तरह है। कभी पीएम नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया तो दिया गया भोज का आमंत्रण भी रद्द कर दिया। लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार ने खिड़की दरवाजा तक बंद कर लिया। और जब खुश हो गए तो नीतीश कुमार पीएम मोदी के पैर छूने भी लगे।