डा. पुष्पा सिंह विसेन ने किया हिंदी प्रकाशन की दशा एवं दिशा कार्यक्रम का शुभारंभ
उत्तराखंड में अखिल भारतीय प्रकाशन संघ द्वारा तीन दिवसीय कार्यक्रम हरिद्वार की देव भूमि पर आयोजित किया गया| जिसका मुख्य विषय वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिंदी प्रकाशन की दशा एवं दिशा रहा| वरिष्ठ पत्रकार एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री दयानंद पांडेय जी की अध्यक्षता में कार्यक्रम का आरंभ किया गया| माँ ब्रह्मप्रिये नारायणी की मूर्ति के आगे दीप प्रज्वलित करते हुए सभी अतिथियों ने पुष्प अर्पित किया, और माँ वाणी की वंदना से डा. पुष्पा सिंह विसेन ने आयोजन का आरंभ किया|उनके शब्दों में “हे स्वर मल्लिका माँ सरस्वती, दर पे तेरे शीश झुकाए बैठे हैं, बरसेगी कब रहमत तेरी उम्मीद लगाए बैठे हैं, आज के पावन पर्व पर माँ आमंत्रित तुझे करते हैं, आन विराजो माँ शारदे सजदे में सभी बैठे हैं|
इस प्रस्तुति के संदर्भ में कहना चाहूंगा कि उर्दू और हिंदी के शब्दों की जो माला पुष्पा विसेन ने पिरोया है वह साहित्यिक
भाषा में शंकर वर्ण के अंतर्गत आता है| लेकिन मेरी समझ से भाषाई एकता की परिधि में विसेन जी एक संदेश देना चाहती हैं, कि हम सभी इसी तादात्म्य, सामंजस्य से समरसता के पक्षधर बनें| मुख्य वक्ता के रुप में बहुत ही बेबाकी से अनेक पहलुओं को दृष्टिगत रखते हुए वरिष्ठ साहित्यकार ने अपनी बात कही, डा. चं प्रकाश शुक्ल ने भी अपने वक्तव्य को सकारात्मक दृष्टिकोण से रखा और अपनी काव्यात्मक प्रस्तुति के साथ अपनी वाणी को विराम दिया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं वरिष्ठ साहित्यकार दयानंद पांडेय जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज व्यवसायिक रूप से बाजार में उतरने की आवश्यकता है जो लेखक और प्रकाशक दोनों के लिए हितकर होगा, प्रकाशक सिर्फ सरकार की खरीदारी के ऊपर आश्रित न रहते हुए स्वयं को सजगता से बाजारीकरण की ओर अग्रसर करें. अनेक लघु कथाओं और कबीर साहेब की बातों को माध्यम बना कर बहुत ही श्रेष्ठ वक्तव्य दिए•
आयोजन के दूसरे सत्र में सभी प्रकाशकों ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किए, अखिल भारतीय प्रकाशक संघके अध्यक्ष माननीय ओम प्रकाश अग्रवाल जी ने अपने वक्तव्य में अनेक सार्थक बातों से सभी का ध्यान आकर्षित किया, संघ के महामंत्री आदरणीय अरुण शर्मा जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए संघ के संदर्भ में नियमों और शर्तों के विषय में सभी को जानकारी देते हुए कार्यक्रम के उद्देश्यों को साझा किया.
इस सफल आयोजन का सारा श्रेय वरिष्ठ साहित्यकार इंद्रजीत सिंह सेंगर जी को जाता है कि इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का कुशलता पूर्वक संचालन करते हुए, आरंभ से लेकर समापन तक बहुत ही संयम और सजगता से सभी को अपनी बात रखने का मौका दिया, और स्वयं के कुशल नेतृत्व में संचालन को सफलतापूर्वक संपन्न किया, संघ के अध्यक्ष एवं महामंत्री ने सभी अतिथियों को पगड़ी पहनाकर स्मृति चिन्ह एवं पुष्प गुच्छ देकर का सम्मान किया,और उपहार स्वरूप बैग और पैड, पेन आदि भी सभी अतिथियों और सभागार में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों को दिया गया|आयोजन के अंतिम चरण में वरिष्ठ कवयित्री पुष्पा विसेन के गीत राधिका सी प्रिया नहीं, किन्तु तुम्हारा प्यार प्रिये, मीरा रुक्मिणी सी भी नहीं मैं, किंतु हूँ प्रेम का पावन त्यौहार प्रिये,से समापन किया गया.यह गीत नारी के संदर्भ में श्रेष्ठता की परिधि में रचनाकार की श्रेष्ठ रचना है|अंत में संचालक महोदय ने सभी अतिथियों एवं आगंतुकों का आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया|